अहमद पटेल (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
देश के पिछड़े गांवों के विकास के लिए लागू सांसद आदर्श ग्राम योजना सवालों के घेरे में है। सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव और राज्यसभा सांसद अहमद पटेल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर सांसद आदर्श ग्राम योजना की डिजाइन में बड़े बदलाव की मांग की है।
मौजूदा प्रारूप में खामियां
एनडीटीवी से खास बातचीत में अहमद पटेल ने कहा कि मौजूदा योजना के प्रारूप में खामियों की वजह से पिछड़े इलाकों में सड़क से लेकर पानी और संचार जैसी सुविधाएं मुहैया कराना मुश्किल साबित हो रहा है। अहमद पटेल कहते हैं जब तक इसके प्रारूप में आधारभूत बदलाव नहीं किया जाता, उनके लिए इस साल दूसरा गांव गोद लेना संभव नहीं होगा।
अलग से हो फंडिंग की व्यवस्था
एनडीटीवी ने जब उनसे पूछा कि इसके लिए अगर अलग से फंडिंग की व्यवस्था सरकार करती है तो इसे लागू करना आसान होगा? तो अहमद पटेल ने कहा, "जी बिल्कुल...MPLADS में कितना फंड होता है हमारे पास। जो राज्यसभा सांसद हैं उन्हें पूरे राज्य के लिए पैसे देने पड़ते हैं। बड़े प्रोजेक्टों जैसे 15-18 किलोमीटर सड़क बनाने पर ही MPLADS का पूरा पैसा खर्च हो जाएगा।"
दो सौ में से एक चुनेंगे, तो 199 का क्या?
इस योजना के तहत सांसदों को अपने संसदीय क्षेत्र या राज्य में 2019 तक तीन गांवों को आदर्श ग्राम की तर्ज पर विकसित करने की जिम्मेदारी दी गई है। इस योजना को लागू करने में सबसे खराब रिकार्ड पश्चिम बंगाल का है। बंगाल में इस योजना के फेज़ वन के दौरान 42 में से 38 सांसदों ने योजना लागू होने के डेढ़ साल बाद भी ग्राम पंचायत की पहचान नहीं की है। तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने एनडीटीवी से कहा, "एक इलाके में अगर 200 ग्राम हैं, अगर हम एक को चुनेंगे तो 199 में क्या होगा? इसलिए बंगाल के सांसद इस स्कीम को लागू नहीं कर रहे हैं।"
मौजूदा फंड से आदर्श ग्राम बनाना कठिन
जेडी-यू के पूर्व अध्यक्ष और सांसद शरद यादव कहते हैं, "लोक सभा सांसद के लिए एक गांव में खर्च करना मुश्किल हो जाता है। जो फंड मिलता है उसमें आदर्श ग्राम बनाना कठिन काम है।"
सवाल विपक्षी दलों के सांसदों के साथ-साथ सत्ताधारी दल के सांसद भी उठा रहे हैं। बीजेपी के वरिष्ठ सांसद सीपी ठाकुर कहते हैं, "फंडिंग अलग से होता तो अच्छा होता। बिहार जैसी जगह के लिए और फंडिंग की आवश्यकता है। हो सकता है महाराष्ट्र या गुजरात के लिए इसकी जरूरत न पड़े।" अब देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास की अपनी इस महत्वकांक्षी योजना के लेकर उठ रहे सवालों से कैसे निपटते हैं।
मौजूदा प्रारूप में खामियां
एनडीटीवी से खास बातचीत में अहमद पटेल ने कहा कि मौजूदा योजना के प्रारूप में खामियों की वजह से पिछड़े इलाकों में सड़क से लेकर पानी और संचार जैसी सुविधाएं मुहैया कराना मुश्किल साबित हो रहा है। अहमद पटेल कहते हैं जब तक इसके प्रारूप में आधारभूत बदलाव नहीं किया जाता, उनके लिए इस साल दूसरा गांव गोद लेना संभव नहीं होगा।
अलग से हो फंडिंग की व्यवस्था
एनडीटीवी ने जब उनसे पूछा कि इसके लिए अगर अलग से फंडिंग की व्यवस्था सरकार करती है तो इसे लागू करना आसान होगा? तो अहमद पटेल ने कहा, "जी बिल्कुल...MPLADS में कितना फंड होता है हमारे पास। जो राज्यसभा सांसद हैं उन्हें पूरे राज्य के लिए पैसे देने पड़ते हैं। बड़े प्रोजेक्टों जैसे 15-18 किलोमीटर सड़क बनाने पर ही MPLADS का पूरा पैसा खर्च हो जाएगा।"
दो सौ में से एक चुनेंगे, तो 199 का क्या?
इस योजना के तहत सांसदों को अपने संसदीय क्षेत्र या राज्य में 2019 तक तीन गांवों को आदर्श ग्राम की तर्ज पर विकसित करने की जिम्मेदारी दी गई है। इस योजना को लागू करने में सबसे खराब रिकार्ड पश्चिम बंगाल का है। बंगाल में इस योजना के फेज़ वन के दौरान 42 में से 38 सांसदों ने योजना लागू होने के डेढ़ साल बाद भी ग्राम पंचायत की पहचान नहीं की है। तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने एनडीटीवी से कहा, "एक इलाके में अगर 200 ग्राम हैं, अगर हम एक को चुनेंगे तो 199 में क्या होगा? इसलिए बंगाल के सांसद इस स्कीम को लागू नहीं कर रहे हैं।"
मौजूदा फंड से आदर्श ग्राम बनाना कठिन
जेडी-यू के पूर्व अध्यक्ष और सांसद शरद यादव कहते हैं, "लोक सभा सांसद के लिए एक गांव में खर्च करना मुश्किल हो जाता है। जो फंड मिलता है उसमें आदर्श ग्राम बनाना कठिन काम है।"
सवाल विपक्षी दलों के सांसदों के साथ-साथ सत्ताधारी दल के सांसद भी उठा रहे हैं। बीजेपी के वरिष्ठ सांसद सीपी ठाकुर कहते हैं, "फंडिंग अलग से होता तो अच्छा होता। बिहार जैसी जगह के लिए और फंडिंग की आवश्यकता है। हो सकता है महाराष्ट्र या गुजरात के लिए इसकी जरूरत न पड़े।" अब देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास की अपनी इस महत्वकांक्षी योजना के लेकर उठ रहे सवालों से कैसे निपटते हैं।
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