मशहूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब
नई दिल्ली:
उर्दू और फारसी भाषा के मशहूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब का आज जन्मदिन है. उनका असली नाम मिर्जा असदुल्लाह बेग खान था. वो ग़ालिब नाम से शायरी लिखा करते थे और धीरे-धीरे दुनिया उन्हें इसी नाम से जानने लगी. ये ग़ालिब की कलम का ही जादू है कि आज भी लोग उनकी शायरी के कायल हैं. मौजूदा समय के शायर तो उनके नाम की कसमें भी खाते हैं. उन्होंने अपने बारे में लिखा था कि दुनिया में यूं तो बहुत से अच्छे कवि-शायर हैं, लेकिन उनकी शैली सबसे निराली है. उनके शब्दों में, "हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे, कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए बयां और". उनके जन्मदिन के मौके पर हम उनकी जिंदगी के बारे में कुछ बातें बता रहे हैं:
हमेशा दिलों में बसते हैं मिर्ज़ा ग़ालिब
1. ग़ालिब का जन्म 27 दिसंबर 1797 को आगरा में हुआ था. उनकी शिक्षा के बारे में तो ज्यादा जानकारी नहीं है. उनकी शुरुआती जिंदगी और पढ़ाई के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखा गया है. हालांकि दिल्ली के रईसों और इज्जतदार लोगों के बीच उनका उठना-बैठना था.
2. बहुत ही छोटी उम्र में ग़ालिब की शादी हो गई थी. ऐसा कहा जाता है कि उनके सात बच्चे हुए, लेकिन उनमें से कोई भी जिंदा नहीं रहा सका. अपने इसी गम से उबरने के लिए उन्होंने शायरी का दामन थाम लिया.
3. ग़ालिब की दो कमजोरियां थीं- शराब और जुआं. ये दो बुरी आदतें जिंदगी भर उनका पीछा नहीं छोड़ पाईं. इसे नसीब का खेल ही कहेंगे कि बेहतरीन शायरी करने के बावजूद ग़ालिब को जिंदा रहते वो सम्मान और प्यार नहीं मिला जिसके वो
हकदार थे. शोहरत उन्हें बहुत देर से मिली.
4. बहादुर शाह जफर द्वितीय के दरबार के प्रमुख शयरों में से एक थे ग़ालिब. बादशाह ने उन्हें दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला के खिताब से नवाज़ा था. बाद में उन्हें मिर्ज़ा नोशा क खिताब भी मिला. इसके बाद वो अपने नाम के आगे मिर्ज़ा लगाने लगे. बादशाह से मिले सम्मान की वजह से गालिब की गिनती दिल्ली के मशहूर लोगों में होने लगी थी.
वकील ने सुनाया ग़ालिब का शेर तो सुनवाई के लिए राजी हो गए जज साहब
5. मिर्ज़ा ग़ालिब को उर्दू, फारसी और तुर्की समेत कई भाषाओं का ज्ञान था. उन्होंने फारसी और उर्दू रहस्यमय-रोमांटिक अंदाज में अनगिनत गजलें लिखीं. उन्हें ज़िंदगी के फलसफे के बारे में बहुत कुछ लिखा है. अपनी गज़लों में वो अपने महबूब से ज्यादा खुद की भावनाओं को तवज्जो देते हैं. ग़ालिब की लिखी चिट्ठियां को भी उर्दू लेखन का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है. हालांकि ये चिट्ठियां उनके समय में कहीं भी प्रकाशित नहीं हुईं थीं.
6. ग़ालिब की मौत 15 फरवरी 1869 को हुई थी. उनका मकबरा दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन इलाके में बनी निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास ही है.
