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This Article is From May 05, 2014

चुनाव डायरी : अमेठी में राहुल गांधी का रोड शो

चुनाव डायरी : अमेठी में राहुल गांधी का रोड शो
अमेठी से उमाशंकर सिंह:

मुन्शीगंज गेस्ट हाउस के मेन गेट पर भी सफेद चादर का पर्दा है। अंदर की गतिविधियों बाहर वाले की नज़र न पड़े इसलिए। सुरक्षा के एहतियात के तौर पर भी सही। राहुल और प्रियंका का यही रैन बसेरा है। दरवाज़ा खुलता है और प्रियंका की गाड़ियों का काफिला निकलता है। गेट पर जमा कुछ अमेठीवासी प्रियंका के सामने अपनी समस्याएं बताते हैं। कुछ कागज़ भी देते हैं। इसी बीच कुछ टीवी कैमरे और गन माइक लहराते हुए प्रियंका के चेहरे पर जा टिकते हैं। सवाल है कि क्या राहुल ने किसी फ्रंट को समर्थन नहीं देने की बात कर कोई राजनीतिक चूक तो नहीं की। वह सवाल नहीं लेती हैं। जवाब नहीं देती हैं। ड्राइवर को आगे बढ़ने का इशारा करती हैं।
काफिल चल पड़ता है। सही भी है। वह भाई के मज़बूत पक्षों पर बात करने को यहां हैं। न कि राहुल के बयान पर खुर्दबीन लेकर बैठने को। पुराने कांग्रेसी बताते हैं कि राजनीति मे दिलचस्पी और राजनीतिक भाषा को गहराई को जानने की कोशिश प्रियंका बचपन से ही करती रही हैं। राहुल के बयानों की राजनीतिक गहराई को भी वह समझती होंगी। बोलती नहीं हैं। कांग्रेस पार्टी के ही कुछ बड़े नेताओं की शंका है कि राहुल के बयान से उन दलों में निराशा होगी, जो मोदी को सत्ता से बाहर रखना चाहते हैं। कांग्रेस भी यही चाहती है। लेकिन यूपीए के बूते। जोड़-तोड़ नहीं की बात तो ठीक है, लेकिन समर्थन नहीं देने, यह कहने का वक्त माकूल नहीं। ऐसे कुछ दल बीजेपी और मोदी की राह जाने को मजबूर हो सकते हैं। कुछ मानते हैं कि नतीजों के बाद समीक्षा होगी। किस राह जाना है किस राह नहीं।

ख़ैर प्रियंका के पीछे कुछ टीवी चैनलों की गाड़ी भागती है। वह बूथ वर्कर्स की मीटिंग के लिए जा रही हैं। कैमरे मना हैं। काफिले में चल रही एसपीजी की टेल-कार मीडिया का रास्ता रोक लेती है। प्रियंका आगे निकल जाती हैं। मीडियाकर्मी लौट कर मुंशीगंज गेस्ट हाउस आ जाते हैं।

अब बारी राहुल के निकलने की है। राहुल दूसरी दिशा में निकलते हैं। माइक कैमरा फिर लहराते हैं। सवाल स्नूपगेट को लेकर है। अमित शाह ने कहा है कि यह पोलिटिकल वेडेट्टा है। जवाब नहीं मिलता। एसपीजी वाले कैमरे पर हाथ मारते हैं। पत्रकार चिल्लाते हैं, कैमरा तोड़ोगे क्या। काफिला चल पड़ता है। कुछ दूर चलने के बाद वह गाड़ी से उतरते हैं। महिलाएं और बच्चे सड़क के किनारे इंतज़ार कर रहे हैं। राहुल गाड़ी से उतरते हैं। महिलाओं को नमस्ते और बच्चों को पुचकार। कुछ बच्चों से हाथ मिलाते हैं। तब तक कैमरे घेर लेते हैं। लेकिन कोई सवाल नहीं पूछता। पता है जवाब नहीं आने वाला।

