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उपेन्द्र कुशवाहा आख़िर तेजस्वी यादव से नाराज़ क्यों हैं?

बिहार में महागठबंधन में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा. हर सहयोगी की एक शिकायत है कि राष्ट्रीय जनता दल और उसके नेता तेजस्वी यादव सहयोगियों के प्रति गंभीर नहीं हैं और सीटों के तालमेल पर टालमटोल कर रहे हैं.

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उपेन्द्र कुशवाहा और तेजस्वी यादव - फाइल फोटो

बिहार में महागठबंधन में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा. हर सहयोगी की एक शिकायत है कि राष्ट्रीय जनता दल और उसके नेता तेजस्वी यादव सहयोगियों के प्रति गंभीर नहीं हैं और सीटों के तालमेल पर टालमटोल कर रहे हैं. गुरुवार को उपेन्द्र कुशवाहा और उनकी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने तो कह दिया कि राजद नेतृत्व का प्रवाह एकतरफ़ा फ़ैसले लेने का रहा है, यही कारण है कि अब तक महागठबंधन के विभिन्न दलों के बीच नेतृत्व के सवाल पर मत भिन्नता बरकरार है.

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कुशवाहा ने अपनी पार्टी के ज़िला अध्यक्षों, राष्ट्रीय कमिटी और प्रदेश कमिटी की एक बैठक के बाद कहा कि महागठबंधन की एकता बचाने की सभी कोशिशों के बाद भी अब उसे इस बात की कोई उम्मीद नहीं रही कि इस बार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन लोकसभा चुनावों की तरह एक‍ जुट होकर लड़ेगी. इस बैठक में एक प्रस्ताव पारित कर वैकल्पिक सरकार के गठन के लिए जो उचित निर्णय हो उसके लिए उपेंद्र कुशवाहा को अधिकृत किया गया है. पार्टी द्वारा पारित प्रस्ताव में माना गया कि अब तक राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं के साथ सीटों के समझौते पर कई दौर और स्तर पर की गई बातचीत बेनतीजा रही है. इस बयान में यह भी कहा गया कि हमारी मान्यता है कि अब आगे ऐसी स्थिति पर जाना परोक्ष या अपरोक्ष रूप से NDA को लाभ पहुंचाने की तरह है.

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दरअसल राष्ट्रीय जनता दल ने कुशवाहा की पार्टी के कुछ नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल क्या कराया, उपेन्द्र कुशवाहा आग बबूला हो गये. उन्हें इस बात का आभास भी हो गया कि तेजस्वी लोकसभा चुनावों के अनुभव के बाद उन्हें बहुत भाव नहीं दे रहे. इसलिए बार-बार कुशवाहा कांग्रेस पार्टी से मध्यस्थता करने की अपील करते हैं. राजनीतिक हलकों में ये चर्चा भी ज़ोरों से है कि कुशवाहा, पप्पू यादव और चिराग़ पासवान तीसरा मोर्चा बना कर चुनाव मैदान में जा सकते हैं. लेकिन वीआईपी पार्टी के मुकेश मल्लाह अभी भी ये उम्मीद पाले बैठे हैं कि तेजस्वी उनको कुशवाहा की तरह इंतज़ार नहीं कराएंगे.

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वहीं राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं का कहना है कि कुशवाहा अपनी जाति का वोट ट्रान्सफर नहीं करा पाते, ऐसे में उनको सीट देकर जोखिम लेने से कोई फ़ायदा नहीं है. बिहार में पिछले साल हुए उप चुनाव के नतीजों से राष्ट्रीय जनता दल को लगता है कि अगर कुशवाहा या मुकेश मल्लाह अपने उम्मीदवार उतारते हैं तो उससे असल नुक़सान एनडीए उम्मीदवारों को होता है और उस विधानसभा क्षेत्र में राजद उम्मीदवार की राह आसान हो जाती है.

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