हेल्थ, शिक्षा और आय से वंचित ट्राइबल ग्रुप की जिंदगी सुधार रही उषा सिलाई स्कूल
Updated: 03 जनवरी, 2022 07:19 PM
भारत में ट्राइबल की आबादी 10 करोड़ से भी ज्यादा है और यह आबादी पूरी दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सबसे ज्यादा है. हालांकि, ट्राइबल आबादी को दी गई सुरक्षा के बावजूद यह ग्रुप विकास के 3 सबसे जरूरी आकलन हेल्थ, एजुकेशन और इनकम से वंचित है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए उषा सिलाई स्कूल कार्यक्रम ने 'ट्राइबल एक्सक्लूसिव उषा सिलाई स्कूल प्रोजेक्ट' शुरू किया. इस पहल का उद्देश्य आदिवासी महिलाओं को बेहतर आय अर्जित करने में मदद करके उनका समर्थन करना है.
'ट्राइबल एक्सक्लूसिव उषा सिलाई स्कूल' पहल देश के सबसे मार्जिनलाइज़्ड हिस्सों में महिलाओं तक पहुंच गई और अब उन्हें नए स्किल्स सिखाती है.
यह पहल उन्हें एक ऐसा प्लेटफॉर्म देती है जो उन्हें जीविका चलाने में मदद करें.
उषा की योजना भारत के 9 राज्यों के 29 जिलों में 500 आदिवासी एक्सक्लूसिव उषा सिलाई स्कूल खोलने की है. इन 500 में से 280 स्कूल अभी सफलतापूर्वक चल रहे हैं.
उषा इंटरनेशनल लिमिटेड ने भारत के दक्षिणी भाग निकोबार में ट्राइबल डेवलपमेंट कौंसिल (टीडीसी) के साथ भागीदारी की है. निकोबार जिले के नानकॉरी में दस नए उषा क्लासिकल सिलाई स्कूल खोले गए हैं और 29 नवंबर से 7 दिसंबर तक कमोर्टा के कम्युनिटी हॉल में ट्रेनिंग आयोजित किया गया था. निकोबार में अलग-अलग गांवों से चुनी गई महिला उद्यमी गरीब आदिवासी समुदायों से हैं.
झारखंड में पश्चिमी सिंहभूम जिले के घने जंगलों के अंदर रहने वाली प्रभा ढांगा के जीवन में उषा सिलाई स्कूल कार्यक्रम एक जरूरी मोड़ बन गया है.
प्रभा ढांगा इससे अच्छी कमाई कर रही है और अपने गांव की अन्य महिलाओं को भी ट्रेनिंग दे रही है लेकिन नक्सल प्रभावित क्षेत्र में होना कोई आसान काम नहीं था.हालांकि, प्रभा को भरोसा है कि आदिवासियों के भाग्य और क्षेत्र की प्रतिष्ठा को बेहतरी के लिए बदला जा सकता है.
ट्राइबल एक्सक्लूसिव उषा सिलाई स्कूल इनिशिएटिव ने अरुणाचल प्रदेश की 25 वर्षीय आदिवासी महिला फेमो मनहम को एक उद्यमी और दूसरों के लिए एक रोल मॉडल बनने में मदद की.
फेमो और उनके आदिवासी छात्र सिलाई स्कूल के माध्यम से गरीबी और बेरोजगारी के खिलाफ अपनी लड़ाई जीत रहे है.
फेमो कुछ पैसे भी बचा लेती है और अपने बच्चों की भलाई के लिए इसका इस्तेमाल करने की योजना बना रही है. उनकी जैसी महिलाओं के लिए यह आर्थिक आजादी पंखों से काम नहीं है. वो तो उड़ान भर ही रही है लेकिन साथ में वो और महिलाओं को भी उड़ने के लिए प्रोत्साहित कर रही है.