प्रतिकात्मक तस्वीर
"बोहाग नोहोये माथो एटी ऋतु, नहय बोहाग एटि माह.
असमिया जातिर इ आयुष रेखा गण जीवनोर इ साह."
इसका मतलब है, वैशाख केवल एक ऋतु ही नहीं, न ही यह एक महीना है, बल्कि यह असमिया जाति की आयुरेख और जनगण का साहस है
ड्रम और बाजों की गूंज के साथ बोहाग बिहू का हफ्तेभर तक चलने वाला जश्न शुरू हो चुका है. आसाम में मुख्यतौर पर मनाए जाने वाले इस त्योहार को रोंगाली बिहू भी कहते हैं. इस त्योहार के दौरान कई खेलों का आयोजन भी किया जाता है जैसे-बैलों की लड़ाई, मुर्गों की लड़ाई और अण्डों का खेल आदि.
साल में तीन बार मनाया जाता है बिहू
फसल की कटाई की खुशी में बिहू सालभर में तीन बार मनाई जाती है. नए बांग्ला कैलेंडर की शुरुआत के साथ इसे विषुव संक्रांति दिवस के रूप में मनाते हैं, सर्दियों के मौसम में यह त्योहार पूस संक्रांति के दिन मनाया जाता है और तीसरी बार यह त्योहार कार्तिक महीने में मनाया जाता है.
क्या है बोहाग बिहू
चैत्र महीने की संक्रान्ति के दिन से ही बिहू उत्सव शरू हो जाता है. इसे 'उरूरा' कहते हैं. इस दिन सुबह से ही लौकी, बैंगन, हल्दी, दीघलती, माखियति आदि सामग्री बनाने में जुट जाते हैं. शाम को सभी गायों को गुहाली (गोशाला) में लाकर बांध देते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन गायों को खुला नहीं रखा जाता है. गाय के चरवाहे एक डलिया में लौकी, बैंगन आदि सजाते हैं. प्रत्येक गाय के लिए एक नयी रस्सी तैयार की जाती है.
वो त्योहार ही क्या, जिसमें लज़ीज़ पकवान न हों!
फसलों की सफल कटाई का जश्न मनाते हुए मनाए जाने वाले इस पर्व बोहाग बिहू में नारियल, चावल, तिल, दूध का इस्तेमाल पकवान बनाने के लिए प्रमुखता से किया जाता है. अगर आप भी आसाम के लिए मशहूर पर्व का हिस्सा बनना चाहते हैं तो असामी फिश करी, सरसो मिंडी, पंपकिन ओमभल और जौतून-गुड़ की चटनी का स्वाद ज़रूर चखें.
हैप्पी बोहाग बिहू!
असमिया जातिर इ आयुष रेखा गण जीवनोर इ साह."
इसका मतलब है, वैशाख केवल एक ऋतु ही नहीं, न ही यह एक महीना है, बल्कि यह असमिया जाति की आयुरेख और जनगण का साहस है
ड्रम और बाजों की गूंज के साथ बोहाग बिहू का हफ्तेभर तक चलने वाला जश्न शुरू हो चुका है. आसाम में मुख्यतौर पर मनाए जाने वाले इस त्योहार को रोंगाली बिहू भी कहते हैं. इस त्योहार के दौरान कई खेलों का आयोजन भी किया जाता है जैसे-बैलों की लड़ाई, मुर्गों की लड़ाई और अण्डों का खेल आदि.
साल में तीन बार मनाया जाता है बिहू
फसल की कटाई की खुशी में बिहू सालभर में तीन बार मनाई जाती है. नए बांग्ला कैलेंडर की शुरुआत के साथ इसे विषुव संक्रांति दिवस के रूप में मनाते हैं, सर्दियों के मौसम में यह त्योहार पूस संक्रांति के दिन मनाया जाता है और तीसरी बार यह त्योहार कार्तिक महीने में मनाया जाता है.
क्या है बोहाग बिहू
चैत्र महीने की संक्रान्ति के दिन से ही बिहू उत्सव शरू हो जाता है. इसे 'उरूरा' कहते हैं. इस दिन सुबह से ही लौकी, बैंगन, हल्दी, दीघलती, माखियति आदि सामग्री बनाने में जुट जाते हैं. शाम को सभी गायों को गुहाली (गोशाला) में लाकर बांध देते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन गायों को खुला नहीं रखा जाता है. गाय के चरवाहे एक डलिया में लौकी, बैंगन आदि सजाते हैं. प्रत्येक गाय के लिए एक नयी रस्सी तैयार की जाती है.
वो त्योहार ही क्या, जिसमें लज़ीज़ पकवान न हों!
फसलों की सफल कटाई का जश्न मनाते हुए मनाए जाने वाले इस पर्व बोहाग बिहू में नारियल, चावल, तिल, दूध का इस्तेमाल पकवान बनाने के लिए प्रमुखता से किया जाता है. अगर आप भी आसाम के लिए मशहूर पर्व का हिस्सा बनना चाहते हैं तो असामी फिश करी, सरसो मिंडी, पंपकिन ओमभल और जौतून-गुड़ की चटनी का स्वाद ज़रूर चखें.
हैप्पी बोहाग बिहू!
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