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This Article is From Feb 05, 2015

मैं हारने नहीं आई, मुझे कोई लाया है जिताने के लिए : किरण बेदी

नई दिल्ली:

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आज प्रचार का आख़िरी दिन है। दिल्ली में अब बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा और सीएम पद की उम्मीदवार किरण बेदी सुबह-सुबह प्रचार के लिए निकल पड़ीं। उन्होंने कहा कि आज सिर्फ लोगों को और सभी को धन्यवाद करने का दिन है।

वहीं आज केजरीवाल के सवालों पर किरण बेदी बोलने से बचती दिखीं। बेदी यह इशारा कर रही थीं कि आज वह कोई
निगेटिव बयान नहीं देना चाहतीं, लेकिन हमेशा की तरह एक जल्दबाज़ी में और सवालों से आज भी बचती ही दिखीं। मैंने पूछा जीतीं तो मुख्यमंत्री बनेंगी, लेकिन हारी तो क्या? उन्होंने कहा, मैं हारने नहीं जीतने के लिए आई हूं। मुझे कोई जिताने के लिए लाया है।

15 जनवरी को पार्टी में जब किरण बेदी की एंट्री हुई उस वक़्त मैं बीजेपी हेडक्वार्टर 11 अशोक रोड पर मौजूद थीं, वह कुछ सकुचाई लग रही थीं, उनके मन की उधेड़बुन उनके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी। बीजेपी के दो दिग्गज अमित शाह और अरुण जेटली की मौजूदगी में उन्हें पार्टी में लाया गया वह भी प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद। दिल्ली बीजेपी के चेहरे डॉ. हर्षवर्धन, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश उपाध्याय जैसे चेहरे इस पैराशूट एंट्री पर सिर्फ मन मसोस कर रह गए। कई दिनों तक पार्टी में नाराजगी की खबरें चलती रहीं और बड़े नेता उन खबरों को मीडिया की गढ़ी बातें बताते रहे और उनसे इनकार करते रहे।

किरण बेदी शुरुआत में काफी मुखर रहीं, लेकिन धीरे-धीरे पार्टी आलाकमान के इशारे के बाद उन्होंने मीडिया के सामने चुप्पी ही बनाए रखी और वह अपने कंफर्ट के हिसाब से जवाब देती रहीं।

केजरीवाल पर सवाल पूछो तो खुलकर बोलीं, लेकिन जो सवाल उन्हें सूट नहीं करता तो वहां से ये बोल कर चल देतीं कि मुझे जाना है, लोगों से मिलना है।

यह बात साफ है कि बीजेपी अच्छे खासे दबाव में है और आज आख़िरी दिन पार्टी सभी 70 सीटों पर प्रचार के लिए सांसदों, मंत्रियों को उतार रही है, प्रधानमंत्री ने बुधवार को ही अपनी चौथी और आखिरी रैली खत्म की है। पीएम मोदी और अमित शाह ने प्रचार की कमान अपने हाथों में ले ली। शाह ने कई बार तैयारियों पर नाखुशी भी जताई, लेकिन पार्टी के पास वक़्त बहुत कम था और 'आप' की चुनौती उससे कहीं बड़ी।

बीजेपी ने इस चुनाव में काफी कुछ ऐसा किया, जो पहले कभी नहीं किया, खासतौर से प्रचार को लेकर जो रणनीति रही वह दिल्ली के अलावा कहीं देखने को नहीं मिली, लेकिन आख़िरी दिन तक कोऑर्डिनेशन की कमी पार्टी में देखने को मिली, ख़ासकर किरण बेदी के कैंपेन शेड्यूल को लेकर हमेशा एक कंफ्यूजन रहा।

सुबह की टीम को नहीं पता शाम को कहां रहेंगी, शाम की टीम को नहीं पता इस वक़्त कहां होंगी। मेरे जैसे पत्रकार फोन ही करते रह गए, लेकिन फिर भी इसमें कोई दो राय नहीं कि बीजेपी ने अपनी पूरी ताक़त झोंक दी है, लेकिन अब देखना है कि क्या ये जद्दोजहद उसकी झोली में दिल्ली की सत्ता डाल पाएगी की नहीं, लेकिन दिनभर की हलचल आप तक पहुंचाती रहूंगी।

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