
बीजेपी यूपी में दो तिहाई बहुमत की तरफ बढ़ रही है.
यूपी में बीजेपी का 14 साल बाद वनवास खत्म होने जा रहा है और रुझानों के मुताबिक यूपी में बीजेपी का केसरिया रंग लहरा रहा है. इन रुझानों के मुताबिक ऐसा लग रहा है कि 2014 की मोदी लहर का जादू अभी भी बरकरार है. उल्लेखनीय है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के पक्ष में 43 प्रतिशत मतदान और उसको 403 विधानसभा सीटों में 337 पर बढ़त हासिल हुई थी. इन परिस्थितियों में बीजेपी की बढ़त के अहम कारणों पर एक नजर:
मोदी की लहर
मोदी लहर का जादू विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिला. पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला. उन्होंने धुआंधार प्रचार किया. इसका नतीजा यह हुआ कि चुनाव के ऐन पहले जहां सपा-कांग्रेस गठबंधन को ओपिनियन पोल में बढ़त हासिल थी वहीं मोदी के चुनाव प्रचार शुरू करने के बाद माहौल बदलता गया. अंतिम दौर में तो पूर्वांचल की धुरी वाराणसी में पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद आक्रामक प्रचार कर पूरी तरह से माहौल बीजेपी के पक्ष में कर दिया.
गैर यादव-गैर दलित वोटबैंक पर दारोमदार
अबकी बार बीजेपी ने सबसे ज्यादा पिछड़ों पर भरोसा जताया. पिछड़ी जातियों के प्रत्याशियों को सबसे ज्यादा टिकट दिए गए. पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य को बनाया गया. वहीं बीएसपी से आए स्वामी प्रसाद मौर्य को पार्टी में शामिल किया गया. इस तरह बीजेपी ने टिकट से लेकर पिछड़ी जातियों को उचित प्रतिनिधित्व दिया है. सिर्फ इतना ही नहीं बसपा के गैर जाटव वोटर को भी अपनी तरफ जोड़ने के लिए खास जतन किए गए. इसके अलावा टिकट बंटवारे में सबसे ज्यादा जातीय गणित को बीजेपी ने ही साधा. जहां सपा और बसपा ने सबसे अधिक मुस्लिम मतों और अपने परंपरागत वोटर पर भरोसा दिखाया वहीं बीजेपी ने स्थानीय जातिगत समीकरणों के लिहाज से टिकटों को बांटा. इसका नतीजा अब देखने को मिल रहा है.
छोटी पार्टियों से गठजोड़
बीजेपी ने अपना दल और रामअचल राजभर की सुलहदेव समाज पार्टियों से काफी पहले ही गठबंधन किया. उसका नतीजा यह हुआ कि इन छोटी पार्टियों का वोटबैंक बीजेपी के खाते में गया.
स्थानीय मुद्दों को हवा
बीजेपी ने प्रचार अभियान में आक्रामक रुख अख्तियार करते हुए स्थानीय मुद्दों को उठाया. मसलन नौकरियों में भेदभाव और तुष्टिकरण जैसे मसलों को उभारा वहीं सपा और बसपा जैसे दलों ने बीजेपी पर हमलावर रुख अख्तियार करते हुए नोटबंदी जैसे राष्ट्रीय विषयों को उठाया और स्थानीय मुद्दों को उभारने में ज्यादा कामयाब नहीं हुए. इसके अलावा बीजेपी ने पिछले साल बिहार चुनाव में पराजय से सबक लेते हुए इस बार पार्टी के स्थानीय नेतृत्व को भी तवज्जो दी. पोस्टरों में पीएम नरेंद्र मोदी और अध्यक्ष अमित शाह के साथ राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र और केशव प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं के पोस्टर भी दिखते रहे. इसके माध्यम से बीजेपी ने अपने अभियान में 'लोकल टच' देने की सफल कोशिश की.
'काम नहीं कारनामा बोलता है'
सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के 'काम बोलता है' नारे के जवाब में बीजेपी ने 'काम नहीं कारनामा बोलता है' के माध्यम से सपा सरकार पर हमला बोला. इसके माध्यम से बीजेपी ने स्थानीय मुद्दों को ही उछाला.
मोदी की लहर
मोदी लहर का जादू विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिला. पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला. उन्होंने धुआंधार प्रचार किया. इसका नतीजा यह हुआ कि चुनाव के ऐन पहले जहां सपा-कांग्रेस गठबंधन को ओपिनियन पोल में बढ़त हासिल थी वहीं मोदी के चुनाव प्रचार शुरू करने के बाद माहौल बदलता गया. अंतिम दौर में तो पूर्वांचल की धुरी वाराणसी में पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद आक्रामक प्रचार कर पूरी तरह से माहौल बीजेपी के पक्ष में कर दिया.
गैर यादव-गैर दलित वोटबैंक पर दारोमदार
अबकी बार बीजेपी ने सबसे ज्यादा पिछड़ों पर भरोसा जताया. पिछड़ी जातियों के प्रत्याशियों को सबसे ज्यादा टिकट दिए गए. पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य को बनाया गया. वहीं बीएसपी से आए स्वामी प्रसाद मौर्य को पार्टी में शामिल किया गया. इस तरह बीजेपी ने टिकट से लेकर पिछड़ी जातियों को उचित प्रतिनिधित्व दिया है. सिर्फ इतना ही नहीं बसपा के गैर जाटव वोटर को भी अपनी तरफ जोड़ने के लिए खास जतन किए गए. इसके अलावा टिकट बंटवारे में सबसे ज्यादा जातीय गणित को बीजेपी ने ही साधा. जहां सपा और बसपा ने सबसे अधिक मुस्लिम मतों और अपने परंपरागत वोटर पर भरोसा दिखाया वहीं बीजेपी ने स्थानीय जातिगत समीकरणों के लिहाज से टिकटों को बांटा. इसका नतीजा अब देखने को मिल रहा है.
छोटी पार्टियों से गठजोड़
बीजेपी ने अपना दल और रामअचल राजभर की सुलहदेव समाज पार्टियों से काफी पहले ही गठबंधन किया. उसका नतीजा यह हुआ कि इन छोटी पार्टियों का वोटबैंक बीजेपी के खाते में गया.
स्थानीय मुद्दों को हवा
बीजेपी ने प्रचार अभियान में आक्रामक रुख अख्तियार करते हुए स्थानीय मुद्दों को उठाया. मसलन नौकरियों में भेदभाव और तुष्टिकरण जैसे मसलों को उभारा वहीं सपा और बसपा जैसे दलों ने बीजेपी पर हमलावर रुख अख्तियार करते हुए नोटबंदी जैसे राष्ट्रीय विषयों को उठाया और स्थानीय मुद्दों को उभारने में ज्यादा कामयाब नहीं हुए. इसके अलावा बीजेपी ने पिछले साल बिहार चुनाव में पराजय से सबक लेते हुए इस बार पार्टी के स्थानीय नेतृत्व को भी तवज्जो दी. पोस्टरों में पीएम नरेंद्र मोदी और अध्यक्ष अमित शाह के साथ राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र और केशव प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं के पोस्टर भी दिखते रहे. इसके माध्यम से बीजेपी ने अपने अभियान में 'लोकल टच' देने की सफल कोशिश की.
'काम नहीं कारनामा बोलता है'
सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के 'काम बोलता है' नारे के जवाब में बीजेपी ने 'काम नहीं कारनामा बोलता है' के माध्यम से सपा सरकार पर हमला बोला. इसके माध्यम से बीजेपी ने स्थानीय मुद्दों को ही उछाला.
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