
- भारत और इंग्लैंड के बीच पहले तीन टेस्ट मैचों में ड्यूक्स गेंद का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन कुछ समस्याएं सामने आई हैं
- ड्यूक्स गेंद निर्माता कंपनी क्रिकेट बॉल्स लिमिटेड ने गेंद की गुणवत्ता जांचने के लिए प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा की है
- गेंद पहले तीस ओवरों के बाद सॉफ्ट हो जाती है और अपना आकार खोने से गेंदबाजों के लिए विकेट लेना कठिन हो जाता है
भारत और इंग्लैंड के बीच पहले तीन टेस्ट मैचों में ड्यूक्स गेंद का इस्तेमाल किया गया. हालांकि कुछ विशेषज्ञों ने गेंद से जुड़ी समस्याओं का जिक्र किया है. अब ड्यूक्स (Dukes Ball) गेंद की निर्माता कंपनी इससे जुड़ी समस्याओं का पता लगाने के लिए जांच प्रक्रिया शुरू करने वाली है. ड्यूक्स गेंदों को उच्च गुणवत्ता वाली गेंद माना जाता है. इसका उत्पादन साल 1760 से हो रहा है. इंग्लैंड और भारत के बीच जारी टेस्ट सीरीज के पहले तीन टेस्ट मैचों में भी ड्यूक्स गेंद का इस्तेमाल हुआ. रिपोर्ट्स के मुताबिक दूसरी नई गेंद आने से पहले ही सॉफ्ट होने लगती है.
ड्यूक्स गेंद बनाने वाली ब्रिटिश कंपनी क्रिकेट बॉल्स लिमिटेड के मालिक दिलीप जजोदिया ने शुक्रवार को कहा, 'हम गेंद ले जाएंगे. इसके निर्माण में इस्तेमाल होने वाले चमड़े और अन्य कच्चे माल की चर्चा करेंगे और उसकी जांच करेंगे. हर छोटी, बड़ी चीज की समीक्षा की जाएगी और फिर अगर हमें लगेगा कि कुछ बदलाव करने की जरूरत है, तो हम करेंगे.' गेंद निर्धारित उपयोग होने से पहले ही बहुत सॉफ्ट हो जा रही है अपना आकार खो दे रही है. खासकर पहले 30 ओवरों के बाद, इस वजह से दोनों टीमों के गेंदबाजों के लिए विकेट लेना मुश्किल हो गया है.

ड्यूक्स गेंद की गुणवत्ता का मुद्दा तब ज्यादा चर्चा में आया जब लॉर्ड्स में खेले गए तीसरे टेस्ट में इंग्लैंड की पहली पारी के दौरान पांच गेंदें बदली गईं, जबकि एक गेंद दूसरे दिन के खेल के केवल 10.2 ओवर बाद ही बदली गई थी. जाजोदिया ने कहा,'गेंद की जांच इस्तेमाल से पहले नहीं की जा सकती. गेंद इस्तेमाल के दौरान ही विफल होती है. हम गेंद बनाने की पूरी प्रक्रिया की जांच कर सकते हैं.'
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