मध्य प्रदेश में बाढ़ का मंजर
जब भी बाढ़ आती है हम बाढ़ को आपदा की तरह कवर करने लगते हैं. पूरा सरकारी तंत्र राहत शिविर बनाने लगता है और मुख्यमंत्री हेलिकॉप्टर से दौरा करने लगते हैं. अब कुछ लोग गोद में भी दौरा करने लगे हैं. इससे पता चलता है कि हम बाढ़ के बारे में क्या जानते हैं और क्या नहीं जानते हैं और कई बार तो लगता है कि हमें कुछ जानने से मतलब ही नहीं है. चैनलों पर बाढ़ की जो तस्वीरें तैर रही हैं वो क्यों सिर्फ तबाही का मंज़र पेश करती हैं. क्या बाढ़ की कहानी सिर्फ संपत्ति और जानमाल के नुकसान की ही कहानी है. जब हमें स्कूल से लेकर कॉलेज तक यही पढ़ाया गया है कि बाढ़ अच्छी चीज़ है, तो हम बाढ़ को लेकर जश्न क्यों नहीं मनाते हैं. क्या कभी हमने सोचा है कि बाढ़ न आने पर नदी के किनारे की ज़मीन और उसकी उर्वरता पर क्या असर पड़ता है. अगर मैं यह कहूं कि देश के कई इलाकों में बाढ़ आई है, बहुत अच्छी बाढ़ आई है और ये बहुत अच्छी बात है तो एक दर्शक के नाते आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी. स्कूल और कॉलेज में जब शिक्षक यही बात कहते थे, तब आपकी प्रतिक्रिया क्या होती थी.
जब आप भी बहुत मेहनत से याद करके इम्तहानों में लिखते थे कि बाढ़ आती है तो उसके साथ पहाड़ों से उपजाऊ गाद मैदानों की तरफ आता है. पोषक तत्वों से लैस मिट्टी की नई परत बन जाती है. पुणे के प्रोफेसर विश्वास काले से हमने पूछा तो उन्होंने कहा कि बाढ़ नदी की जीवन प्रक्रिया का अहम हिस्सा है. बाढ़ के बग़ैर नदी का जीवन चक्र पूरा नहीं होता है. बाढ़ के साथ आने वाली नई मिट्टी के कारण खेतों की उर्वरता काफी बढ़ जाती है. यही वजह है कि हज़ारों साल से गंगा-यमुना के मैदान में खेती हो रही है, लेकिन वहां की उर्वरता कभी कम नहीं हुई. देश की पचास करोड़ की आबादी गंगा-यमुना के मैदान में बसती है. यही नहीं बाढ़ आने से नदी का चैनल लगातार क्लियर होता रहता है. बड़ी या छोटी नदियां अपने साथ सामान्य समय में जो सेडीमेंट, रेत-पत्थर अपने साथ लाती हैं और किनारों के आसपास जमा करती जाती हैं, उससे नदी का चैनल संकरा और उथला होता जाता है जिससे नदियों में पानी बहने की जगह कम होती जाती है. जब बड़ी बाढ़ आती है तो वो इस पूरी गाद को आगे ले जाती है और नदियों के चैनल को साफ़ करती रहती है. नाले के रूप में संकुचित हो चुकी नदी फिर से फैल जाती है. उसके जिन किनारों पर रेत माफिया से लेकर भू माफिया तक का कब्जा हो चुका होता है, उन इलाकों को नदी की बाढ़ एक झटके में ही मुक्त करा देती है.
बाढ़ आने से नदियों के आसपास के इलाकों में अंडरग्राउंड वॉटर रिचार्ज होता है, जो साल के बाकी समय में पानी की ज़रूरतों को पूरा करने के काम आता है. जितने बड़े इलाके में बाढ़ आएगी, उतने इलाके में पानी रिचार्ज होगा. हमने बाढ़ पर पूरी ज़िंदगी अध्ययन करने वाले प्रोफेसर दिनेश मिश्रा से बात की. बहुत कम लोग हैं जो बाढ़ पर शोध करते हैं. मैं चाहता था कि वे 'प्राइम टाइम' में आ जाएं, लेकिन उन्हें आज किसी यात्रा पर जाना था. जब मैंने प्रो मिश्रा से पूछा कि क्या बाढ़ आपदा है, तबाही है, तो उनका जवाब था कि बिहार के लिए बाढ़ आपदा नहीं है. अगर आपदा होती, तबाही लाती तो बिहार में जनसंख्या का घनत्व काफी कम होता. लोग राज्य छोड़ कर चले जाते. कोई अपनी ज़मीन छोड़ कर इसलिए नहीं जाता, क्योंकि बिहार की ज़मीन इसी बाढ़ के कारण उपजाऊ है. यहां पानी का स्तर अच्छा है, इसीलिए आप हरियाणा या राजस्थान की तरह महिलाओं को सिर पर गगरी लिए दूर से पानी लाते-जाते नहीं देखते हैं. प्रो मिश्रा ने कहा कि बाढ़ एक लाभदायक धंधा है. बिहार में 9 साल बाद ऐसी बाढ़ आई है, जिससे यहां की ज़मीन फिर से नई हो गई है.
