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मां-बाप और अपना किया पिंडदान, देखिए महाकुंभ में सबकुछ त्याग 1500 कैसे बने नागा साधु

जूना अखाड़ा में शनिवार को नागा दीक्षा की शुरुआत हो गई और प्रथम चरण में 1,500 अवधूतों को नागा संन्यासी की दीक्षा दी गई.

  • श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय मंत्री श्री महंत चैतन्य पुरी ने बताया कि गंगा के तट पर पहले चरण में 1,500 अवधूतों को नागा दीक्षा दी गई है.
  • जूना अखाड़ा, संन्यासी अखाड़ों में सबसे अधिक नागा संन्यासियों वाला अखाड़ा है. इस अखाड़े में निरंतर नागा साधुओं की संख्या बढ़ रही है.
  • नागा संन्यासी बनने में सबसे पहले साधक को ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है.
  • उसे तीन साल तक गुरुओं की सेवा करनी होती है और अखाड़ा के नियमों को समझना होता है.
  • इस अवधि में ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है. यदि अखाड़ा और उस व्यक्ति का गुरु इस बात को लेकर निश्चिंत हो जाते हैं कि वह दीक्षा का पात्र हो गया है तो उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष और फिर अवधूत बनाया जाता है.
  • महाकुंभ में गंगा किनारे इनका मुंडन कराया गया और 108 बार गंगा नदी में डुबकी लगवाई गई. अंतिम प्रक्रिया में पिंडदान और दंडी संस्कार किया गया.
  • श्री महंत चैतन्य पुरी ने बताया कि अखाड़े की धर्म ध्वजा के नीचे अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर नागा दीक्षा देते हैं.
  • प्रयागराज के महाकुंभ में दीक्षा लेने वालों को राज राजेश्वरी नागा, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को बर्फानी और नासिक वालों को खिचड़िया नागा के नाम से जाना जाता है.
  • इन्हें अलग-अलग नाम से केवल इसलिए जाना जाता है, जिससे उनकी यह पहचान हो सके कि किसने कहां दीक्षा ली है.
  • बता दें कि महाकुंभ 13 जनवरी से शुरू हो गया है. जो कि 26 फरवरी तक चलने वाला है
  • उम्मीद है कि इस बार महाकुंभ में 40 करोड़ लोग आने वाले हैं
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