दिल्ली में 12 मई को वोट डाले जा चुके हैं और उसके बाद मैं निकला दिल्ली की गलियों में, लोगों से पूछने कि अब उनको क्या लगता है कि दिल्ली में क्या होने वाला है? मैं अपने प्रोग्राम 'बाबा के ढाबा' के लिए पहुंचा दिल्ली के मशहूर चांदनी चौक पर. वहां के लोगों से बात करके एक बात साफ थी कि इस लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी अपना जलवा खोती जा रही है. इस बार मुद्दा आम आदमी पार्टी था ही नहीं. लोगों से जब मैं यह पूछता था कि विधानसभा चुनाव में आपने तो आम आदमी पार्टी को 67 विधानसभा सीटों पर जितवा दिया, तो लोग चुप हो जाते थे. एक आटो वाले ने तो यहां तक कह दिया कि सर इस बार नहीं. मैंने कहा कि पिछली बार तो अपने आटो पर केजरीवाल की तस्वीर तक लगाई थी, इस बार क्यों नहीं लगाई? तो आटो वाले का जवाब था कि सर पिछली बार भूल हो गई थी..इस बार नहीं दोहराई वह भूल...
मतलब साफ है केजरीवाल के लिए वह सम्मान जो अण्णा आंदोलन के बाद बना था, अब तकरीबन खत्म हो गया है. यदि यही ट्रेंड रहा तो आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन इस लोकसभा चुनाव में विधानसभा के लिहाज से काफी खराब रहे तो आपको आश्चर्य नहीं करना चाहिए..क्योंकि यही बात दक्षिण दिल्ली के मूलचंद पराठे वाले पर पराठा खाने आने वाले लोग भी कर रहे थे. लोगों की मानें तो दिल्ली में कांग्रेस नंबर 2 की पार्टी होने जा रही है और कुछ सीटों पर वह अच्छा चुनाव लड़ी है. भले ही कांग्रेस को कोई सीट मिले या नहीं, मगर वह लड़ाई में दिख रही है. आंकड़े भी कुछ यही बयान कर रहे हैं.
आम आदमी का ग्राफ कुछ तरह इस तरह है दिल्ली में- 2013 के विधानसभा चुनाव में 'आप' को 29 फीसदी वोट मिले थे और 28 सीटें..फिर कांग्रेस के समर्थन से केजरीवाल मुख्यमंत्री बने. मगर 2014 में वोट बढ़कर 33 फीसदी हुआ मगर लोकसभा में एक भी सीट नहीं मिली. सन 2015 के विधानसभा चुनाव में आप का वोट प्रतिशत 54 फीसदी हो गया और सीटें मिली 67 यानि 21 सीटों का इजाफा. मगर 2017 के नगर निगम चुनाव में आप को 28 फीसदी वोटों का नुकसान हुआ, यानी वोट मिले केवल 26 फीसदी और सीटें मिली महज 49. वहीं कांग्रेस को 2013 में 25 फीसदी वोट मिले और सीटें मिली केवल आठ. वोट 2014 में घटकर 15 फीसदी रह गए, यानी 10 फीसदी वोटों का नुकसान और सीटें एक भी नहीं. साल 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट और 5 फीसदी घटा और उसे एक भी सीट नहीं मिली. मगर 2017 के नगर निगम चुनाव में कांग्रेस के वोटों में 11 फीसदी का इजाफा हुआ. यानी उसे 21 फीसदी वोट मिले और उसे सीटें मिलीं 31. यानी कांग्रेस का वोट शेयर ऊपर जा रहा था और आप का नीचे.
दिल्ली के लोगों से बात करके लगता है कि इस बार भी कुछ ऐसा ही होने जा रहा है. यही नहीं कांग्रेस का आंतरिक सर्वे भी लगता है कि कुछ ऐसा ही कह रहा था इसलिए कांग्रेस आप से गठबंधन को लेकर बहुत उत्साहित नहीं दिख रही थी और लगता है कि उनका आकलन सही था. जबकि केजरीवाल कांग्रेस से गठबंधन को लेकर उतावले थे. केजरीवाल का वह बयान जिसमें उन्होंने कहा था कि 'मुस्लिम कांग्रेस को वोट नहीं दे रहा और हिंदू तो देगा नहीं' भी हताशा में दिया गया बयान था. इसका एकदम उल्टा असर हुआ और मुसलमानों ने भी जमकर कांग्रेस का साथ दिया है. यदि जनता की मानें तो उसने अपना फैसला दे दिया है. देखते हैं क्या परिणाम होता है मगर जो दिख रहा है उसके मुताबिक इस लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का डब्बा गोल है.
(मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...)
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