
वरूथिनी एकादशी के दिन विष्णु के वराह अवतार की पूजा की जाती है
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वरूथिनी एकादशी के दिन विष्णु के वराह अवतार की पूजा की जाती है
मान्यता है कि इस व्रत के करने से सभी पाप दूर हो जाते हैं
वरूथिनी एकादशी का व्रत करने वाले को कड़े नियमों का पालन करना चाहिए
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वरूथिनी एकादशी का महत्व
हिंदू वर्ष की तीसरी एकादशी यानी वैशाख कृष्ण एकादशी को 'वरूथिनी एकादशी' के नाम से जाना जाता है. वरूथिनी शब्द संस्कृत भाषा के 'वरूथिन्' से बना है, जिसका मतलब है- प्रतिरक्षक, कवच या रक्षा करने वाला. मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से विष्णु भगवान हर संकट से भक्तों की रक्षा करते हैं, इसलिए इसे वरूथिनी ग्यारस कहा जाता है. पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण इस व्रत से मिलने वाले पुण्य के बारे में युधिष्ठिर को बताते हैं, 'पृथ्वी के सभी मनुष्योंं के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त भी इस व्रत के पुण्य का हिसाब-किताब रख पाने में सक्षम नहीं हैं.'
वरूथिनी एकादशी की पूजा विधि
वरूथिनी एकादशी के दिन भगवान मधुसूदन और विष्णु के वराह अवतार की प्रतिमा की पूजा की जाती है. एकादशी का व्रत रखने के लिए एक दिन पहले यानी कि दशमी के दिन से ही नियमों का पालन करना चाहिए. दशमी के दिन केवल एक बार ही भोजन ग्रहण करें. भोजन सात्विक होना चाहिए. एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें. इसके बाद विष्णु के वराह अवतार की पूजा करें. व्रत कथा पढ़ें या सुनें. रात में भगवान के नाम का जागरण करना चाहिए. एकादशी के अगले दिन यानी कि द्वादशी को ब्राह्मण को भोजन कराएं. साथ ही दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए.
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व्रत कर रहे हैं तो इन बातों का रखें ध्यान:
1. कांसे के बर्तन में भोजन न करें
2. नॉन वेज, मसूर की दाल, चने व कोदों की सब्जी और शहद का सेवन न करें.
3. कामवासना का त्याग करें.
4. व्रत वाले दिन जुआ नहीं खेलना चाहिए.
5. पान खाने और दातुन करने की मनाही है.
6. बुराई और चुगली न करें.
7. क्रोध न करें और झूठ न बोलें.
8. इस दिन नमक, तेल और अन्न वर्जित है.
वरूथिनी एकादशी तिथि और मुहूर्त
वरुथिनी एकादशी: 12 अप्रैल 2018
एकादशी तिथि आरंभ : शाम 06 बजकर 40 मिनट (11 अप्रैल 2018)
एकादशी तिथि समाप्त: रात 08 बजकर 12 मिनट (12 अप्रैल 2018)
पारण का समय: सुबह 06 बजकर 01 मिनट से सुबह 08 बजकर 33 मिनट तक (13 अप्रैल 2018)
व्रत कथा
बहुत समय पहले नर्मदा नदी के किनारे एक राज्य था, जिस पर मांधाता नामक राजा राज किया करते थे. राजा बहुत ही पुण्यात्मा थे. अपनी दानशीलता के लिये वे दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे. वे तपस्वी भी और भगवान विष्णु के उपासक थे.
एक बार राजा जंगल में तपस्या के लिए चले गए और एक विशाल वृक्ष के नीचे अपना आसन लगाकर तपस्या आरंभ कर दी. वे अभी तपस्या में ही लीन थे कि एक जंगली भालू ने उन पर हमला कर दिया और उनके पैर चबाने लगा. लेकिन राजा मान्धाता तपस्या में ही लीन रहे.
भालू उन्हें घसीट कर ले जाने लगा तो ऐसे में राजा को घबराहट होने लगी, लेकिन उन्होंने तपस्वी धर्म का पालन करते हुए क्रोध नहीं किया और भगवान विष्णु से ही इस संकट से उबारने की गुहार लगाई.
विष्णु भगवान प्रकट हुए और भालू को अपने सुदर्शन चक्र से मार गिराया. लेकिन तब तक भालू राजा के पैर को लगभग पूरा चबा चुका था. राजा बहुत दर्द में थे. तब भगवान विष्णु ने कहा, 'वत्स! विचलित होने की आवश्यकता नहीं है. वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन मेरे वराह रूप की पजा करना. व्रत के प्रताप से तुम पुन: संपूर्ण अंगो वाले हष्ट-पुष्ट हो जाओगे. भालू ने जो भी तुम्हारे साथ किया यह तुम्हारे पूर्वजन्म के पाप का फल है. इस एकादशी के व्रत से तुम्हें सभी पापों से भी मुक्ति मिल जाएगी.'
भगवन की आज्ञा मानकर राजा मांधाता ने वैसा ही किया और व्रत का पारण करते ही उसे जैसे नवजीवन मिला गया. वह फिर से हष्ट पुष्ट हो गया. अब राजा और भी अधिक श्रद्धाभाव से भगवद् भक्ति में लीन रहने लगे.
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