
Trikuta Parvat Katha: जम्मू-कश्मीर के कटरा नगर से लगभग 13 किलोमीटर की पैदल यात्रा पर त्रिकुटा पर्वत स्थित है. यह पर्वत 5,200 फीट ऊंचा है और इसमें तीन चोटियां हैं. बता दें कि इस पर्वत पर ही भारत के सबसे प्रसिद्ध और प्राचीन धार्मिक स्थलों में से एक माता वैष्णो देवी का मंदिर है. पर्वत पर गुफा के भीतर तीन पवित्र पिंडियां हैं. दाईं ओर माता काली, बाईं ओर माता सरस्वती और बीच में माता लक्ष्मी. इन तीनों पिण्डियों के सम्मिलित रूप को वैष्णो देवी माता कहा जाता है और माता वैष्णों देवी को भक्त त्रिकुटा देवी भी कहते हैं. आइए जानते हैं इस पर्वत और माता रानी से जुड़ी पौराणिक कथा-
त्रिकुटा पर्वत की कथा
हिंदू धर्म में त्रिकुटा पर्वत के संबंध में कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं. इन्हीं में एक कहानी के अनुसार, एक बार राक्षस भैरवनाथ ने एक कन्या का पीछा किया. भैरवनाथ इस बात से अनजान था कि जिसे वो साधारण कन्या समझ रहा है, असल में वो माता वैष्णो देवी हैं. भैरवनाथ से बचते हुए माता भागकर त्रिकुटा पर्वत पर पहुंचीं और एक गुफा में जाकर बैठ गईं. गुफा के अंदर माता ने नौ महीने तक तपस्या की. इस दौरान हनुमान जी गुफा के द्वार पर पहरा दे रहे थे.
9 महीने बाद माता को ढूंढते हुए भैरवनाथ भी गुफा तक आ पहुंचा. द्वार पर हनुमान जी ने उसे वापस लौट जाने की चेतावनी दी लेकिन भैरव नहीं माना. तब माता ने महाकाली का रूप धारण किया और अपने त्रिशूल से भैरव का सिर धड़ से अलग कर दिया. वध के बाद भैरवनाथ ने पश्चाताप किया और माता से क्षमा मांगी. भैरव की हालत पर माता को दया आ गई. तब माता ने उसे मोक्ष प्रदान किया और वरदान दिया कि मेरे दर्शन तभी पूरे माने जाएंगे, जब भक्त तुम्हारे दर्शन भी करेंगे.
कहा जाता है कि भैरव नाथ का धड़ शरीर से अलग होकर करीब तीन किलोमीटर दूर जाकर गिया था. आज वही स्थान भैरव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. जो भक्त माता के दर्शन करने त्रिकुटा पर्वत पर जाता है, वो दर्शन के बाद भैरव मंदिर भी जरूर जाता है. तभी उसकी यात्रा सफल मानी जाती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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