कोरोनावायरस: क्या होते हैं सीरो सर्वे और क्यों हैं ये महत्वपूर्ण?
नोवल कोरोनावायरस ने भारत में करीब 1.08 लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है, लेकिन आईसीएमआर की ओर से किए गए ताजा सीरो सर्वे में सामने आया है कि भारत के करीब 29 करोड़ लोग इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं. अब सवाल उठता है कि कन्फर्म मामलों और सीरो सर्वे में सामने आए मामलों में इतना अंतर क्यों पाया गया है? विशेषज्ञों के अनुसार इसकी वजह लोगों की ओर से संक्रमण की सूचना न दिया जाना हो सकता है या फिर लक्षण सामने न आना एक कारण हो सकता है. जानें सीरो सर्वे के बारे में...
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कैसे होता है सीरो सर्वे: इसे सेरोलॉजी टेस्ट के जरिए किया जाता है. इस टेस्ट में व्यक्ति के शरीर में खास संक्रमण के खिलाफ बनने वाले एंटीबॉडीज की मौजूदगी का पता लगाया जाता है. अब देखा जाता है कि क्या व्यक्ति के इम्यून सिस्टम ने इंफेक्शन का जवाब दिया है. ह्यूमन बॉडी में दो तरह की एंटीबॉडीज बनती हैं, जिनमें आईजीएम और आईजीजी शामिल हैं. ये दोनों ही संक्रमण के खिलाफ काम करते हैं. आईजीजी एंटीबॉडीज शरीर में लंबे समय तक रहते हैं.
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सीरो सर्वे का क्या है महत्व? सीरो सर्वे दो चीजें दर्शाता है, पहली कि कितनी फीसदी जनसंख्या वायरस की चपेट में आई है? दूसरा, कौन से ग्रुप में वायरस के लक्षण ज्यादा पाए गए हैं. यही वजह इस सर्वे को बाकी सर्वे से अलग बनाता है. खास बात है कि सीरो सर्वे रोज किया जाता है.
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विशषज्ञों के मुताबिक, बॉडी के मेमोरी सेल्स, जो टी सेल्स और बी सेल्स के बने हुए हैं, वो किसी भी संक्रमण के होने पर एक समय तक उसके होने की याद संजोए रखते हैं. ताकि जब वायरस फिर हमला करें, तो मेमोरी सेल्स इम्यून सिस्टम को और मजबूत बना दे. लेकिन, कोरोना के मामले में ये पता नहीं चल पाया है कि इम्यूनिटी कब तक ऐसे काम कर पाती है. स्टडीज के मुताबिक ये चार से 6 महीनों तक काम करती है.