
देवेंद्र फडणवीस ने अजित पवार पर आखिर क्यों कर भरोसा कर अपनी छीछालेदर करवाई, ये सवाल अब भी बना हुआ है. हालांकि देवेंद्र फडणवीस ये साफ कर चुके हैं कि अजित पवार अपने साथ 54 विधायकों के हस्ताक्षर वाली सूची लाये थे और दावा किया था कि ज्यादातर विधायक शिवसेना की बजाय बीजेपी के साथ सरकार बनाने के पक्ष में हैं. अगर ऐसा था तो एक भी एनसीपी का विधायक अजित पवार के साथ आखिरी वक्त तक क्यों नहीं टिका रहा? एनसीपी सूत्रों की मानें तो 24 अक्टूबर को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम में बीजेपी की सीटें कम होते ही एनसीपी और शिवसेना के खेमे में इसका फ़ायदा उठाने की कुलबुलाहट शुरू हो गई थी. एनसीपी मुखिया शरद पवार की दूर दृष्टि ने राज्य में एक नए राजनीतिक समीकरण की तस्वीर देख ली थी. लेकिन खुद उनकी पार्टी में अजित पवार सहित एक बड़ा धड़ा शिवेसना के साथ जाने के पक्ष में नही था. वो चाहता था कि बीजेपी के साथ मिलकर केंद्र और राज्य दोनों जगह सत्ता में सहभागी हो.
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जबकि दूसरे धड़े का कहना था कि ईडी की नोटिस का जिस तरह सामना कर शरद पवार ने अपना कद बढ़ाया था और जिस तरह से राज्य में बीजेपी के खिलाफ उन्हें जनसमर्थन मिला था उसे देखते हुए बीजेपी के साथ जाने से शरद पवार की छवि खराब होगी और गलत संदेश जाएगा जबकि शिवसेना और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने से पार्टी और शरद पवार का कद भी बढ़ेगा और राज्य सरकार पर नियंत्रण भी रहेगा.
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लेकिन अजित पवार के साथ पार्टी के ज्यादातर विधायक और नेता बीजेपी के साथ जाने के पक्ष में थे. एनसीपी के एक नेता के मुताबिक इसके लिये 20 के करीब चुनिंदा नेताओं की एक मीटिंग बुलाई गई और चूंकि शरद पवार खुद भी शिवसेना और कांग्रेस के साथ मिलकर आघाडी बनाने के पक्ष में थे इसलिए ज्यादातर को उनकी ईच्छा बता दी गई थी. आखिर वही हुआ जो शरद पवार चाहते थे. ज्यादातर ने शिवसेना के पक्ष में अपनी राय रखी.
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शरद पवार अपनी पार्टी का मन बनाने में तो कामयाब हो गए लेकिन अभी कांग्रेस को मनाना बाकी था. प्रदेश कांग्रेस के नेता तो लगभग तैयार हो चुके थे. दिल्ली से विशेष तौर पर मुम्बई आये अहमद पटेल, के सी वेणुगोपाल और मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ शिवसेना के पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे की मुलाकात भी हो चुकी थी. लेकिन कांग्रेस की तरफ से हरी झंडी नहीं मिल पाई थी. जरूरी था कि कांग्रेस सरकार के अंदर आये पर बात बन नहीं रही थी. दिल्ली में शरद पवार और सोनिया गांधी की मुलाकात भी सफल नहीं रही थी.
लेकिन कांग्रेस के विधायकों का दबाव उनकी अपनी पार्टी पर बढ़ रहा था. शरद पवार ने दिल्ली जाकर एक बार फिर से सोनिया गांधी से मुलाकात की. दिल्ली में ही एनसीपी और कांग्रेस नेताओं की बैठक हुई. वहीं से कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में सेक्युलर शब्द को शामिल करने को लेकर मुंबई में बैठे उद्धव ठाकरे से बातचीत भी हुई. उसी मीटिंग में मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष को लेकर भी कांग्रेस ने बात करनी चाही पर शरद पवार ने ये कहकर उस पर कुछ फैसला करने से मना कर दिया कि इस पर शिवसेना के सामने ही बातचीत करना उचित होगा.
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दूसरे दिन 22 नवंबर की शाम वर्ली के नेहरू सेंटर में तीनों पार्टी के नेताओं की बैठक हुई. पर विधानसभा अध्यक्ष को लेकर बात बिगड़ गई. सूत्रों के मुताबिक हुआ ये कि अहमद पटेल ने शरद पवार से कहा कि आपने विधानसभा अध्यक्ष पद देने पर हामी भरी थी. पवार को लगा कि उन्हें झूठा ठहराया जा रहा है इसलिए वो मीटिंग बीच मे छोड़ कर निकल गए. बाहर निकल कर उन्होंने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार बनने पर आम सहमति की बात कह कर उम्मीद को बनाये रखा.
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लेकिन शरद पवार के इस तरह से बीच मे उठकर जाने से बार-बार की मीटिंग से पहले से नाराज अजित पवार को लगा कि अब वो अपने चाचा को बीजेपी के साथ जाने के लिए मना लेंगे.
उन्होंने पार्टी ऑफिस से 54 विधायकों के हस्ताक्षर वाले पत्र की दो कॉपी मंगवाई और पहुंच गये देवेंद्र फडणवीस के पास औऱ शर्त रखी कि सुबह ही अगर शपथ विधि होती है तो वो बीजेपी के साथ सरकार बनाने को तैयार हैं. उनके पास 54 विधायकों के हस्ताक्षर वाले कागज थे वो खुद भी एनसीपी विधानमंडल दल नेता थे इसलिए बीजेपी उनकी बातों में आ गई. सूत्र बताते हैं कि अजित पवार ने कुल 54 नहीं तो 22 से 25 विधायकों के साथ में आने का दावा किया और ये भी वादा किया कि वो अपने चाचा यानी कि शरद पवार को मना लेंगे.
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लेकिन दूसरे दिन हुआ उल्टा. 23 नवंबर की सुबह अजित पवार को देवेंद्र फडणवीस के साथ उपमुख्यमंत्री की शपथ लेते देख पवार हैरान तो हुए लेकिन ईडी की नोटिस की तरह अपने खिलाफ गई परिस्थिति को उन्होंने फिर से अपने पक्ष में कर लिया. सुबह सबसे पहले शिवसेना पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे को फोन कर सबकुछ ठीक करने का भरोसा दिलाया और अजित पवार के साथ गये ज्यादातर विधायकों को वापस बुलवाकर कांग्रेस को भी सरकार में शामिल होने पर राजी कर लिया.
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रही सही कसर 25 नवंबर को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने पूरी कर दी जिसमें बहुमत के लिए खुला मतदान और उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग करवाने की बात कही गई थी. अजित पवार तो अपने घर वापस चले गए और महा विकास आघाडी सरकार में उपमुख्यमंत्री के दावेदार भी हैं लेकिन 5 साल सफलतापूर्वक मुख्यमंत्री रहकर राज्य बीजेपी के कद्दावर नेता बन चुके देवेंद्र फडणवीस की मिट्टी पलीद कर गये.
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