आदरणीय साक्षी महाराज,
प्रणाम। आपको प्रणाम और आदरणीय इसलिए लिख रही हूं, क्योंकि एक तो आप उम्र में मुझसे बड़ें हैं, दूसरा आपके नाम के आगे और पीछे 'संत' और 'महाराज' जैसे उपमानों का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में मैं आपको 'डियर' और 'हाय' कहकर संबोधित करने का जोखिम नहीं उठा सकती।
आपके बारे में ज्य़ादा जानती नहीं, न ही कभी जानने की इच्छा रही, लेकिन जब से केंद्र में नई सरकार आई है, आप जब-तब सुर्खियों में आ ही जाते हैं। पहले गोडसे वाले बयान पर, फिर कल हिन्दू महिलाओं के चार बच्चों को जन्म देने वाले बयान पर। मैं आपके इस बयान से पसोपेश में हूं, क्योंकि समझ नहीं आ रहा है कि रियेक्ट कैसे करूं... क्योंकि जन्म से मैं भी हिन्दू हूं, और स्त्री भी, लेकिन फिर भी आपके चार बच्चों वाले आह्वान को आत्मसात करने के मूड में नहीं हूं। अब ऐसा नहीं है कि बिल्कुल ही इसके खिलाफ हूं, लेकिन मेरे मन में कुछ सवाल हैं... अगर आप मुझे उनका जवाब दे दें तो क्या पता मेरा भी मन बदल जाए।
आपने कहा कि हर हिन्दू स्त्री को चार बच्चे पैदा करने चाहिए और उनमें से एक साधु-संन्यासियों को दे देना चाहिए और दूसरे को सीमा पर लड़ने के लिए भेज देना चाहिए। पहली बात यह कि मैं मेरे बच्चे को खुद से अलग नहीं करना चाहती, कम से कम तब तक, जब तक कि वह अपना ख्य़ाल खुद रखने लायक न हो जाए और न ही कभी भी यह चाहूंगी कि वह भगवा आंदोलन का हिस्सा बने। दूसरी बात यह कि अगर मैं उसे आपके कहे के अनुसार सेना या फौज में भेजने का निर्णय लेती भी हूं तो वहां जाने से पहले 20-22 साल तक मुझे ही उसका पालन-पोषण करना पड़ेगा। मैं मेरे सात साल के बेटे को दिल्ली के एक कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ा रही हूं, इसलिए चाहती हूं कि बाकी के बच्चे भी उसी स्तर की शिक्षा पाएं। क्या उनके फौज में जाने से पहले, उनकी शिक्षा-दीक्षा और परवरिश का जिम्मा आप उठाएंगे...? क्या आप मेरी इन दोनों स्थितियों, या यूं कहे शर्तें मानने को तैयार हैं...?
पता नहीं, आप टीवी देखते हैं या नहीं, पर मैंने कल ही टीवी पर देखा कि सरकार लीगल गर्भपात के समर्थन में एक ऐड चला रही है, जिसमें साफ तौर पर यह कहा गया है कि किसी भी स्थिति में गर्भपात हमें सरकारी डॉक्टरों की देखरेख में ही कराने चाहिए। हालांकि इसमें कई नियम भी होंगे, जिनके बारे में मुझे अभी तफसील से पता करना होगा। अब या तो आप अपनी सरकार की राय से इत्तफाक नहीं रखते या सरकार आपकी राय से... आप दोनों के बीच संवादहीनता की एक बड़ी दीवार नज़र आती है... तभी तो आपके विचार इतने जुदा हैं। आपकी पार्टी अध्यक्ष ने भी आपके बयान से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह आपकी व्यक्तिगत टिप्पणी है और इस पर आगे फैसला पार्टी की डिसिप्लिनरी कमेटी करेगी।
आपने कहीं पर यह भी कहा कि 'इन देशद्रोहियों को संतोष नहीं हुआ है...' मैं भ्रम में हूं कि आप किन लोगों की बात कर रहे हैं...? कृपया खुलकर बताएं...
