लोकसभा में तीन तलाक विधेयक पेश, कांग्रेस बोली- तलाक को दंडनीय अपराध नहीं बनाया जा सकता

लोकसभा में सोमवार को मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2018 पेश किया गया.

लोकसभा में तीन तलाक विधेयक पेश, कांग्रेस बोली- तलाक को दंडनीय अपराध नहीं बनाया जा सकता

लोकसभा में सोमवार को मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2018 पेश किया गया.

नई दिल्ली :

लोकसभा में सोमवार को मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2018 पेश किया गया, जिसमें मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से संरक्षण प्रदान करने के साथ साथ ऐसे मामलों में दंड का भी प्रावधान किया गया है. इसके माध्यम से विवाहित मुस्लिम महिलाओं को लैंगिक न्याय और लैंगिक समानता के व्यापक सांविधिक ध्येय सुनिश्चित होंगे और उनके प्रति भेदभाव रोकने एवं मूलभूत अधिकार प्रदान करना सुनिश्चित हो सकेगा. सदन में विभिन्न दलों के सदस्यों के हंगामे के बीच विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने यह विधेयक पेश किया. उन्होंने कहा कि तीन तलाक की कुरीति से मुस्लिम महिलाओं को संरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से यह विधेयक लाया गया है. इस संबंध में उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद भी धड़ल्ले से तीन तलाक दिया जा रहा था. इसके कारण मुस्लिम महिलाएं काफी परेशान थी. यह विधेयक मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण अध्यादेश 2018 का स्थान लेगा.

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सदन में विधेयक पेश करने का विरोध करते हुए कांग्रेस के शशि थरूर ने कहा कि तलाक को दंडनीय अपराध नहीं बनाया जा सकता है. यह वर्ग विशेष को ध्यान में रखकर लााया गया विधेयक है. इसमें इस मुद्दे से जुड़े वृहद आयाम को नजरंदाज किया गया है. उन्होंने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुरूप नहीं है और संसद ऐसे विधान को नहीं बना सकता है. वहीं, रविशंकर प्रसाद ने कहा कि यह विधेयक देश के हित में है और पूरी तरह से संवैधानिक है. इसमें दंडात्मक प्रावधान है, साथ ही अन्य तरह के सुधार भी किये गए हैं.  उन्होंने कहा कि इसमें मुस्लिम महिलाओं को हितों का खास ध्यान रखा गया है. इस पर आपत्ति बेबुनियाद है. उल्लेखनीय है कि मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक पहले लोकसभा में पारित हो गया था लेकिन राज्यसभा में यह पारित नहीं हो सका. विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय ने शायरा बानो बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले तथा अन्य संबद्ध मामलों में 22 अगस्त 2017 को 3 : 2 के बहुमत से तलाक ए बिद्दत (एक साथ और एक समय तलाक की तीन घोषणाएं) की प्रथा को समाप्त कर दिया था जिसे कतिपय मुस्लिम पतियों द्वारा अपनी पत्नियों से विवाह विच्छेद के लिये अपनाया जा रहा था.  (इनपुट- भाषा से भी)

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