जब कोसी की बाढ़ आई थी तब अनुपम मिश्र ने एक लेख लिखा था - तैरने वाला समाज डूब रहा है. उनका कहना था कि बाढ़ अतिथि नहीं है. वो अचानक नहीं आती है, बल्कि उसके आने की तारीख तय है. यही कारण है कि जब बाढ़ आती है तब हम उसके साथ विपत्ति की तरह व्यवहार करते हैं. अनुपम मिश्र ने लिखा था कि सोचिये जब सरकारें नहीं थीं, हेलिकॉप्टर नहीं था तब लोग बाढ़ से कैसे अपनी रक्षा करते होंगे, क्योंकि जिस ज़मीन पर वे रहते आए हैं, वहां बाढ़ तो सदियों से आ रही है. हम बाढ़ के रास्ते में जाकर बसे हैं, बाढ़ हमारे रास्ते में कभी नहीं आती है.
बाढ़ से तबाही क्यों होती है. एक कारण यह है कि हम सबने नदी के किनारे की ज़मीन पर अतिक्रमण कर लिया है. चूंकि कई साल तक बाढ़ नहीं आती है, इसलिए हम सोचते हैं कि बाढ़ कभी नहीं आएगी. फिर हम नदियों को तरह-तरह से जोड़ने के आइडिया पर काम करने लगते हैं. कुछ का कुछ दिमाग लगाते चलते हैं. मगर एक दिन बाढ़ आ जाती है. अब पूछिये कि जानमाल का नुकसान क्यों होता है. क्या इसे बचाया जा सकता है.
आप जानते हैं कि भारत में बाबा आदम के ज़माने से बाढ़ की भविष्यवाणी की जा रही है. यह भविष्यवाणी ख़तरे के निशान के आधार पर की जाती है. आप समाचारों में सुनते भी होंगे कि फलां जगह पर गंगा या पुनपुन का पानी ख़तरे के निशान से इतना सेंटीमीटर ऊपर बह रहा है तो बाढ़ आएगी. देश में करीब 175 जगहों पर ऐसे ख़तरे के निशान बने हैं जिसके आधार पर बाढ़ की भविष्यवाणी की जाती है. इस सिस्टम को गेज टू गेज कोरिलेशन कहते हैं. जैसे आपने सुना कि पटना में गंगा का पानी ख़तरे के निशान से ऊपर बह रहा है. इसके लिए करीब साठ-सत्तर किमी पहले एक और जगह पर जलस्तर को नापा जाता है. इसका एक ऐतिहासिक डेटा होता है, जिसके आधार पर कह दिया जाता है कि अगर वहां पानी खतरे के निशान से ऊपर है तो पटना के महेंद्रू घाट या एल सी टी घाट में बाढ़ का पानी आ जाएगा. यदि आप पटना के पुराने दर्शक हैं तो याद कीजिए हम और आप बचपन में कैसे बांस घाट या महेंद्रू घाट जाते थे, यह देखने कि कितनी सीढ़ियों तक पानी आ गया है. अगर इतनी सीढ़ी तक पानी आ गया तो बाढ़ का पानी शहर में घुस जाएगा. जाहिर है इससे पता चलता है कि जल स्तर से बाढ़ का ख़तरा नापने का सिस्टम लोक जीवन का हिस्सा बन गया होगा. इससे सटीक भविष्यवाणी होती होगी तभी सरकार से लेकर आम नागरिक तक इस भविष्यवाणी में भरोसा करते हैं. रेडियो अनाउंसर जब खनकदार आवाज़ में कहते थे कि पटना में गंगा का जलस्तर ख़तरे के निशान से दस सेंटीमीटर ऊपर बह रहा है. इतना सुनते ही लोग आलू प्याज़ लेकर छत पर चले जाते थे. आसमान में देखने लगते थे कि हेलिकॉप्टर से चना और बिस्कुट कोई गिराएगा. मगर धीरे-धीरे बाढ़ की सारी तस्वीरें तबाही की होने लगी. लोग मरने लगे, मकान डूबने लगे और कितना कुछ नष्ट होने लगा.