साक्षी महाराज, क्या आपको नहीं लगता कि आप अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए गरीब, धार्मिक, कम पढ़ी-लिखी महिलाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। क्या आप नफरत की राजनीति को महिलाओं की कीमत पर फलाना-फैलाना नहीं चाहते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो मेरा आपसे सीधा सवाल यह है कि आखिर आपने यह आह्वान एक धार्मिक सभा में ही क्यों किया...? क्या आप ऐसा आह्वान फिक्की के महिला सम्मेलनों या आर्मी या एयरफोर्स के किसी फंक्शन में कर सकते हैं...? शायद नहीं, क्योंकि तब वहां कोई भी आपको सीरियसली नहीं लेगा... आपने जान-बूझकर उन महिलाओं को अपना टारगेट ऑडियन्स बनाया, जिनके जीवन का विस्तार ही धर्म में होता है। जिनके लिए धर्म और धर्मगुरु ही जीवन का सार होते हैं... ये वे महिलाएं हैं, जिन्होंने अपने पांव पर अभी खड़ा होना नहीं सीखा है, जिन्हें घर की चारदीवारी से निकलने के लिए धर्म का सहारा लेना पड़ता है।
महाराज, ये वे महिलाएं हैं, जो आर्थिक रूप से दूसरों पर निर्भर हैं, फिर चाहे वह पति हो या बेटा... वह दूसरा व्यक्ति ही है। आपने कह तो दिया, पर क्या कभी आपने सोचा है कि अगर एक महिला चार-चार बच्चे पैदा करेगी तो उसकी अपनी सेहत किस कदर खत्म हो जाएगी, अगर चार-चार साल के गैप पर भी उसके बच्चे होंगे तो उसके जीवन के महत्वपूर्ण 16 साल बच्चों को पालने में ही निकल जाएंगे, और इस दौरान उसके शरीर के साथ-साथ उसका मन भी हमेशा के लिए ऑस्टियोपोरोसिस का शिकार हो जाएगा।
अब बताइए, मैं कैसे आपके बयान को महिला विरोधी और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के लिए महिलाओं का इस्तेमाल करने वाला और धूर्त बयान न मानूं...?
महाराज, मैं हिन्दू स्त्री हूं, हिन्दू धर्म के अनुसार जीवन जी रही हूं, अपने बेटे को एक भाई या बहन भी देना चाहती हूं, लेकिन इसके साथ-साथ अपने आप से भी बेहद प्यार करती हूं। मैं नहीं चाहती कि जब मैं अधेड़ावस्था में कदम रखूं तो मेरी हड्डियां इतनी कमज़ोर हो जाएं कि मैं पहाड़ों पर न चढ़ सकूं, मैं खूब जीना चाहती हूं, अपने परिवार और बच्चे के साथ... उनके साथ घूमना-फिरना, समुंदर की सैर करना, हंसी-ठहाके लगाना, अपने दुख शेयर करना, अपने बूढ़े होते माता-पिता की देखभाल करना, फिल्म देखना... ये सब करना चाहती हूं। मैं नहीं चाहती कि मेरा बच्चा हमेशा यह शिकायत करते हुए बड़ा हो कि मेरी मां के पास कभी मेरे लिए वक्त नहीं रहा, क्योंकि बच्चे को सबसे ज्य़ादा अपनी मां की ज़रूरत होती है।
अंतिम और सबसे बड़ी बात मैं आर्थिक रूप से दूसरों पर निर्भर नहीं होना चाहती, मैं ये सारी खुशियां अपने दम पर, अपनी मेहनत से अर्जित करना चाहती हूं... किसी रिश्ते की आड़ में बोनस स्वरूप नहीं। ऐसे में मेरे पास आपकी बात न मानने के अलावा कोई और चारा नहीं है... अगर आप मेरे इन सवालों का जवाब दे दें तो शायद मेरा मार्गदर्शन हो...
आपके जवाब के इंतज़ार में,
स्वाति अर्जुन
This Article is From Jan 08, 2015
साक्षी महाराज के नाम स्वाति अर्जुन की खुली चिट्ठी...
Vivek Rastogi, Swati Arjun
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Updated:जनवरी 08, 2015 18:29 pm IST
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Published On जनवरी 08, 2015 12:41 pm IST
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Last Updated On जनवरी 08, 2015 18:29 pm IST
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