
बचपन की सबसे मीठी यादों में से एक थी सुबह उठते ही टीवी के सामने बैठ जाना और दिनभर कार्टून नेटवर्क पर आने वाले अपने फेवरेट प्रोग्राम्स का इंतज़ार करना. उस दौर में बच्चों का टाइमटेबल सिर्फ़ स्कूल और होमवर्क तक सीमित नहीं था. बल्कि कार्टून देखने के हिसाब से भी बना होता था. सुबह उठकर ड्रैगन टेल्स की रंगीन दुनिया में खो जाना. दोपहर को पोकेमॉन की रोमांचक यात्रा पर निकल जाना. और रात को ड्रैगन बॉल ज़ी या नारुतो का ज़बरदस्त एक्शन देखना. ये सब हमारी छोटी-छोटी खुशियों का हिस्सा हुआ करता था. शायद यही वजह है कि आज जब हम इन शोज़ को याद करते हैं. तो दिल से निकलता है- 'वो सच में सुनहरे दिन थे'.
सुबह का जादू- ड्रैगन टेल्स और पोकेमॉन की शुरुआत
सुबह 7:30 बजे से ही बच्चों की नज़रें टीवी पर टिकी रहती थीं. ड्रैगन टेल्स हमें एक जादुई दुनिया में ले जाता. जहां दोस्ती और रोमांच दोनों मिलते. इसके बाद दोपहर तक आते-आते बच्चों की सबसे बड़ी पसंद बन जाता था पोकेमॉन इंडिगो लीग. पिकाचू की मासूमियत और आश की हिम्मत ने हर बच्चे को अपना बना लिया था.
दोपहर की मस्ती- टॉम एंड जेरी, करेज और रिची रिच
दोपहर का समय घरवालों की डांट और खाने की प्लेट के साथ बीतता. लेकिन बच्चों का ध्यान सिर्फ़ टीवी पर होता था. टॉम एंड जेरी की शरारतें. करेज द कावर्डली डॉग की डर और मज़ाक से भरी कहानियां. और रिची रिच की आलीशान ज़िंदगी. ये सब बच्चों को अलग-अलग तरह का मज़ा देते थे.
शाम का धमाल- बेन 10, बाकुगन और टॉम एंड जेरी का नया रंग
शाम ढलते ही शुरू होता था असली रोमांच. बेन 10 का ओमनिट्रिक्स बच्चों का सबसे बड़ा सपना बन गया था. हर कोई चाहता था कि उसके पास भी वही घड़ी हो. जिससे अलग-अलग हीरो बनकर दुश्मनों से लड़ा जा सके. बाकुगन बैटल ब्रॉलर्स का एक्शन. और फिर टॉम एंड जेरी: कैट एंड माउस फुल हाउस का मस्त अंदाज़ बच्चों की शाम को और भी खास बना देता था.
रात का जादू: ड्रैगन बॉल ज़ी, नारुतो और जॉनी ब्रावो
रात 9:30 बजे का समय सबसे ज़्यादा इंतज़ार वाला होता था. क्योंकि तब शुरू होता था ड्रैगन बॉल ज़ी. गोकू का कम्हामेहा देखना बच्चों के लिए किसी जश्न से कम नहीं था. इसके बाद नारुतो दोस्ती. मेहनत और संघर्ष की सीख देता. देर रात हंसी का मज़ा मिलता जॉनी ब्रावो के अंदाज़ से. और द जेटसन्स हमें एक अलग भविष्य की सैर कराते.
क्यों खास था वो दौर?
उस ज़माने में ना मोबाइल थे. ना यूट्यूब. और ना ही ओटीटी. बच्चे कार्टून मिस न हो जाए इसके लिए अपना पूरा दिन उसी हिसाब से बाँध लेते थे. ये शेड्यूल ही हमारी मासूमियत और खुशी की सबसे बड़ी पहचान था. आज जब इन पलों को याद करते हैं. तो लगता है वो सच में सुनहरे दिन थे. जब हमारी छोटी-सी दुनिया टीवी स्क्रीन पर ही सिमटकर खुशियों से भर जाती थी.
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