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This Article is From Jan 12, 2015

मनीष शर्मा की नज़र से : दिल्ली विधानसभा चुनाव के पिछले घोषणापत्रों की समीक्षा

Manish Sharma, Vivek Rastogi
  • Election,
  • Updated:
    जनवरी 12, 2015 20:23 pm IST
    • Published On जनवरी 12, 2015 18:43 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 12, 2015 20:23 pm IST

केंद्रीय चुनाव आयोग ने दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है, और 7 फरवरी को मतदान के बाद 10 फरवरी को नतीजे सबके सामने आ जाएंगे। सभी पार्टियां एक के बाद एक वादों की झड़ी लगाकर वोटरों को लुभाने की कोशिशों में अभी से जुट गई हैं, और घोषणापत्रों में तो नए-पुराने वादे होंगे ही... पिछली बार भी वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस ने जनता को कई सब्ज़बाग दिखाए थे, लेकिन स्थायी सरकार के लिए दिल्ली वाले पिछले एक साल से तरस रहे हैं, और अब चुनाव फिर सिर पर हैं, और फिर वादों की झड़ियां सुनाई देने लगी हैं, और आम आदमी पार्टी ने तो अपना घोषणापत्र जारी कर भी दिया है... सो, आइए मुद्दों के हिसाब से देखते हैं, पिछले घोषणापत्रों में किस पार्टी ने क्या-क्या वादे किए थे, और सत्ता हासिल करने वाली 'आप' सरकार ने किस मुद्दे पर क्या कर दिखाया था...

बिजली का मुद्दा
बीजेपी ने कहा था, बिजली की दरों में 30 फीसदी कटौती करेंगे
कांग्रेस ने इस मुद्दे का ज़िक्र ही नही किया था
आम आदमी पार्टी ने कहा था, बिल 50 फीसदी कम करेंगे


क्या किया 'आप' सरकार ने : अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली 'आप' सरकार ने 400 यूनिट से कम खर्च करने वालों के बिल 50 फीसदी कम कर दिए। सरकार ने तीन बिजली कंपनियों के बही-खातों की जांच के लिए कैग ऑडिट का आदेश भी दे दिया, लेकिन बजट पास करने से पहले ही दिल्ली सरकार ने इस्तीफा दे दिया, और फिर केंद्र सरकार ने दिल्ली के नए बजट में बिजली पर दी जाने वाली सब्सिडी को 1 अप्रैल, 2014 से खत्म कर दिया।

पानी का मुद्दा
बीजेपी ने इस मुद्दे का ज़िक्र ही नही किया था
कांग्रेस ने कहा था, घरेलू उपभोक्ताओं को प्रतिमाह 40 किलोलिटर पर सब्सिडी दी जाएगी
आप ने कहा था, हर रोज़ हर परिवार को 700 लिटर पानी मुफ्त देंगे


क्या किया 'आप' सरकार ने : सरकार बनने के दूसरे ही दिन केजरीवाल सरकार ने हर परिवार को प्रतिदिन 666 लिटर मुफ्त पानी उपलब्ध कराने का फैसला किया, परन्तु लोगों को मुफ्त पानी का सुख भी सिर्फ तीन महीने मिल पाया। नए बजट में मुफ्त पानी के प्रावधान को खत्म कर दिया गया।

स्वराज बिल का मुद्दा
बीजेपी ने इस मुद्दे का ज़िक्र ही नही किया था
आप ने कहा था, स्वराज बिल लाएंगे, और स्थानीय प्रशासन के मुद्दों पर मोहल्ला सभाएं निगरानी रखेंगी
कांग्रेस ने कहा था, कांग्रेस की 'भागीदारी स्कीम' में पहले से ही यह व्यवस्था मौजूद है


क्या किया 'आप' सरकार ने : अरविंद केजरीवाल सरकार स्वराज बिल पेश नहीं कर पाई।

महिला सुरक्षा का मुद्दा
बीजेपी ने कहा था, खास महिला सुरक्षा बल की स्थापना की जाएगी
आप ने कहा था, नागरिक सुरक्षा बल की स्थापना की जाएगी
कांग्रेस ने कहा था, पुलिस रिफॉर्म पर ज़ोर दिया जाएगा


क्या किया 'आप' सरकार ने : केजरीवाल सरकार ने नागरिक सुरक्षा बल की स्थापना तो नहीं की, लेकिन 'आप' सरकार के मंत्री सोमनाथ भारती और राखी बिरला पर 'अति जागरूकता' दिखाने और कानून को हाथ में लेने की कोशिश करने के लिए चौतरफा आलोचना का सामना करना पड़ा।

दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने का मुद्दा
इस मुद्दे पर तीनों मुख्य पार्टियों ने सहमति जताई थी

क्या किया 'आप' सरकार ने : केजरीवाल सरकार की योजना थी कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर उसे केंद्र सरकार के पास भेजेंगे, और यदि केंद्र सरकार ने इस मांग को छह माह में पूरा नहीं किया तो अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री आवास के बाहर अनिश्चितकालीन धरना देंगे, परन्तु केजरीवाल ने 49 दिन में खुद ही अपनी सरकार गिरा दी। हां, दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के दायरे में लाने के लिए केजरीवाल ने रेल भवन के सामने दो दिन का धरना दिया, जिसे 'आप' सरकार ने पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल करने की दिशा में पहला कदम बताया था।

जनलोकपाल बिल का मुद्दा
इस मुद्दे पर बीजेपी और कांग्रेस ने कुछ भी नहीं कहा था, लेकिन आप ने वादा किया था कि बिल को 15 दिन के भीतर पास करा देंगे

क्या किया 'आप' सरकार ने : 14 फरवरी को दिल्ली विधानसभा में जनलोकपाल बिल पेश करने की अपनी कोशिशों में विफल होने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया। 70-सदस्यीय विधानसभा में 27 के मुकाबले 42 मतों से जनलोकपाल बिल पेश ही नहीं हो पाया।

अब देखना यह है कि क्या वर्ष 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी मोदी का जादू अन्य राज्यों की तरह चल जाएगा, या जनता केजरीवाल की माफी को कबूल कर उन्हें फिर मुख्यमंत्री पद पर बिठा देगी। हां, यह तय है कि पिछली बार की तरह इस बार भी कांग्रेस चुनावी परिदृश्य में कहीं नज़र नहीं आ रही है...

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