विज्ञापन
This Article is From Mar 19, 2014

अभिज्ञान का प्वाइंट : कमजोर हुई नीतीश की पकड़?

फाइल फोटो

नई दि्ल्ली:

बीजेपी और जेडीयू के रिश्तों का वो वक़्त था, जहां सबकुछ बढ़िया बढ़िया नज़र आता था और इस बात के प्रश्न भी नहीं उठते थे कि क्या ये गठबंधन कभी टूटेगा, लेकिन एक सियासत बदल रही थी जिसका पैमाना शायद नीतीश कुमार नहीं माप पाए और वो भी भारतीय जनता पार्टी में नरेंद्र मोदी की बढ़ती लोकप्रियता।

2009 में थोड़ी बहुत समस्याएं शुरू हुईं, लेकिन मतभेद पूरी तरह से उजागर नहीं हुए। फिर 12 जून 2010 को नीतीश कुमार ने उस डिनर को रद्द कर दिया जो बीजेपी के लिए रखा गया था पटना में होने वाली बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दौरान। नाराज़गी इस बात को लेकर थी कि बीजेपी ने एक विज्ञापन छापा जो नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी के साथ हाथ मिलाते हुए दिखा रहा था।

मतलब साफ़ था नीतीश ये तक नहीं चाहते थे कि उनकी तस्वीर सार्वजनिक तौर पर नरेंद्र मोदी के साथ छपे। यहां तक कि नीतीश कुमार ने उस एजेंसी के ख़िलाफ़ कानूनी कार्रवाई की धमकी दी जिसने इस विज्ञापन को रिलीज़ किया था।

रिश्ते बिगड़ चुके थे नीतीश कुमार ने कोसी राहत के पांच करोड़ भी लौटाए और फिर कभी नहीं लौट पाई सही दिशा में बीजेपी और जेडीयू की दोस्ती और फिर 16 जून 2013 को ये दोस्ती टूट गई।

तभी से ये सवाल उठने लगा कि फायदा किसका होगा उस दोस्ती के टूटने से… बीजेपी का या नीतीश कुमार का। आज स्थिति ये है कि सर्वे बीजेपी का फ़ायदा दिखाते हैं और नीतीश कुमार को कमज़ोर बताते हैं। लेकिन इसने ये तय कर दिया कि यूपी और बिहार के बीच किसकी पकड़ ज़्यादा होगी इसमें पूर्वांचल जिसके गंगा के एक किनारे पर यूपी और दूसरे पर बिहार है ये बहुत अहम हो चुका है।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com