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उषा सिलाई स्कूल: कहानियां जो आत्मनिर्भरता की गाथा सुनाती हैं

उषा सिलाई स्कूल का एक ही उद्देश्य है और वो है कि महिलाओं की जिंदगियों में कौशल और स्वतंत्र का बिगुल बजाना. उषा सिलाई स्कूल का फोकस ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के बीच उद्यमिता कल्चर को प्रेरित करना हैं. उषा सिलाई स्कूल कई कॉरपोरेट जैसे 'आवास फाउंडेशन', 'नॉन-प्रॉफिट आर्गेनाईजेशन' और 'बलरामपुर चीनी मिल्स लिमिटेड' के साथ पार्टनरशिप कर महिलाओं को कमाने का मौक़ा देने में लगा हुआ है.

  • महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहल. महिलाएं विकलांग या शारीरिक रूप से कमजोर हो सकते हैं, लेकिन उन सभी का एक ही सपना है, 'आत्मनिर्भर होने का, अपने परिवार की देखभाल करने का' और आवास फाउंडेशन के साथ उषा ने राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र की ग्रामीण महिलाओं को सिलाई और सिलाई ट्रेनिंग में कौशल देने और उन्हें कमाने का एक स्थायी और वैकल्पिक स्रोत प्रदान करने के लिए 'आवास सिलाई स्कूल' शुरू किया.
  • राजस्थान में कोविड-19 महामारी के दौरान 150 महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया. आज ये महिलाएं कमाती रु. 3,000 - रु-5,000 हैं और अपने-अपने  परिवारों की आजीविका चलाने में मदद करती हैं. यह कोलैबोरेशन गुजरात में अच्छी तरह से दर्शाया जा सकता है जहां 100 विशेष रूप से विकलांग महिलाओं के साथ इस वर्ष 100 उषा सिलाई स्कूल स्थापित किए जायेंगे.इसमें से 25 महिलाओं को पहले ही सात दिवसीय प्रशिक्षण दिया जा चुका है.
  • यह प्रक्रिया केवल प्रशिक्षण तक ही सीमित नहीं है. एक बार महिलाओं के साथ एक रिश्ता बन जाने के बाद, यह जीवन भर बना रहता है.जब भी किसी महिला को सिलाई में कोई कठिनाई होती है, तो उषा की एक तकनीकी टीम 24 घंटे के भीतर उनके सभी सवालों और शंकाओं का जवाब देने के लिए पहुंच जाती है. उषा ने महिलाओं की समस्याओं को हल करने और लिखित और ऑडियो संदेशों के माध्यम से उषा टीम तक पहुंचने में मदद करने के लिए एक मोबाइल ऐप भी लॉन्च किया है.
  • ऐसी ही एक महिला गुजरात के सिंघारवा गांव की 34 वर्षीय देसाई चेतना बेन, जिन्हें इस ऐप के जरिए मदद मिली है.देसाई बेन अपने परिवार के साथ रहती हैं - माता-पिता, दो भाई और एक भाभी, देसाई बेन बचपन से बिना सहारे के नहीं चल सकतीं; उन्हें हमेशा से एंब्रॉयडरी करने का शौक रहा है. वह आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना चाहती थी और उषा आवास सिलाई स्कूल ने उन्हें स्वतंत्र पंक्षी की तरह उड़ान भरने के लिए पंख दिए.
  • उत्तर प्रदेश में गोंडा और बस्ती की सीमा पर स्थित बभनान के दशकों पुराने पिछड़ेपन से निपटने का यह एक नया प्रयास है. इस प्रयास का नेतृत्व बभनन चीनी मिल, या चीनी मिल, और उषा सिलाई स्कूल कार्यक्रम द्वारा किया जा रहा है. इस पहल ने क्षेत्र में आशा और खुशी की एक नई भावना पैदा की है. 35 चयनित महिलाओं को उषा सिलाई स्कूल द्वारा प्रशिक्षित किया गया है, जिससे उन्हें अपने लिए आजीविका का एक स्रोत मिल रहा है, और अन्य महिलाओं को भी प्रशिक्षित करने का मौका मिला है.
  • महिलाओं को दूर-दराज के क्षेत्रों के प्रशिक्षण स्कूलों में भेजा जाता था, जहां उनके रहने और खाने की भी व्यवस्था की जाती थी.महिलाओं को एक सप्ताह तक प्रशिक्षित किया गया जिसके बाद एक वर्ष तक उनकी प्रगति पर लगातार नजर रखी जाती हैं. आज ये महिलाएं आत्मनिर्भर हो गई हैं. वे 8,000 से रु. 10,000 प्रति माह  रुपये कमाते हैं और अन्य महिलाओं को पढ़ाने का भी काम करती हैं.
  • पूजा बलरामपुर चीनी मिल से कुछ ही दूरी पर एक गांव में रहती है.वह बीएड करना चाहती थी. लेकिन डिग्री की बजाय शादी कर ली, पूजा के पास समय नहीं था लेकिन कुछ करने का जुनून जरूर था और यही जुनून उन्हें उषा सिलाई स्कूल में ले आया.
  • पूजा ने पहले सिलाई सीखी थी और अक्सर उस कौशल का इस्तेमाल अन्य लड़कियों को प्रशिक्षित करने के लिए करती थी. जब उन्हें बभनान में एक आवासीय प्रशिक्षण शिविर के बारे में अवगत कराया गया, तो उन्होंने इसमें शामिल होने में रुचि दिखाई और केवल अपने पति से ही उन्हें ऐसा करने का समर्थन मिला है. उनके प्रोत्साहन और समर्थन से, पूजा ने अपना प्रशिक्षण पूरा किया और एक नई उषा मशीन से लैस होकर, क्षेत्र में पहला उषा सिलाई स्कूल शुरू किया.लेकिन नियति ने उनके लिए कुछ और ही तय किया हुआ था. इन सब के बीच उन्होंने अपने पति यानी कि उस इंसान को खो दिया जिन्होंने उनका हर कदम पर समर्थन किया था. उनके पति के यादों ने ही उन्हें आगे बढ़ने की ताकत दी.
  • पूजा सुबह 5 बजे उठ जाती है, घर के सारे काम करती है, खाना बनाती है और अपने बच्चे को स्कूल भेजती है. सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक वह अपना सिलाई स्कूल और दुकान चलाती हैं. इसी तरह रात 11 बजे तक वह अपने बच्चे, बुजुर्ग ससुर, सिलाई स्कूल, कॉस्मेटिक की दुकान और ब्यूटी पार्लर भी संभालती हैं. पूजा की कहानी दूसरी लड़कियों के लिए एक मिसाल और हार न मानने की एक शानदार कहानी है.
  • पूजा के इस समर्पण के कारण ही उनके गाँव के आसपास के क्षेत्रों की 50 से अधिक लड़कियों ने सिलाई की ट्रेनिंग ले पाई हैं. उन लड़कियों को आत्मनिर्भरता की राह पर चल पा रहीं हैं. उषा सिलाई स्कूल और बभनान चीनी मिल के लोगों की भविष्य की परियोजनाओं में और मदद पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित किया हैं.
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