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This Article is From Apr 21, 2020

लॉकडाउन में कुछ ऐसा है मनीषा कोइराला का हाल, कहा- "घबराहट होती है, याद आ गए कैंसर के वो द‍िन..."

Coronavirus Lockdown: मनीषा कोइराला (Manisha Koirala) का कहना है कि उन्‍हें लॉकडाउन का दौर कैंसर के दिनों की याद दिलाता है.

लॉकडाउन में कुछ ऐसा है मनीषा कोइराला का हाल, कहा- "घबराहट होती है, याद आ गए कैंसर के वो द‍िन..."
मनीषा कोइराला इन दिनों अपने पेरेंट्स के साथ क्‍वारंटीन हैं
नई दिल्ली:

मनीषा कोइराला (Manisha Koirala) मुंबई में अपने पेरेंट्स के साथ क्‍वारंटीन हैं. कैंसर से जंग जीतकर फिर से वापसी करने वाली मनीषा का कहना है कि देश व्‍यापी लॉकडाउन (Lockdown) के चलते इस तरह घर में रहना किसी हॉस्पिटल में अकेले रहने जैसा है. उन्‍होंने कहा कि उन्‍हें उन दिनों की याद आ रही है जब वो अस्‍पताल में रहकर कैंसर से लड़ रही थीं. इसी के साथ उन्‍होंने यह भी बताया कि उनके पुराने अनुभव उन्‍हें आज के हालातों से लड़ने में मदद कर रहे हैं.

हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स ने मनीषा कोइराला के हवाले से लिखा है, "न्‍यूयॉर्क में इलाज के दौरान मैं 6 महीने के लिए अपने अपार्टमेंट में कैद हो गई थी. पीछे मुड़कर देखूं तो वो समय आज के समय से हजार गुना बद्तर था. आज अगर हम दो महीने के लिए भी लॉक हो जाएं तो कम से कम ये तो उम्‍मीद है कि अगर हमने सही से नियमों का पालन किया तो हालात सुधर जाएंगे. मैं समझती हूं कि हम परेशान और बोर हो गए हैं, लेकिन इसी के साथ हमें हालातों की गंभीरता को भी समझना चाहिए और अपने गुजरे हुए कल से प्रेरणा लेनी चाहिए."

इसी के साथ मनीषा ने कहा कि वो खुद को इंफेक्‍शन से बचाने के लिए स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय द्वारा जारी निर्देशों का पालन कर रही हैं. 

उन्‍होंने कहा, "हम में से कुछ लोगों को दवाइयां लेने की जरूरत नहीं है. लेकिन हां बाकि लोगों की तरह ही हम भी अपनी इम्‍यूनिटी का खयाल रख रहे हैं. सही भोजन और डॉक्‍टर्स द्वारा बताए गए सप्‍लीमेंट्स लेना जरूरी है. हाथ धोना, चेहरे को छूने से बचना चाहिए... मैं अपने घर को भी साफ रख रही हूं.  मैं तो कुछ ज्‍यादा ही सफाई कर रही हूं क्‍योंकि मेरी मां मुझे इसके लिए बार-बार खींच रही हैं." 

लॉकडाउन के प्रकृति पर पड़े सकारात्‍मक बदलाव पर मनीषा ने कहा, "आप देख सकते हैं कि प्रकृति कितनी खुश और चमकदार बन गई है. मैंने कुछ ऐसे कीड़ों और च‍िड़‍ियों को भी देखा जिन्‍हें पिछले कई सालों से नहीं देखा था." 

मनीषा सोशल मीडिया के जरिए इस महामारी के बारे में जागरुकता फैलाने की भी कोशिश कर रही हैं, लेकिन कई बार स्‍ट्रेस की वजह से वो अच्‍छा महसूस नहीं करती हैं. उनके मुताबिक, "मुझे भी घबराहट होती है. ऐसा मुझे और मेरी मां दोनों को होता है. हालांकि जैसे भी भाव आएं हम एक-दूसरे के साथ खड़े हैं. अच्‍छा महसूस करने के लिए हम बातें करते हैं और फिल्‍म देखते हैं." 

बहरहाल, हमें उम्‍मीद है कि जल्‍द ही दुनिया को इस जानलेवा महामारी से छुटकारा मिल जाएगा. 

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