कहीं अधकच्ची तो कहीं अछबनी सड़क के गढ्ढों में हिचकोले खाती गाड़ियां सभा स्थल तक पहुंचती हैं। एक स्थानीय कांग्रेसी कार्यकर्ता राहुल को कुछ कहता है। दो-तीन मिनट कार में मंत्रणा होती है। काफिला वापस मुड़ता है। मंज़िल टीकरमाफी मंदिर है। राहुल जूते मंदिर में जाकर मत्था टेकते हैं। तेज़ कदमों से वापस गाड़ी में।

काफिला फिर रुकता है। कुछ स्थानीय लोग स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का ज़िक्र करते हैं। राहुल मदद का भरोसा देते हैं। साथ ही बताते हैं कि सबको स्वास्थ्य गारंटी योजना इस बार एजेंडे पर है। यूपीए सरकार आई तो दवा-इलाज़ मुफ्त। वैसे ही जैसे भोजन का अधिकार मिला है। भोजन मिलना बाकी है।

जनसभाएं निपटा काफिला जायस पहुंचता है। अब राहुल प्रियंका दोनों साथ हैं। सफेद फोर्चुनर के बायीं तरफ। विंडो ग्लास रोल कर आगे के दरवाजे पर राहुल और पीछे के दरवाज़े पर प्रियंका बैठी हैं। प्रियंका के बच्चे भी अंदर बैठे हैं। बेटा मोबाइल से तस्वीरें ले रहा है। तंग गलियों में काफिला घुसता है। छतों से फूलों की बारिश की जा रही है। कार्यकर्ताओं के अलावा बच्चे फूल बरसाने में मस्त हैं। ऐसे बच्चों के हाथ में भी फूल है, जिन्हें शायद अपने किसी जन्मदिन पर फूल न मिला हो। फूल से बच्चे। हाथ में फूल।

मीर साहेब की मजार आती है। राहुल प्रियंका दोनों अंदर जाते हैं। एसपीजी के साथ साथ ट्रेनी भी हैं। वे घेरा बना कर चल रहे हैं। भीड़ काफी है। दोनों अंदर जाकर चादर चढ़ाते हैं। तीन किलोमीटर का सफर डेढ़ घंटे में पूरा होता है। प्रियंका निकल जाती हैं। राहुल का काफिला सलोन की तरफ चल पड़ता है। क़रीब तीस किलोमीटर अधबनी सड़क। शाम का धुंधलका। धूल का गुबार। ‘विजीब्लिटी’ कम हो जाती है। लेकिन सभी सरपट चल रहे हैं।

सलोन में राहुल ज़्यादा खुल जाते हैं। कार्यकर्ताओं और लोगों के साथ चलते हैं। फिर खुली टाटा मैजिक के पीछे लटक जाते हैं। रोशनी का पूरा प्रबंध है। हर कोई कुछ न कुछ कहना चाहता है। शोर है। हाथ भी मिला लिया तो लगता है शक्ति मिल गई। तरक्की की उम्मीद बढ़ जाती है। राहुल बमुश्किल मेरा सवाल लेने को तैयार होते हैं। कहते हैं कि अमेठी मुझे हमेशा ऐसा ही प्यार देता है। मैं अपनी पूरी ज़िंदगी अमेठी को दूंगा।

मुकाबला कड़ा है। अंदरखाने भी आकलन है कि जीत तो होगी पर मार्जिन कम होगा। विरोधियों और असंतुष्टों की आवाज़ इस बार बुलंद है। अमेठी में यह भी भावना है कि सिर्फ एक सांसद चाहिए या फिर एक ऐसा व्यक्ति, जिसे पार्टी ने प्रधानमंत्री का उम्मीदवार औपचारिक तौर पर बेशक न घोषित किया हो, लेकिन संदेश यही दिया है। अमेठी के रोड पर राहुल का रोड शो जारी है।

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