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This Article is From May 27, 2024

इस गांव में मोबाइल ले जाना है निषेध, यहां बल्ब और पंखे तक नहीं हैं, कदम-कदम पर बिखरा है आध्यात्म

इस गांव के सभी लोग बेहद पुराने दौर की तरह अभी भी मस्त होकर जिंदगी जी रहे हैं. यहां मोबाइल और AC तो छोड़िए लोगों के घरों में पंखे तक नहीं है.

इस गांव में मोबाइल ले जाना है निषेध, यहां बल्ब और पंखे तक नहीं हैं, कदम-कदम पर बिखरा है आध्यात्म
वृंदावन के पास ऐसा ही एक गांव है जहां जाकर आपको लगेगा कि आप पुराने जमाने में हैं.

Tatiya Village: समय के साथ-साथ दुनिया बदलती आई है. आदम युग से अब तक इंसान कितना बदल गया है यह आपके और हमारे आस-पास देखने को मिलता है. वो जमाना कुछ लोगों को याद होगा जब मोबाइल नहीं थे. इससे पहले की बात करें तो दशकों पहले लोग बिना बिजली के भी गुजारा करते थे. लेकिन, अब बिजली के बिना आप मिनट भर नहीं रह सकते. मोबाइल का भी यही हाल है कि इसके बिना आप रह नहीं सकते हैं. मगर क्या आप यकीन करेंगे कि ऐसी भी जगह है जहां लोग अभी भी बिजली के उपकरण और मोबाइल (Mobile) यूज नहीं करते हैं. आप शायद यकीन नहीं करेंगे लेकिन यह सच है. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में वृंदावन के पास ऐसा ही एक गांव है जहां जाकर आपको लगेगा कि आप पुराने जमाने में हैं.

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टटिया गांव में नहीं हैं बिजली के बल्ब और पंखे  

इस अनोखे गांव का नाम है टटिया गांव. इस गांव के सभी लोग बेहद पुराने दौर की तरह अभी भी मस्त होकर जिंदगी जी रहे हैं. यहां मोबाइल और AC तो छोड़िए लोगों के घरों में पंखे तक नहीं है. यहां अभी भी डोरी खींच कर चलाने वाला पंखा चल रहा है. यहां बिजली का कोई सामान नहीं है. इस गांव में कोई मोबाइल लेकर भी नहीं जाता है. यहां तक कि रात में रोशनी के लिए लोग लैंप और डिबरी जलाते हैं क्योंकि यहां बिजली के बल्ब (Light Bulb) तक नहीं जलाए जाते हैं. यहां मोबाइल ले जाना तो निषेध है ही, इसके अलावा यहां पानी पीने के लिए भी कुएं का इस्तेमाल होता है. इस गांव में सभी औरतें सिर ढक कर रहती हैं और हर वक्त पूजा-पाठ में लोग रमे रहते हैं.

इस गांव में मोबाइल ले जाने पर है रोक

कहते हैं कि जब वृंदावन के सातवें आचार्य ललित किशोरी देव जी ने निधिवन छोड़ा तो वे इस जगह पर ध्यान करने के लिए बैठ गए. यहां खुला जंगल था. शिकारियों और जानवरों से बचाने के लिए भक्तों ने आस-पास बांस के डंडों से उनके लिए छत और आस-पास घेरा बना दिया. बांस की छड़ियों को इस इलाके में टटिया  (Tatiya) कहा जाता है. इसलिए इस जगह का नाम टटिया गांव पड़ गया. इस इलाके में लोग दिन रात भजन कीर्तन में डूबे रहते हैं. यहां कदम-कदम पर आपको भक्ति में लीन साधु संत मिल जाएंगे. यहां भगवान की आरती नहीं होती है बल्कि राधा रानी और भगवान कृष्ण के गीत गाए जाते हैं. इस इलाके में नीम, कदंब, पीपल के काफी पेड़ हैं और उनके पत्तों पर भी राधा नाम उभरा हुआ दिखता है. यहां के साधु संत दक्षिणा नहीं लेते हैं, उनके लिए गांव के घरों से ही भोजन भेजा जाता है. देखा जाए तो तकनीक के इस दौर में ये अनोखा गांव भक्ति और साधना का महत्व समझाता है.

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