प्रतीकात्मक फोटो
रायपुर:
छत्तीसगढ़ में बालोद जिले के गांवों में लोगों ने स्थानीय प्रशासन की अनूठी मुहिम के तहत अपने घरों के बाहर अपनी बेटियों की नेमप्लेट लगाई है, ताकि लड़कियों की शिक्षा एवं समाज में उनकी पहचान को सशक्त बनाया जा सके। माओवाद से आंशिक रूप से प्रभावित बालोद जिले में डेढ़ महीने पहले इस पहल की शुरूआत की गई थी, जिसके तहत गांवों के घरों के बाहर परिवार की छात्राओं की नेमप्लेट लगाई गई हैं।
बालोद के कलेक्टर राजेश सिंह राणा ने ‘पीटीआई भाषा’ से कहा, ‘‘लोगों को बच्चियों के महत्व के बारे में जागरूक करने के लिए और लड़कियों में साक्षरता बढ़ाने के लिए यह मुहिम शुरू की गई है।’’ उन्होंने कहा कि बालोद के विभिन्न गांवों में विभिन्न आयु वर्ग की करीब 2,700 लड़कियों के नाम की पट्टियां उनके घरों के बाहर लगाई गई हैं।
राणा ने कहा कि स्थानीय जन प्रतिनिधियों, सरपंच एवं अधिकारियों के साथ विचार विमर्श के बाद प्रधानमंत्री की ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ मुहिम की सोच को साकार करने के मकसद से यह मुहिम शुरू की गई थी। उन्होंने कहा कि कम अवधि में ही इस मुहिम के 12 ग्राम पंचायतों में सफल परिणाम देखने को मिले हैं।
एक गांव की 11वीं की छात्रा पेमिना साहू ने कहा, ‘‘यह हमारे लिए सपना साकार होने जैसा है। इस मुहिम के कारण लड़कियों के प्रति गांवों के लोगों की सोच बदल रही है।’’ एक अन्य माध्यमिक स्कूल की छात्रा जागृति टेकाम ने कहा कि इस प्रकार की मुहिम केवल एक जिले तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि यह राज्य के हर कोने में शुरू की जानी चाहिए ताकि लोगों को यह अहसास दिलाया जा सके कि लड़कियां किसी भी तरह लड़कों से कम नहीं हैं।
कलेक्टर ने कहा कि यह मुहिम माता-पिता को अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के लिए ही प्रेरित नहीं कर रही, बल्कि उनकी पुरूष प्रधान सोच को भी बदल रही है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने के लिए नेमप्लेट को हरे रंग से रंगा गया है और इस पर सफेद पेंट से नाम लिखे गए हैं।
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
बालोद के कलेक्टर राजेश सिंह राणा ने ‘पीटीआई भाषा’ से कहा, ‘‘लोगों को बच्चियों के महत्व के बारे में जागरूक करने के लिए और लड़कियों में साक्षरता बढ़ाने के लिए यह मुहिम शुरू की गई है।’’ उन्होंने कहा कि बालोद के विभिन्न गांवों में विभिन्न आयु वर्ग की करीब 2,700 लड़कियों के नाम की पट्टियां उनके घरों के बाहर लगाई गई हैं।
राणा ने कहा कि स्थानीय जन प्रतिनिधियों, सरपंच एवं अधिकारियों के साथ विचार विमर्श के बाद प्रधानमंत्री की ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ मुहिम की सोच को साकार करने के मकसद से यह मुहिम शुरू की गई थी। उन्होंने कहा कि कम अवधि में ही इस मुहिम के 12 ग्राम पंचायतों में सफल परिणाम देखने को मिले हैं।
एक गांव की 11वीं की छात्रा पेमिना साहू ने कहा, ‘‘यह हमारे लिए सपना साकार होने जैसा है। इस मुहिम के कारण लड़कियों के प्रति गांवों के लोगों की सोच बदल रही है।’’ एक अन्य माध्यमिक स्कूल की छात्रा जागृति टेकाम ने कहा कि इस प्रकार की मुहिम केवल एक जिले तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि यह राज्य के हर कोने में शुरू की जानी चाहिए ताकि लोगों को यह अहसास दिलाया जा सके कि लड़कियां किसी भी तरह लड़कों से कम नहीं हैं।
कलेक्टर ने कहा कि यह मुहिम माता-पिता को अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के लिए ही प्रेरित नहीं कर रही, बल्कि उनकी पुरूष प्रधान सोच को भी बदल रही है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने के लिए नेमप्लेट को हरे रंग से रंगा गया है और इस पर सफेद पेंट से नाम लिखे गए हैं।
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