बिहार के प्रसिद्ध योग स्कूल के प्रमुख बता रहे हैं योग के राज़

मुंगेर:

जब भी आप योग के बारे में सुनते हैं तो आप इसके बारे में अपने दिमाग में एक खाका तैयार करते हैं कि आखिर यह आपके लिए क्या है। योग का नाम आते ही कुछ के दिमाग में कांटों के बिस्तर पर बैठा फकीर याद आता होगा, जो ध्यान में लीन है और उन्हें लगता होगा कि यही योग है।

कुछ लोग किसी पहाड़ की गुफा में बैठे किसी साधु के बारे में सोचते हैं और योग को उससे जोड़ कर देखते हैं। कुछ लोगों ने रीढ़ की हड्डी पर कुंडलिनी की ऊपर की ओर जाती हुई पिक्टोरल रिप्रजेंटेशन देखी होगी और उनकी योग में रुचि जग गई। जबकि कोई अन्य व्यक्ति योग स्टूडियो में जाकर शीशे के सामने योग एरोबिक्स करता है। वह अपने शरीर को देखता है, अपने आसन को ध्यान से देखता है और उन्हें लगता है कि योग शारीरिक होता है और यह उनके शरीर के आकार को बनाकर रखता है।

हर व्यक्ति योग के बारे में अपना अलग विचार रखता है या उसके दिमाग में इसको लेकर अलग तस्वीर बनती है और इसी तरह से योग की पहचान बनी है। आप अपने दिमाग में योग को लेकर कई विचार, कई तस्वीरें बनाते हैं, जो ये तय करता है कि आपके लिए योग क्या है। हालांकि इनमें से कुछ भी योग नहीं है। ...तो फिर योग है क्या?

इस सवाल का जवाब देने के लिए हम इस निर्णय पर पहुंचे कि दरअसल योग जीवनशैली है। यह एक अभ्यास नहीं है। यहां तक कि यह आध्यात्मिक साधना भी नहीं है। असल में यह जीवनशैली ही है। एक बार आप योग के नियमों के तहत जीना शुरू कर देते हैं तो बहुत संभावनाएं हैं कि आपकी धारणाओं, बातचीत, मन, भावनाओं, व्यवहार और कार्यों आदि में सुधार होने लगेगा। क्या यह सब बदलाव आसन, प्राणायाम, रिलेक्शेसन और मेडिटेशन (विश्राम और ध्यान), मंत्र और सत्संग करने से ही आते हैं? या क्या ऐसा सुधार जब आप अपनी जिंदगी की प्रगति और विकास के उत्तरदायित्व को अपने हाथों में लेते हैं तब भी होता है?

संतों का मानना रहा है कि हर व्यक्ति को जिंदगी में खुद की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। उन्हें अपनी जिंदगी में सुधार के प्रति सचेत और जिम्मेदार रहना चाहिए। मरीज को दवा दी जा सकती है, लेकिन अगर कोई मरीज दवा न खाकर उसे मुट्ठी में दबाकर ही रखे तो वह ठीक कैसे होगा? आपके अपने हाथ में दवा है, फिर भी आप उसे नहीं खा रहे हैं। आप जिम्मेदारी से भाग रहे हैं। आप अच्छा महसूस कर सकते हैं, लेकिन आप दवा लेने की अपनी जिम्मेदारी ही नहीं निभा रहे।

इसीलिए, मैं योग को एक जीवनशैली के रूप में देखता हूं। जैसे-जैसे आप योग के छोटे-छोटे नियमों का अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में पालन करने लगते हैं आपका दैनिक जीवन अच्छा होने लगता है। आप योग के छोटे-छोटे नियमों को अपने व्यवहार में लाते हैं तो आपका व्यवहार अच्छा होने लगता है। आप थोड़ा-बहुत विश्राम और ध्यान करने लगते हैं तो आप अपनी जिंदगी में तनाव व चिंताओं से बेहतर तरीके से निपटने लगते हैं। जैसे ही आप योग घटकों को अपने दिनचर्या में लाना शुरू करते हैं तो योग आपकी जीवनशैली का हिस्सा बन जाता है। अगर आपको लगता है कि योग क्लास में शारीरिक क्रियाओं, सांसों पर नियंत्रण, विश्राम और ध्यान के जरिए ही योग किया जा सकता है तो फिर यह आपकी जिंदगी का हिस्सा कभी नहीं बन पाएगा।
                
इसलिए योग क्या है? प्रश्न का उत्तर है कि यह आपके शरीर, व्यवहार, मन और भावनाओं को नियंत्रित करने वाली एक जीवनशैली है। यह दिल, दिमाग और हाथों के संबंधों या विशेषताओं को बढ़ाने वाली एक जीवनशैली है। यही योग की परिभाषा है।

स्वामी निरंजनानंद सरस्वती योग के प्रसिद्ध जानकार है। वह बिहार के मुंगेर स्थित प्रसिद्ध योग स्कूल के प्रमुख हैं और उन्होंने योग, तंत्र और उपनिषदों पर कई पुस्तकें लिखी हैं।

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