रात 9:57 बजे पृथ्वी की छाया ने चंद्रमा को ढकना शुरू कर दिया था. हालांकि देश के कुछ हिस्सों में मानसूनी बारिश के बीच चंद्रमा बादलों से घिरे आसमान में लुका-छिपी खेलता नजर आया.
रात 11:01 बजे पृथ्वी की छाया ने चंद्रमा को पूरी तरह से ढक लिया, जिससे चंद्रमा का रंग तांबे जैसा लाल हो गया और पूर्ण चंद्र ग्रहण का दुर्लभ नजारा देखने को मिला.
रविवार का ग्रहण 2022 के बाद से भारत में दिखाई देने वाला सबसे लंबा पूर्ण चंद्र ग्रहण था. यह 27 जुलाई, 2018 के बाद से देश के सभी हिस्सों से देखा जाने वाला पहला चंद्र ग्रहण था.
असल में चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है, जिससे उसकी छाया चंद्र सतह पर पड़ती है.
सूर्य ग्रहण के विपरीत, पूर्ण चंद्र ग्रहण को देखने के लिए विशेष उपकरण की आवश्यकता नहीं होती।
दुर्भाग्य से, कुछ अवैज्ञानिक मान्यताओं के कारण पिछले ग्रहणों के दौरान दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुई हैं, जिन्हें देखते हुए विज्ञान के प्रति जागरूकता की आवश्यकता का पता चलता है.
चंद्र ग्रहण से घंटों पहले रविवार को तिरुमाला स्थित श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर समेत आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के सभी प्रमुख मंदिरों के कपाट बंद कर दिए गए.
भारतीय मान्यताओं के अनुसार, चंद्रग्रहण सूर्य और चंद्रमा के बीच राहु के आने से होता है. खगोलीय घटना को लेकर लोगों में उत्साह और आध्यात्मिक श्रद्धा का माहौल देखा गया.
धार्मिक नगरी वाराणसी में चंद्रग्रहण के दौरान दशाश्वमेध घाट पर श्रद्धालुओं का भारी हुजूम उमड़ा। ग्रहण काल के बाद स्नान, ध्यान और दान का विशेष महत्व माना जाता है.
2022 के बाद से भारत में दिखाई देने वाला सबसे लंबा पूर्ण चंद्रग्रहण था, जो कि 27 जुलाई, 2018 के बाद से देश के सभी हिस्सों से देखा जाने वाला पहला चंद्रग्रहण था.