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This Article is From Oct 31, 2016

क्यों जलाए जा रहे हैं कश्मीर में स्कूल, आइए समझें

Umashankar Singh
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 31, 2016 12:32 pm IST
    • Published On अक्टूबर 31, 2016 12:32 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 31, 2016 12:32 pm IST
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद अमेरिका ने जब अफ़ग़ानिस्तान में लड़ाई छेड़ी तो तालिबान ने पाकिस्तान के सरहदी कबाइली इलाक़े का रुख़ किया. यहां पैठ बनाने के लिए उसने पठानों की 6 हज़ार साल पुरानी जीवनशैली 'पख़्तूनवली' की परंपरा 'नानावतायी' का इस्तेमाल किया. ख़ुद और स्थानीय वासियों से शरण मांगी. स्थानीय लोगों ने भी उन्हें सताया हुआ मान 'मेलमस्तिया' यानि खुले दिल से मेहमानों का दर्जा दिया.

पहले तो वे चुपचाप घरों में आकर चुपचाप बैठे फिर धीरे धीरे रंग दिखाना शुरू किया. लड़कियों की शिक्षा पर पाबंदी लगा दी. स्कूलों को जलाने लगे. मक़सद शिक्षा ख़त्म कर देने का रहा ताकि अनपढ़ किशोरों को आसानी से 'जिहाद' के लिए तैयार किया जा सके. वे स्थानीय लीडरशिप को ख़त्म करने लगे. फिर अफ़ग़ानिस्तान के साथ साथ पाकिस्तान के कबाइली-पठान इलाक़ों का क्या हुआ ये किसी से छिपा नहीं है. आतंकवादी ख़ुदमुख़्तार बन कर बैठ गए. तालिबानी के 'पठान भाईयों' को मेहमान मानने वाले पिछले 14-15 साल से ख़ुद हर दिन मौत के साए से गुज़र रहे हैं.

इस पृष्ठभूमि के ज़िक्र का परिप्रेक्ष्य ये है कि कश्मीर में ऐसा ही पैटर्न देख रहा हूं. जो कश्मीरियों का 'हमदर्द' बन कर आने का दावा करते रहे हैं वही स्कूल जला रहे हैं. चुनकर आने वाली स्थानीय लीडरशिप पर हमले कर रहे हैं. लेकिन जिन कश्मीरियों को लगता है कि ये 'मुजाहिद भाई' उन्हें 'आज़ादी' दिलाने आए हैं उन्हें लश्कर-जैश-तालिबान-अलक़ायदा की असल मंशा को पहचाना चाहिए. नहीं तो एक दिन वे शरणार्थी बनने को मजबूर हो जाएंगे. स्वात में क्या हुआ ये उन्हें जानने की ज़रूरत है, पर पता नहीं उनको ये सब बताया भी जा रहा है या नहीं.

उमाशंकर सिंह एनडीटीवी इंडिया में एडिटर इंटरनेशनल अफेयर्स हैं.

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