7. 'मिर्ज़ा ग़ालिब' (1954) नाम से एक फिल्म भी है. इस फिल्म में भारत भूषण ने ग़ालिब का किरदार निभाया है. पाकिस्तान में भी इसी नाम से साल 1961 में फिल्म बन चुकी है. मशहूर शायर गुलज़ार ने 'मिर्ज़ा ग़ालिब' नाम से एक टीवी सीरियल बनाया था. दूरदर्शन पर प्रसारित यह टीवी शो कॉफी पॉप्युलर हुआ था. इस शो में नसीरुद्दीन शाह ग़ालिब की भूमिका में थे. शो की सभी गज़लें जगजीत सिंह और चित्रा सिंह ने कम्पोज की थीं.
VIDEO: जावेद अख्तर के साथ उर्दू शायरी और हिंदी फिल्मों पर बातचीत
हमेशा दिलों में बसते हैं मिर्ज़ा ग़ालिब
1. ग़ालिब का जन्म 27 दिसंबर 1797 को आगरा में हुआ था. उनकी शिक्षा के बारे में तो ज्यादा जानकारी नहीं है. उनकी शुरुआती जिंदगी और पढ़ाई के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखा गया है. हालांकि दिल्ली के रईसों और इज्जतदार लोगों के बीच उनका उठना-बैठना था.
2. बहुत ही छोटी उम्र में ग़ालिब की शादी हो गई थी. ऐसा कहा जाता है कि उनके सात बच्चे हुए, लेकिन उनमें से कोई भी जिंदा नहीं रहा सका. अपने इसी गम से उबरने के लिए उन्होंने शायरी का दामन थाम लिया.
3. ग़ालिब की दो कमजोरियां थीं- शराब और जुआं. ये दो बुरी आदतें जिंदगी भर उनका पीछा नहीं छोड़ पाईं. इसे नसीब का खेल ही कहेंगे कि बेहतरीन शायरी करने के बावजूद ग़ालिब को जिंदा रहते वो सम्मान और प्यार नहीं मिला जिसके वो
हकदार थे. शोहरत उन्हें बहुत देर से मिली.
4. बहादुर शाह जफर द्वितीय के दरबार के प्रमुख शयरों में से एक थे ग़ालिब. बादशाह ने उन्हें दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला के खिताब से नवाज़ा था. बाद में उन्हें मिर्ज़ा नोशा क खिताब भी मिला. इसके बाद वो अपने नाम के आगे मिर्ज़ा लगाने लगे. बादशाह से मिले सम्मान की वजह से गालिब की गिनती दिल्ली के मशहूर लोगों में होने लगी थी.
वकील ने सुनाया ग़ालिब का शेर तो सुनवाई के लिए राजी हो गए जज साहब
5. मिर्ज़ा ग़ालिब को उर्दू, फारसी और तुर्की समेत कई भाषाओं का ज्ञान था. उन्होंने फारसी और उर्दू रहस्यमय-रोमांटिक अंदाज में अनगिनत गजलें लिखीं. उन्हें ज़िंदगी के फलसफे के बारे में बहुत कुछ लिखा है. अपनी गज़लों में वो अपने महबूब से ज्यादा खुद की भावनाओं को तवज्जो देते हैं. ग़ालिब की लिखी चिट्ठियां को भी उर्दू लेखन का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है. हालांकि ये चिट्ठियां उनके समय में कहीं भी प्रकाशित नहीं हुईं थीं.
6. ग़ालिब की मौत 15 फरवरी 1869 को हुई थी. उनका मकबरा दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन इलाके में बनी निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास ही है.
7. 'मिर्ज़ा ग़ालिब' (1954) नाम से एक फिल्म भी है. इस फिल्म में भारत भूषण ने ग़ालिब का किरदार निभाया है. पाकिस्तान में भी इसी नाम से साल 1961 में फिल्म बन चुकी है. मशहूर शायर गुलज़ार ने 'मिर्ज़ा ग़ालिब' नाम से एक टीवी सीरियल बनाया था. दूरदर्शन पर प्रसारित यह टीवी शो कॉफी पॉप्युलर हुआ था. इस शो में नसीरुद्दीन शाह ग़ालिब की भूमिका में थे. शो की सभी गज़लें जगजीत सिंह और चित्रा सिंह ने कम्पोज की थीं.
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