Periods में हुआ बदलाव : 30 से कम उम्र की महिलाएं बन रहीं हैं 'बांझ'

एक-दो प्रतिशत भारतीय महिलाएं 29 से 34 साल के बीच रजोनिवृत्ति के लक्षणों का अनुभव करती हैं. इसके अलावा, 35 से 39 साल की उम्र के बीच की महिलाओं में यह आंकड़ा आठ प्रतिशत तक बढ़ जाता है.

Periods में हुआ बदलाव : 30 से कम उम्र की महिलाएं बन रहीं हैं 'बांझ'

भारतीय महिलाओं में कम उम्र में रजोनिवृत्ति के लक्षण : अध्ययन

खास बातें

  • 29 से 34 साल के बीच में ही रजोनिवृत्ति के लक्षण
  • इसके परिणाम बहुत गंभीर
  • भारतीय महिलाओं में बांझपन का कारण
नई दिल्ली:

सभी महिलाओं को एक तय समय पर रजोनिवृत्ति यानी मेनोपॉज होते हैं. मासिक धर्म का यह चक्र 45 से 50 उम्र से शुरू हो जाता है. लेकिन हाल ही में हुई स्टडी यह पता चला है अब मेनोपॉज की उम्र घट चुकी है. अब 50 नहीं बल्कि इसका अनुभव 30 की उम्र में ही होने लगा है. इस स्टडी के मुताबिक लगभग एक-दो प्रतिशत भारतीय महिलाएं 29 से 34 साल के बीच रजोनिवृत्ति के लक्षणों का अनुभव करती हैं. इसके अलावा, 35 से 39 साल की उम्र के बीच की महिलाओं में यह आंकड़ा आठ प्रतिशत तक बढ़ जाता है. नोवा इवी फर्टिलिटी और इवी स्पेन द्वारा किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि कोकेशियन महिलाओं की तुलना में भारतीय महिलाओं के अंडाशय छह साल अधिक तेज हैं. इसके परिणाम बहुत गंभीर हैं.

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इन दिनों जोड़े देरी से विवाह करते हैं और गर्भधारण भी देर से करते हैं, वे इस बात से अनजान हैं कि भारतीय महिलाओं की जैविक घड़ी तेजी से आगे बढ़ रही है. एक हालिया विश्लेषण में भी 36 वर्ष से कम उम्र की भारतीय महिलाओं में बांझपन के सामान्य कारणों को पाया गया. 

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नोवा इवी फर्टिलिटी में कंसल्टेंट डॉ. पारुल सहगल ने कहा, "प्रीमैच्यौर ओवेरियन फेल्योर (पीओएफ) को समय से पूर्व अंडाशय में खराबी आने के रूप में जाना जा सकता है. इसमें कम उम्र में ही (35 वर्ष से कम उम्र में) अंडाशय में अंडाणुओं की संख्या में कमी आ जाती है. सामान्यत: महिलाओं में 40-45 वर्ष की उम्र तक अंडे बनते रहते हैं. यह रजोनिवृत्ति से पहले की औसत आयु है. पीओएफ के मामलों में महिलाओं में 30 वर्ष की उम्र में ही अंडाणु नहीं मिलते हैं."

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उन्होंने कहा, "बांझपन, या स्वाभाविक रूप से गर्भधारण करने में असमर्थता, पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान रूप से प्रभावित करती है. आम तौर पर एक प्रचलित गलत धारणा है कि बांझपन सिर्फ महिलाओं की समस्या है. पुरुष बांझपन की घटनाएं बढ़ रही हैं और ऐसा उन शहरों में बड़े पैमाने पर हो रहा है, जहां लोग तनावपूर्ण जीवनशैली से गुजर रहे हैं."

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पीएफओ में अंडाशय खराब हो जाते हैं और वे पर्याप्त मात्रा में एस्ट्रोजन हार्मोन पैदा नहीं करते या नियमित तौर पर अंडाणु नहीं देते. अंडाशय में अंडाणुओं की संख्या में कमी से महिलाओं प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है और उनका गर्भवती हो पाना मुश्किल हो जाता है. जीवनशैली से जुड़े बदलाव जैसे धूम्रपान, गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल, अंडाशय की पहले हुई कोई सर्जरी, कैंसर रोकने के लिए की गई थैरेपी और पारिवारिक पीओएफ आदि कुछ ऐसे जाने-पहचाने कारण हैं, जिनके कारण कम उम्र में अंडाणुओं की संख्या में कमी आ जाती है.

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पीओएफ का एक अन्य लक्षण मासिक नहीं होना या समय पर नहीं होना भी है. कई बार किसी महिला को नियत समय पर मासिक हो रहा है तो कई बार अगले कुछ महीनों मासिक समय पर नहीं होते. उनमें रजोनिवृत्ति के अन्य लक्षण जैसे रात में पसीना आना, नींद न आना, तनाव, मूड में जल्द बदलाव, योनि में सूखापन, ताकत में कमी, सेक्स की इच्छा कम होना, सेक्स के समय दर्द और ब्लैडर कंट्रोल में समस्या जैसे लक्षण भी नजर आ सकते हैं. (इनपुट - आईएएनएस)

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