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This Article is From Jan 17, 2015

रवीश रंजन की आंखों देखी : किरण बेदी के नए बीजेपी दफ्तर की कहानी

Ravish Ranjan Shukla, Saad Bin Omer
  • Blogs,
  • Updated:
    जनवरी 17, 2015 19:39 pm IST
    • Published On जनवरी 17, 2015 19:34 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 17, 2015 19:39 pm IST

किरण बेदी के नए दफ्तर की कहानी बताने से पहले आप ये जरूर जान लें कि दिल्ली बीजेपी की राजनीति 14 पंडित पंत मार्ग पर बैठती है, लेकिन चलती अशोका रोड से। दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर सोशल मीडिया का वॉर रूम और तमाम पदाधिकारी इसी डेढ़ एकड़ में बने बंगले के अलग-अलग जगहों पर बैठते हैं।

दिल्ली में जहां एक साधारण कमरे का किराया पांच हज़ार से लेकर 50 हज़ार तक हो सकता है। वहीं करीब 200 स्थाई लोगों के लिए बने इस बीजेपी कार्यालय का एक महीने का किराया महज 16 हज़ार रुपये है।

हालांकि किरण बेदी के पोस्टर भले ही 19 जनवरी के बाद पूरी दिल्ली में लगने शुरू हो, लेकिन पंडित पंत मार्ग के बीजेपी दफ्तर के बाहर पहुंचते ही आपको यहां लगे पोस्टर में वह प्रदेश अध्यक्ष सतीश उपाध्याय के पीछे खड़ी मुस्कुरा रही है। लेकिन ये पोस्टर महज दिखावे के लिए हैं। असलियत में किरण बेदी का बढ़ा कद किसी से छिपा नहीं।

शनिवार को जब मैं बीजेपी के प्रदेश कार्यालय गया तो मुख्य दरवाजे से दाखिल होते ही एक बड़ा हॉल है, जहां वीर सावरकर से लेकर नरेंद्र मोदी की बड़ी तस्वीर लगी है। इसी हॉल से सटा प्रदेश अध्यक्ष सतीश उपाध्याय का दफ्तर है।

इसी दफ्तर से सटा एक और उसी की बराबरी का दफ्तर है, जो बीजेपी के महासचिवों के लिए होता है। अब चुनाव तक महासचिवों को इस दफ्तर से दूर रहने को कहा गया है और इसे किरण बेदी के लिए तैयार किया जा रहा है।

यहां सफेद कुर्ता पहने असदुल्ला खान बड़ी तेजी से रंगाई कर रहे थे। किरण बेदी को बीजेपी के कील कांटे दुरुस्त करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। लेकिन पंकज तो वुडेन फ्लोरिंग के कील कांटे तेजी से ठोंकने में लगा था।

एक मित्र ने धीरे से बताया यही है किरन बेदी का नया दफ्तर है, लेकिन इसके बारे में बातचीत करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। मानो इस दफ्तर ने पहले ही पुलसिया सख्ती के संकेत दे दिए हो।

किरण बेदी का नया दफ्तर डॉ. हर्षवर्द्धन का ठिकाना रह चुका है। 2013 में इसी दफ्तर में बैठकर डॉ. हर्षवर्द्धन ने दिल्ली विधानसभा चुनाव की कमान संभाली थी। तब प्रदेश अध्यक्ष विजय गोयल हुआ करते थे। विजय गोयल अब दार्शनिक हो गए हैं। वह कहते हैं कि राजनीति में सीनियॉरिटी या जूनियॉरिटी नहीं होती। जब मैं सांसद बनकर केंद्रीय मंत्री बना था, तब भी पार्टी के भीतर कई वरिष्ठ लोगों को नजरअंदाज किया गया होगा। इसीलिए राजनीति में सब चलता है।

अब वक्त बदला, बीजेपी का चेहरा बदला, शैली भी बदलेगी ऐसे संकेत खुद पार्टी के नेता दे रहे हैं। नए दफ्तर की फ्लोरिंग से लेकर दीवारों के रंग तक बदल रहे हैं। लेकिन क्या दिल्ली की राजनीतिक स्थिति बदल पाएगी। क्या इस दफ्तर से दिल्ली सचिवालय का रास्ता तय हो पाएगा या यह दफ्तर डा. हर्षवर्द्धन की कहानी दोहराएगा? देखते रहिये दिल्ली के दंगल का दिलचस्प मुकाबला...

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