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बुजुर्ग माता-पिता की सेवा नहीं कर सकते बच्चे, तो जायदाद पर भी हक नहीं : उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग
- Saturday April 3, 2021
- Reported by: ANI, Edited by: सिद्धार्थ चौरसिया
उन्होंने कहा कि, "अधिनियम में एक और प्रावधान है जिसमें कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति अपने घर से किसी को निकालना चाहता है तो उन्हें इसके लिए दीवानी मुकदमा दायर करना होगा. एक सिविल मुकदमा लंबे समय तक चलता है और इसके लिए एक महंगे वकील और मुख्य स्रोत की आवश्यकता होती है." कानूनी खर्च वहन करने के लिए उस संपत्ति का मूल्यांकन बना रहता है. ऐसी स्थिति में हमने एक संशोधन प्रस्तावित किया है, जिसके माध्यम से बुजुर्ग माता-पिता की संपत्ति पर रहने वाले बच्चों और रिश्तेदारों को संपत्ति छोड़ने के लिए कहा जाएगा.”
- ndtv.in
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सुप्रीम कोर्ट का फैसला, संपत्ति का अधिकार एक मूल्यवान संवैधानिक अधिकार, केंद्र से मालिक को जमीन लौटाने को कहा..
- Tuesday November 24, 2020
- Reported by: आशीष कुमार भार्गव
दरअसल यह संपत्ति 1964 में मुआवजे को तय करके रक्षा उद्देश्यों के लिए केंद्र द्वारा ली गई थी. यह मामला दो बार कर्नाटक हाईकोर्ट में गया और अदालत ने हालांकि केंद्र के खिलाफ कहा कि सरकार के दावे की कोई योग्यता नहीं है,लेकिन मालिक को भूमि सौंपने से इनकार कर दिया क्योंकि ये जमीन केंद्र द्वारा रक्षा उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल की रही थी.
- ndtv.in
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बुजुर्ग माता-पिता की सेवा नहीं कर सकते बच्चे, तो जायदाद पर भी हक नहीं : उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग
- Saturday April 3, 2021
- Reported by: ANI, Edited by: सिद्धार्थ चौरसिया
उन्होंने कहा कि, "अधिनियम में एक और प्रावधान है जिसमें कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति अपने घर से किसी को निकालना चाहता है तो उन्हें इसके लिए दीवानी मुकदमा दायर करना होगा. एक सिविल मुकदमा लंबे समय तक चलता है और इसके लिए एक महंगे वकील और मुख्य स्रोत की आवश्यकता होती है." कानूनी खर्च वहन करने के लिए उस संपत्ति का मूल्यांकन बना रहता है. ऐसी स्थिति में हमने एक संशोधन प्रस्तावित किया है, जिसके माध्यम से बुजुर्ग माता-पिता की संपत्ति पर रहने वाले बच्चों और रिश्तेदारों को संपत्ति छोड़ने के लिए कहा जाएगा.”
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सुप्रीम कोर्ट का फैसला, संपत्ति का अधिकार एक मूल्यवान संवैधानिक अधिकार, केंद्र से मालिक को जमीन लौटाने को कहा..
- Tuesday November 24, 2020
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दरअसल यह संपत्ति 1964 में मुआवजे को तय करके रक्षा उद्देश्यों के लिए केंद्र द्वारा ली गई थी. यह मामला दो बार कर्नाटक हाईकोर्ट में गया और अदालत ने हालांकि केंद्र के खिलाफ कहा कि सरकार के दावे की कोई योग्यता नहीं है,लेकिन मालिक को भूमि सौंपने से इनकार कर दिया क्योंकि ये जमीन केंद्र द्वारा रक्षा उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल की रही थी.
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