मिलिए भारत की पहली दिव्यांग महिला स्टैंड-अप कॉमेडियन निधि गोयल से
रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा एक ऐसा रोग है जो व्यक्ति को मात्र 15 साल की उम्र में अपनी चपेट में ले लेता है. इसी रोग की शिकार निधि गोयल के सफर पर एक नजर
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निधि लगभग 15 साल की थीं, जब उन्हें रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा का पता चला था. उन्होंने अपनी किशोरावस्था में अपनी दिव्यांगता को उजागर किया और इलाज के चार से पांच सालों के अंदर, गोयल को दिखना पूरी तरह बंद हो गया था. इसके चलते निधि को चित्रकार बनने के अपने सपने को छोड़ना पड़ा.
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अपनी शिक्षा के बाद, निधि ने मीडिया हाउस के साथ एक इंटर्न के रूप में काम किया और बाद में एक पत्रकार, लेखक और अनुवादक के रूप में काम किया. 2011 में उन्होंने दिव्यांग लोगों के अधिकारों के लिए आवाज उठाकर अपनी सक्रिय यात्रा शुरू की. इसके बाद दिसंबर 2015 में कॉमेडी डेब्यू किया गया.
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"मैं निधि गोयल हूं और मैं देख नहीं सकती, लेकिन प्यार भी ऐसा ही है, शायद हमें इससे उबरना चाहिए". इस तरह, भारत की पहली महिला दिव्यांग स्टैंड-अप कॉमेडियन निधि गोयल ने मंच पर अपना परिचय दिया. वह दिव्यांग और महिला भेदभाव के आसपास मौजूदा कलंक को चुनौती देने के लिए कॉमेडी का सहारा लेती हैं."
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अपने डेब्यू परफॉर्मेंस को याद करते हुए निधि ने कहा, "पहले दो-तीन मिनट के लिए लोग इतने असहज थे कि भूल गए कि मैं एक कॉमिक हूं. वे सिर्फ मेरी दिव्यांगता को देखते रहे. परफॉर्मेंस के अंत में एक महिला मेरे पास आई. और कहा, मैं हंस-हंस कर लोटपोट हो रही थी, लेकिन यह सोचकर रो भी रही थी, 'हे भगवान, मैं दिव्यांग लोगों के साथ ऐसा करती हूं'."
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लेकिन एक चीज जो जीवन के सभी चरणों में उसका पीछा करती रही, वह थी उसके अंधेपन के कारण होने वाला भेदभाव. उदाहरण के लिए, एक बार एक एयरलाइन ने आठ घंटे के अंतराल के दौरान उसकी मदद करने से इनकार कर दिया. जब गोयल ने एक कैफे में जाने और खुद एक कप कॉफी लेने या वाशरूम का उपयोग करने का फैसला किया, तो उनका पासपोर्ट छीन लिया गया.
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गोयल फिक्की की विविधता और समावेश कार्य बल की दिव्यांग-नारीवादी कार्यकर्ता और वॉयस की सलाहकार बोर्ड की सदस्य हैं, जो डच मंत्रालय द्वारा अनुदान देने वाली परियोजना है. वह संयुक्त राष्ट्र महिला कार्यकारी निदेशक की वैश्विक सलाहकार रही हैं और उन्होंने कई राष्ट्रीय और वैश्विक महिलाओं के अधिकारों, दिव्यांगता के अधिकारों और मानवाधिकार संगठनों के साथ काम किया है.
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गोयल का मानना है कि जब किसी को पीछे न छोड़ने और समावेश सुनिश्चित करने की बात आती है तो लोगों की मानसिकता एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आती है. उनकी राय है कि दिव्यांग लोगों के साथ समाज ठीक है, शिक्षित और नियोजित हो रहा है, लेकिन उनके साथ शादी करने और मां होने जैसे "सामान्य" अनुभव पर यही समाज आज भी विभाजित है. उन्होंने कहा कि हमने दिव्यांग लोगों को "सामान्य" श्रेणी से हटा दिया है.