वो सफर जिसने दिलीप कुमार को बनाया आइकॉन...
The Journey That Made Dilip Kumar An Icon
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दिलीप कुमार का असली नाम मोहम्मद युसूफ खान था. 1930 के दशक में परिवार मुंबई चला गया और 1940 में, यूसुफ घर छोड़कर पुणे चला गया, जहां वह कैंटीन चलाते थे, उन्हें कैंटीन में अभिनेत्री देविका रानी और उनके निर्देशक-पति हिमांशु राय, बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो के मालिक ने देखा.
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1955 में बिमल रॉय की क्लासिक 'देवदास' में दिलीप कुमार ने वैजयंती माला और बंगाली अभिनेत्री सुचित्रा सेन के साथ अभिनय किया. शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित, 'देवदास' एक बड़ी सफल फिल्म थी, जिसके बाद दिलीप साहब को उनका तीसरा फिल्मफेयर पुरस्कार मिला.
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1966 में, दिलीप कुमार ने एमिली ब्रोंटे के क्लासिक उपन्यास, 'वुथरिंग हाइट्स' के हिंदी रूपांतरण, 'दिल दिया दर्द लिया' के साथ निर्देशन में हाथ आजमाया. फिल्म का सह-निर्देशन ए आर कारदार ने किया था. फिल्म में दिलीप कुमार ने मुख्य भूमिका निभाई थी, जिसमें वहीदा रहमान, प्राण, रहमान, श्यामा और जॉनी वॉकर भी थे.
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1982 में, दो बॉलीवुड दिग्गज एक साथ अपनी पहली फिल्म में दिखाई दिए. रमेश सिप्पी की 'शक्ति' ने दिलीप कुमार को ईमानदार पुलिस वाले के रूप में और अमिताभ बच्चन को उनके अलग बेटे के रूप में कास्ट किया. फिल्म ने दिलीप साहब को उनका आठवां और आखिरी फिल्मफेयर पुरस्कार दिलाया.
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दिलीप कुमार को 1991 में पद्म भूषण, 1994 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार और 1998 में निशान-ए-पाकिस्तान (पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार) से सम्मानित किया गया था. उन्हें 1993 में फिल्मफेयर का लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड मिला. उन्होंने 1980 में मुंबई के शेरिफ का मानद पद भी संभाला.