अभिषेक शर्मा की कलम से : सलमान केस के बहाने

मुंबई:

बड़े सवाल उठ रहे हैं। 12-13 साल एक हिट एंड रन का केस चलता रहा फिर भी हमसे उम्मीद की जा रही है कि हम इंसाफ के तराजू पर यकीन करते रहें। अरसे तक केस की कई अहम फाइलें गायब रहीं फिर भी राज्य व्यवस्था हमसे कहती है कि भरोसा रखें।

सरकारी वकील बदलते रहे, बिना किसी बड़ी वजह के फिर भी हम यकीन करते रहें। 6 साल तक केस हिला डुला तक नहीं, तब भी हम उम्मीद लगाए रहें। हमें ये यकीन भी दिलाया गया है कि इंसाफ हुआ है...खानापूर्ति के लिये देर तक अदालत खुली रही, हमें अच्छा लग रहा है आज न्याय हो रहा है! बड़े वकीलों ने सेशन कोर्ट की तकनीकी कमजोरी का फायदा उठा लिया तब भी हमें कुछ ग़लत नहीं लगा।

मुझे बुरा नहीं लग रहा जब फिल्मी दुनिया के बड़े नाम सिर्फ अपने 'भाई' के लिये बेचैन हैं। सबको उनकी चिंता है। होनी भी चाहिये अपने साथ काम करने वाले की। लेकिन कोई एक शख्स नहीं मिला जो कहे कि मज़दूरों का भी इंसाफ होना चाहिये।

इन नाउम्मीदी भरी बातों के बीच मेरे सुपर स्टारों से मुझे बहुत उम्मीदें हैं। मेरे सुपर स्टार वो 25 लोग हैं जो नहीं बदले। गरीब कलीम और चश्मदीद की गवाही बदली ना जा सकी। कलीम की गवाही बांद्रा की अदालत में ऐसी चली कि बचाव पक्ष ने सारे घोड़े खोल दिये। गवाही खरीदने वाली बातें कई बार सही लगने लगती हैं लेकिन इस बार हमें ये नाउम्मीदी नहीं हुई। रील लाइफ के सुपर हीरो पर ये रियल लाइफ के दबंग कई गुना भारी पड़े। रेन बार के ड्यूटी मैनेजर रिज़वान से बात कर रहा था तो पूछ ही लिया कि क्या बयान जस का तस रखा? उसका जवाब सिर्फ एक लाइन में था - जो देखा था वही बताया। रिज़वान उस रात का गवाह है कि कैसे हादसे के पहले सलमान ने शराब पी थी। रिज़वान जैसे 24 और गवाह हैं जो बदले नहीं। वो हर मौके पर सलमान की दलीलों को काटते रहे।

नाउम्मीद तो उस पुलिस ने भी नहीं किया जो देर से सही कुछ करती हुई दिखी। सलमान ने जिस रात एक शख्स को शराब के नशे में कुचला था उस रात के सारे दस्तावेज अब मेरे पास भी हैं। सबको इत्मीनान से देखा है। मौके पर पहुंचे पुलिस वालों ने हर काम ठोक बजाकर किया है। पुलिस ने उस रात शिद्दत से सलमान को तलाशा था, इसके कागज़ी सबूत भी हैं। अगर सलमान उस रात न मिलते तो साबित ही ना हो पाता कि उन्होंने शराब पी है। पुलिस ने कोशिश की तभी तो पता चला कि वो किस बार में गये थे क्या पिया था। ये पुलिस ही थी जिसने सबूत जुटाए तो उस बिल को भी नहीं छोड़ा जो सलमान और उसके साथियों ने रेन बार में चुकाया था।

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इन नाउम्मीदियों और उम्मीदियों के बीच झूलते हुये 12 साल में सब कुछ बदल गया है। अदालतें बदल गईं, पुलिस वाले रिटायर हो गये, गवाह अपने अपने घर चले गये, सिर्फ नहीं बदला है तो फुटपाथ पर सोने वाले। इस शहर में अब भी लोगों के सोने की जगह नहीं है। बरसात में रेलवे स्टेशन पर सहारा मिलता है और बाकी के मौसम में फुटपाथ पर। सच में मायूसी सिर्फ उस वक्त होती है जब मजदूर की मौत के बाद तो इंसाफ की लड़ाई में पूरी जान लगा दी जाती है लेकिन जीते जी उन्हें छत देने के लिये कोई तैयार नहीं।