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लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में जातियों को साधने में जुटे सियासी दल, ऐसे बनाई रणनीति

भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन हो या राष्ट्रीय जनता दल नीत महागठबंधन, दोनों गठबंधनों के बीच पिछड़े वर्ग से आने वाले मतदाताओं को लुभाने की होड़ मची हुई है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर.
पटना:

बिहार (Bihar) में जाति आधारित राजनीति कोई नई बात नहीं है, परंतु लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) की आहट मिलने के साथ ही सभी दल जातियों के नाम पर मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में जुट गए हैं. भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) हो या राष्ट्रीय जनता दल नीत महागठबंधन (Mahagathbandhan), दोनों गठबंधनों के बीच पिछड़े वर्ग से आने वाले मतदाताओं को लुभाने की होड़ मची हुई है. भाजपा ने 15 फरवरी को पटना में 'ओबीसी मोर्चा' की दो दिवसीय सभा का आयोजन कर रखा था. हालांकि, जम्मू एवं कश्मीर में हुए आतंकी हमले के बाद सभा स्थगित कर दी गई. दूसरी तरफ विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव भी 'बेरोजगारी हटाओ, आरक्षण बढ़ाओ' अभियान के तहत पूरे प्रदेश का दौरा कर रहे हैं.

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वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, "बिहार और उसके पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में जाति आधारित राजनीति प्रारंभ से होती रही है. दीगर बात है कि उत्तर प्रदेश में कभी धर्म आधारित राजनीति भी जोर मारने लगती है. ऐसे में बिहार के किसी भी चुनाव में जातिगत राजनीति का चलन है."

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केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण देने के बाद तेजस्वी अपने 'बेरोजगारी हटाओ, आरक्षण बढ़ाओ' अभियान के साथ साफ तौर पर 1990 की मंडल राजनीति पर दांव खेल रहे हैं. वह आबादी के अनुसार आरक्षण मिलने की मांग कर रहे हैं. उनकी मांग है कि निजी क्षेत्र के अलावा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) को उनकी संबंधित जाति में संख्या के हिसाब से आरक्षण दिया जाए.

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ठाकुर इसे शुद्घ रूप से जाति आधारित राजनीति बताते हैं. उन्होंने कहा, "राजद अति पिछड़े वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रही है. आजकल कोई भी दल निपट स्वार्थवाली राजनीति में लगा हुआ है. जहां जाति की बातकर, पैसे के जरिए, बल के जरिए मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश की जा रही है, वहां उसूल ताक पर रख दिया जाता है. बिहार में यादव मतदाताओं पर राजद की पकड़ रही है. भाजपा सहित कई अन्य दलों ने राजद के इस वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश की, परंतु किसी को बड़ी सफलता नहीं मिली है.'

राजद आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के बाद भाजपा को ऊंची जाति की पार्टी साबित करने में भी लगी है. एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं, "राजद ने सदन में सामान्य वर्ग के आरक्षण का विरोध किया था. ऐसे में राजद खुद को ओबीसी और ईबीसी का शुभचिंतक बनने की कोशिश में लगा है. बिहार में सामान्य वर्ग से इन दोनों जाति वर्ग के मतदाताओं की संख्या अधिक है, यही कारण है कि तेजस्वी अगले चुनाव को 'सवर्ण बनाम पिछड़े' बनाने की कोशिश में लगे हैं."

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ओबीसी मोर्चा के सम्मेलन के सवाल पर उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने हालांकि जाति आधारित राजनीति की बात से इंकार किया है. उन्होंने कहा है कि भाजपा का मूलमंत्र 'सबका साथ, सबका विकास' का रहा है. उन्होंने कहा, "देश में सवर्ण समेत पिछड़ी जाति और दलित समाज सभी राजग के साथ हैं और इसी वजह से विपक्षी दल भाजपा के ओबीसी मोर्चा के कार्यक्रम से परेशान हैं."

राजद प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव कहते हैं, "भाजपा के किसी कार्यक्रम से महागठबंधन के वोट बैंक पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है. राजद का वोट बैंक पूरी तरीके से उसके साथ एकजुट खड़ा है और भाजपा की सेंधमारी की कोशिश बेकार है."

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जनता दल (युनाइटेड) पहले ही पूरे राज्य में अपने 'अति पिछड़ा प्रकोष्ठ' का जिलास्तरीय सम्मेलन आयोजित कर पिछड़े वर्ग के मतदाताओं से जुड़ने की कोशिश कर चुकी है. माना भी जाता है कि जिस प्रकार यादव मतदाताओं पर राजद की पकड़ है, वैसे ही कई चुनावों में जद (यू) अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अत्यंत पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में कामयाब रहे हैं.

मणिकांत ठाकुर कहते हैं, "बिहार समाजवाद की धरती रही है. पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के नाम को ही राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब से बांटकर राजनीति करते रहे हैं. इसी के तहत आज भी सभी दल अत्यंत पिछड़ी जातियों को साधने में फिर से जुट गए हैं. राजग के लिए बिहार में गैर-यादव वोट मौजूदा राजनीतिक स्थिति में राजग और महागठबंधन दोनों के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं."

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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