
बॉलीवुड में दीवाली हमेशा रोशनी, खुशियों और धमाकेदार गानों से जुड़ी दिखती है. लेकिन 1973 की जंजीर फिल्म में इस त्योहार को एक दर्दनाक मोड़ मिला हुआ नजर आया. ये वही फिल्म है जिसने अमिताभ बच्चन को एंग्री यंग मैन बना दिया. लेकिन कहानी की शुरुआत ही एक ऐसी दीवाली से होती है जो जश्न नहीं, बल्कि खून से सनी हुई होती है. जब बाकी लोग पटाखों की आवाज में खुशी ढूंढ रहे थे चारों ओर रोशनी जगमगा रही थी. तब एक छोटा बच्चा अपनी दुनिया बिखरते हुए देख रहा था. और वही बच्चा बड़ा होकर बना इंसाफ का एक सिपाही . जिसकी पहचान बनी इंस्पेक्टर विजय के नाम से.
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दीवाली की रात जब छिन गया एक मासूम का बचपन
ज़ंजीर की शुरुआत बहुत मासूम और खुशियों भरी लगती है. रंगीन लाइटें, आसमान में चमकते पटाखे और खुशियों की गूंज. लेकिन कुछ ही पलों में ये रोशनी अंधेरे में बदल जाती है. विजय नाम का एक छोटा बच्चा अपनी आंखों से देखता है कि कैसे उसके माता-पिता को बेरहमी से मार दिया जाता है. बाहर लोग हैप्पी दीवाली कह रहे हैं, लेकिन उसके घर में खेली जा रही होती है खून की होली. ये सीन दर्शकों को झकझोर देता है और विजय के अंदर जन्म लेता है एक सवाल कि उसके लिए इंसाफ कौन करेगा.
उसी दीवाली से शुरू हुआ एंग्री यंग मैन का सफर
वही बच्चा बड़ा होकर बनता है इंस्पेक्टर विजय बनता है. जो एक सख्त, चुप और गुस्से से भरा पुलिसवाला है. अमिताभ बच्चन ने इस किरदार को इतनी ताकत से निभाया कि ये भारतीय सिनेमा की दिशा ही बदल गई. ज़ंजीर की उस दर्दनाक दीवाली ने हिंदी फिल्मों को नया हीरो दिया. जो गलत के खिलाफ खड़ा होता है, चाहे दुनिया उसके सामने क्यों न हो. ये सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक यादगार शुरुआत थी. अमिताभ बच्चन के उस फिल्मी सफर की जिसने हिंदी सिनेमा का चेहरा हमेशा के लिए बदल दिया. और, बॉलीवुड को मिला सदी का महानायक.
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