ऐसा क्यों हुआ. हमने इस क्षेत्र के एक और जानकार से बात की. उनका कहना है कि भारत में वाटर लेवल फोरकास्ट की व्यवस्था है यानी जलस्तर के आधार पर भविष्यवाणी की जाती है. भारत को अब फ्लड फोरकास्ट करना चाहिए यानी यह बताना चाहिए कि आपके इलाके में बाढ़ का पानी कब तक आएगा, कितना ऊपर चढ़ेगा और कब तक रहेगा. ऐसा शायद दुनिया के बाकी देशों में होता है. पांच छह दिन पहले से अलर्ट जारी होने लगते हैं.
अगर भारत में फ्लड फोरकास्ट होता तो चेन्नई में बाढ़ से सैकड़ों लोग नहीं मरते, लोग अपने ही मकान में डूब कर नहीं मरते. अगर हमें बाढ़ से होने वाले नुकसान को रोकना है तो फ्लड फोरकास्ट की तरफ कदम बढ़ाने होंगे. इस वक्त जलस्तर की भविष्यवाणी सेंट्रल वाटर कमीशन करता है. जलस्तर की भविष्यवाणी की एक सीमा है. आप पचास-साठ किमी के बीच दो जगहों पर खतरे के निशान को मापते हैं, लेकिन अगर बीच में अचानक से पानी आ जाए और आसपास के इलाके में फैल जाए तो उसकी भविष्यवाणी की कोई व्यवस्था नहीं है. जैसे मान लीजिए चेन्नई के किनारे की नदी में जल स्तर बढ़ गया लेकिन भारी वर्षा के कारण शहर में पानी की मात्रा दूसरी तरफ से बढ़ गई. अब इसका हिसाब लगाकर बताने की व्यवस्था होनी चाहिए कि चेन्नई में कितनी गहराई तक बाढ़ आने वाली है. इसलिए जो लोग पहली मंज़िल के मकान में रह रहे हैं उन्हें कम से कम दो मंज़िला मकान की छत पर जाना होगा. यह नहीं होता है.
दूसरी कमी यह है कि हम स्टार्म वाटर फोरकास्ट नहीं करते हैं. स्टार्म वाटर वर्षा के पानी को कहते हैं. यह एक किस्म की शहरी बाढ़ है. जहां नदियां नहीं होती है वहां, स्टार्म वाटर से बाढ़ आती है. अगर हम वर्षा की मात्रा के आधार पर यह बता सकें कि गुड़गांव या दिल्ली में इतनी मिलीमीटर बारिश होगी तो सड़कों पर पानी भर सकता है. आपकी कार डूब सकती है तो काफी कुछ बच सकता था. इसलिए हमें वाटर लेवल से आगे जाकर फ्लड फोरकास्ट और स्टार्म वाटर फोरकास्ट की तरफ बढ़ना होगा तभी हम जानमाल का नुकसान बचा सकते हैं. हमें यह भी बताना होगा कि बाढ़ का पानी आपके इलाके में कब तक रहेगा.
मध्य प्रदेश और राजस्थान से बाढ़ की स्थिति में सुधार की खबर है यानी पानी का स्तर कम होने लगा है. मध्य प्रदेश में सतना और रीवा बाढ़ से सबसे ज़्यादा प्रभावित रहे. उधर उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद, मिर्ज़ापुर, वाराणसी, महोबा, बांदा और उन्नाव के कई इलाकों में बाढ़ आई हुई है. गंगा और उसकी सहायक नदियां यहां ख़तरे के निशान से ऊपर बह रही हैं.
वाराणसी में गंगा के पानी में आसपास के घाट डूबे हुए हैं. मणिकर्णिका घाट और हरीशचंद्र घाट डूबने की वजह से शवों का दाह-संस्कार यहां अब घाटों से ऊपर हो रहा है. यहां तक कि गंगा आरती भी छतों पर हो रही है. वाराणसी में वरुणा नदी भी उफान पर है, जिसकी वजह से उसके आसपास बसे दस हज़ार परिवार प्रभावित हुए हैं. इलाहाबाद में भी गंगा का पानी रिहायशी इलाकों में घुस गया है.