
राजनीति की नई परिभाषा गढ़ने वाले अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में आम आदमी पार्टी ने विशाल जन लहर पर सवार होकर दिल्ली की सत्ता में आज वापसी की। उन्होंने न केवल राष्ट्रीय राजधानी की ओर बढ़ते नरेन्द्र मोदी के विजय रथ को रोक दिया, बल्कि जनता के दिलोंदिमाग पर मजबूती के साथ अपनी ‘बदलाव के दूत’ की छाप पक्की की।
इस ऐतिहासिक और बड़ी जीत का श्रेय काफी हद तक आईआईटी पृष्ठभूमि के 46 साल के केजरीवाल को दिया जा रहा है, जिन्होंने इस चुनाव में दिल्ली के सभी तबकों को आकर्षित करने में कामयाबी हासिल की।
लोकसभा चुनाव में पार्टी की भारी शिकस्त के बाद केजरीवाल ने शांत भाव से पार्टी को मजबूत करने पर जोर दिया और इसके विभिन्न प्रकोष्ठ बनाए। ‘भागीदारी वाली राजनीति’ का मॉडल पेश करते हुए उन्होंने जनता से सीधा संपर्क स्थापित किया, जिसमें उनके स्वयंसेवियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
पिछले साल 49 दिनों के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले केजरीवाल को घोर आलोचना का सामना करना पड़ा था। इन आलोचनाओं का सामना करते हुए केजरीवाल ने गरीबों और मध्यमवर्ग के बीच पार्टी का जनाधार मजबूत करने के लिए गैर-पारंपरिक रुख अपनाया और इसमें उन्हें कामयाबी मिली।
बदलाव का वादा करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री आप का एजेंडा लोगों के पास लेकर गए। इसके साथ ही उन्होंने पिछले साल 14 फरवरी को 49 दिन के भीतर सरकार छोड़ने के लिए कई बार माफी मांगी। इसके जरिए वह सभी तबकों से जुड़ने में सफल रहे।
राजनीति के वैकल्पिक ब्रांड का प्रतीक बने और इंजीनियरिंग क्षेत्र को छोड़कर नौकरशाह और फिर राजनीति में कदम रखने वाले केजरीवाल ने दिसंबर, 2013 के विधानसभा चुनाव में 15 साल के कांग्रेस शासन को बाहर का रास्ता दिखाया और शीला दीक्षित जैसी कद्दावर नेता को भी मात दी।
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