Blogs | रवीश कुमार |गुरुवार मार्च 3, 2022 12:45 AM IST आसमान से बम गिर रहे हैं और सामने से गोली आ रही है लेकिन दिमाग़ जहां था वहीं अटका हुआ है. जिससे पता चलता है कि दिमाग़ को खत्म करने की जंग इस दुनिया में हर जगह जीती जा चुकी है. इसका बमों और मिसाइलों से कोई लेना-देना नहीं है. प्रोपेगैंडा इतना मज़बूत है कि बहुत से लोग युद्ध को सही बताते हैं और रंग और नस्ल के नाम पर नफरत इतनी मज़बूत हैं कि मरने की हालत में भी कोई गोरा किसी काले को धक्का देकर अलग कर रहा होता है. मानवाधिकार का बखरा लग गया है. कई तरह के अधिकारों में बंट गया है. लोग अपने-अपने धर्माधिकार, नस्लाधिकार, जात्याधिकार, रंगाधिकार, क्षेत्राधिकार और सर्वाधिकार को श्रेष्ठ बताने और दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हैं. ग़नीमत है यूरोपीय और व्हाइट श्रेष्ठता से भरे किसी जानकार ने भूरे रंग के बारुद को ब्राउन साहिब नहीं पुकारा है.