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This Article is From Jun 06, 2015

'PAC के विद्रोह के डर से नहीं हुई हाशिमपुरा कांड के गुनहगारों के खिलाफ कार्रवाई'

'PAC के विद्रोह के डर से नहीं हुई हाशिमपुरा कांड के गुनहगारों के खिलाफ कार्रवाई'
अलीगढ़: प्रख्यात लेखक और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी विभूति नारायण ने शनिवार को कहा कि 28 साल पहले मेरठ के हाशिमपुरा में हुए जनसंहार मामले में तत्कालीन सरकार ने पीएसी बल के विद्रोह के डर से समुचित कार्रवाई नहीं की थी। उन्होंने कहा, उसके बाद आई तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी सरकारों ने भी पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए कोई गम्भीर पहल करने के बजाय मामले को दबाने की कोशिश की।

राय ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय स्थित मौलाना आजाद लाइब्रेरी में मिल्लत बेदारी मुहिम कमेटी (एमबीएमसी) द्वारा आयोजित कांफ्रेस में दिए गए व्याख्यान में कहा कि 22 मई 1987 को मेरठ के हाशिमपुरा में 40 से ज्यादा मुसलमानों की सामूहिक हत्या की वारदात देश में हिरासत में जनसंहार की सबसे बड़ी घटना है। इसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।

उन्होंने कहा कि दिल्ली की एक अदालत द्वारा हाल ही में सुनाए गए फैसले में हाशिमपुरा कांड के पीड़ितों को इसलिए न्याय नहीं मिला, क्योंकि इस मामले में पूर्व में की गई तफ्तीश आधी-अधूरी थी।

राय ने कहा कि जिस वक्त हाशिमपुरा कांड हुआ, उस वक्त वह मेरठ में आईपीएस अधिकारी की हैसियत से एक वरिष्ठ पद पर थे। उस वारदात के बाद हुई वरिष्ठ पुलिस अफसरों की बैठक में उन्होंने पीएसी के उन अधिकारियों और जवानों के खिलाफ फौरन कार्रवाई करने की बात रखी थी, जिनके खिलाफ उस सामूहिक हत्याकांड में संलिप्तता के प्रथम दृष्ट्या स्पष्ट सुबूत थे।

उन्होंने कहा, 'उस वक्त मुझसे कहा गया कि अगर कार्रवाई की गई तो पीएसी बल विद्रोह कर देगा। तब मैंने कहा था कि अगर पीएसी बगावत करती है तो उससे निपटने के लिए सेना बुलाई जाएगी, क्योंकि अगर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई तो यह न्याय के लिए खतरा होगा। उसके 24 घंटे के अंदर वह केस मेरे हाथों से ले लिया गया और सीआईडी के सुपुर्द कर दिया गया। उसके बाद जो हुआ, वह इतिहास है।'

राय ने कहा कि उससे भी ज्यादा स्तब्धकारी यह रहा कि उत्तर प्रदेश में उसके बाद अनेक सरकारें आईं। उनमें से कई सरकारें तो समाजवादी पार्टी (सपा) समेत उन दलों या गठबंधनों की थीं, जो खुद को धर्मनिरपेक्षता का अलमबरदार कहते थे, लेकिन वे सरकारें हाशिमपुरा कांड के पीड़ितों को न्याय दिलाना तो दूर, मामले को दबाने के लिए सक्रिय रूप से शामिल रहीं। सेवानिवृत्त आईपीएस ने कहा कि जब हाशिमपुरा की घटना हुई, उस वक्त केन्द्र और राज्य दोनों ही जगह कांग्रेस की सरकार थी। वे दोनों ही सरकारें इसी जुगत में दिखीं कि पीड़ितों को न्याय ना मिले।

उन्होंने कहा कि मीडिया भी सचाई को सामने लाने में बुरी तरह विफल रहा। चाहे वह वारदात के वक्त की बात हो या फिर उसके बाद की।

राय ने कहा, 'हाशिमपुरा कांड पर आधारित मेरी किताब जल्द ही हिन्दी और अंग्रेजी में प्रकाशित होगी। मैं इसे ना लिखने को लेकर भारी दबाव में था, क्योंकि लोग ऐसी स्याह घटनाओं को भूल जाना चाहते हैं। मेरा मानना है कि अगर हम ऐसी वारदात को भूलने की कोशिश करेंगे तो वे बार-बार होंगी। इससे देश कमजोर होगा।'

वरिष्ठ पत्रकार कुरबान अली ने इस मौके पर कहा कि इस बात के पुख्ता सुबूत हैं कि हाशिमपुरा जनसंहार कांग्रेस के एक तत्कालीन वरिष्ठ केन्द्रीय राज्यमंत्री के इशारे पर एक साजिश के तहत अंजाम दिया गया था।

उन्होंने आरोप लगाया कि उस वरिष्ठ मंत्री ने पुलिस अधिकारियों को मेरठ में उस वक्त जारी साम्प्रदायिक दंगों के मद्देनजर लोगों को सबक सिखाने को कहा था। वह राज्यमंत्री बाद में काबीना मंत्री बना और वर्ष 2014 में कार्यकाल समाप्त करने वाली कांग्रेसनीत यूपीए सरकार में भी मंत्रिपरिषद का हिस्सा रहा।

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