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स्मृति ईरानी ने किया भारत का नाम रोशन, दुनिया के सामने पेश की 'स्पार्क द 100k कलेक्टिव' पहल

पूर्व केंद्रीय मंत्री और भारतीय टेलीविजन की धाकड़ शख्सियत स्मृति ईरानी इस वक्त अपनी जिंदगी के सुनहरे पल जी रही हैं. अक्टूबर महीना उनकी बहुमुखी यात्रा का शानदार सबूत है, जहां वे न सिर्फ बातें कर रही हैं, बल्कि दुनिया में बदलाव भी ला रही हैं.

स्मृति ईरानी ने किया भारत का नाम रोशन, दुनिया के सामने पेश की 'स्पार्क द 100k कलेक्टिव' पहल
स्मृति ईरानी ने किया भारत का नाम रोशन
नई दिल्ली:

पूर्व केंद्रीय मंत्री और भारतीय टेलीविजन की धाकड़ शख्सियत स्मृति ईरानी इस वक्त अपनी जिंदगी के सुनहरे पल जी रही हैं. अक्टूबर महीना उनकी बहुमुखी यात्रा का शानदार सबूत है, जहां वे न सिर्फ बातें कर रही हैं, बल्कि दुनिया में बदलाव भी ला रही हैं. हाल ही में उन्होंने अपने शो 'क्योंकि सास की कभी बहू थी 2.0' में बिल गेट्स को बुलाकर सनसनी मचा दी. इसके अलावा, वे भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए प्रतिष्ठित टाइम 100 इवेंट में नजर आईं. शूटिंग के बीच वक्त निकालकर वे अपनी मुहिम 'स्पार्क द 100k कलेक्टिव' को न्यूयॉर्क के वैश्विक मंच पर ले गईं, जो इस फोरम का सहयोगी भागीदार है.

टाइम100 समिट में स्मृति ने भारत और अपनी इस पहल का झंडा बुलंद किया. 'स्पार्क द 100k कलेक्टिव' उनकी शुरुआत है, जो भारत के 300 शहरों में 1 लाख महिलाओं को उद्यमी बनाने का लक्ष्य रखती है. हाल ही में दिल्ली में इसका आयोजन भी हुआ. यह मुहिम छह मुख्य हिस्सों पर टिकी है, जो महिलाओं को जरूरी कौशल सिखाकर एक पूरा तंत्र तैयार करती है.

उनकी जोरदार स्पीच ने वैश्विक दर्शकों को छू लिया और दुनिया को उनकी साधारण शुरुआत से प्रभावशाली आवाज बनने की कहानी याद दिलाई. भावुक लहजे में उन्होंने अपनी जड़ों को याद करते हुए कहा, "कहते हैं जिंदगी एक चक्र पूरा करती है, और आज रात मेरे लिए ऐसा ही हुआ. 42 साल पहले दिल्ली की सड़कों पर मेरे पिता किताबें बेचते थे. वे पुरानी टाइम मैगजीनें स्क्रैप डीलर से खरीदकर बेचते, ताकि दिन के दो डॉलर कमाकर तीन बेटियों का पालन-पोषण कर सकें. आज मैं यहां खड़ी हूं, क्योंकि मेरे मेहनती माता-पिता के अलावा किसी ने मुझे पढ़ाई का मौका दिया, किसी ने अच्छी तनख्वाह दी, और किसी ने मुझे देश में राजनीतिक आवाज बनने में मदद की."

भारत की करोड़ों महिलाओं की आवाज बनते हुए स्मृति ने महिलाओं की ताकत पर रोशनी डालते हुए कहा,  "मेरे देश में मेरी जैसी 40 करोड़ महिलाएं हैं. इनमें से 9 करोड़ गांवों में रहकर छोटे धंधों से सालाना 37 अरब डॉलर का कारोबार करती हैं. 15 लाख महिलाएं पंचायतों में चुनी जाती हैं, जो आपकी नजर में टाउन काउंसिल जैसी हैं. 60 लाख महिलाएं रोजाना स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में काम पर जाती हैं."

'स्पार्क' के जरिए अपनी वैश्विक सोच पेश करते हुए स्मृति ने दृढ़ता से कहा, "जो थोड़ा-सा समूह जगा चुकी हूं, उसके साथ मैं यहां एक बीज बोने आई हूं. भारत में दो महिलाओं ने मिलकर 1 लाख छोटे धंधों वाली महिलाओं तक पहुंचने का फैसला किया. हम सरकार का इंतजार नहीं करना चाहतीं. हम 300 शहरों में शुरू करेंगे, 1 लाख से 10 लाख तक पहुंचेंगे, 100 मिलियन डॉलर का प्रभाव फंड बनाएंगे. फिर किसी ने कहा कि इसे 56 देशों में फैलाओ, तो हमने कहा हां क्यों नहीं."

अंत में उन्होंने दुनिया के नेताओं से अपील की, "मेरा एक ही अनुरोध है, दुनिया में महिलाएं 30 ट्रिलियन डॉलर की खरीदारी नियंत्रित करती हैं, लेकिन व्यवसायों में से सिर्फ एक-तिहाई का मालिकाना रखती हैं और वेतन में 20% का फर्क झेलती हैं. तो अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए हिम्मत जुटाते हुए, बेबाकों की आवाज बनने की ताकत भी इकट्ठा करें."

'स्पार्क द 100k कलेक्टिव' से स्मृति सिर्फ महिलाओं के हक की बात नहीं कर रही, बल्कि एक आंदोलन जला रही हैं. अक्टूबर का अंत होते हुए साफ है कि यह महीना और यह पल उनका है, टीवी को नई जिंदगी देने से लेकर बहसों में बदलाव लाने तक, और न्यूयॉर्क के मंच पर चमकने तक.

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