आज आपको शुक्रिया कहने का दिन है. आपका होना ही मेरा होना है. मेरे जैसों का होना है. आज आप दिन भर बधाइयां भेजते रहे. मेरा कंधा कम पड़ गया है. आप सभी अच्छे दर्शकों का शुक्रिया. आपके जैसा दर्शक होना, आज के समय में दुर्लभ होना है. आपने मेरे कार्यक्रमों को देखने के लिए कितना कुछ छोड़ा होगा. हिन्दू मुस्लिम डिबेट नहीं देखते होंगे, एंकर की खूंखार भाषा से दूर रहते होंगे. जब भी सूचना गायब हो जाएगी, सूचना लाने की पत्रकारिता समाप्त हो जाएगी, तब भाषा में हिंसा ही बचेगी. इसलिए आप देखते होंगे कि एंकर ललकार रहे हैं. वो पूछ नहीं रहे हैं, बल्कि पूछने वाले को ललकार रहे हैं. जो पूछता है वह अपना सब कुछ दांव पर लगाता है. वह सत्ता के सामने होता है. ऐसे में पत्रकारिता का काम है उसे सहारा दे ताकि वह और पूछ सके और पूछने पर नुकसान न हो. लेकिन हो रहा है उल्टा. पूछने वाले को देशद्रोही बताया जाता है. आप देखेंगे कि बहुत से लोग इस डर के कारण पूछने से बचते हैं. यह अच्छा नहीं है. सत्ता में भी हमारे ही लोग बैठे हैं. आप चाहें जो कह लें, आज जो चैनलों में हो रहा है वो पत्रकारिता नहीं है. इसलिए कहने का मन कर रहा है कि आपको कोई गिन नहीं सकता है. मुझे ज़ीरो टीआरपी वाला एंकर कह सकता है मगर आप एक दर्शक हैं और आप ज़ीरो नहीं हैं.