जून में विहिप ने राम मंदिर निर्माण के लिए देशभर से पत्थर इकट्ठा करने की घोषणा की थी
अयोध्या:
अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए वीएचपी ने पत्थर मंगाने शुरू कर दिए हैं। शिला पूजन के बाद पत्थरों की नक्काशी शुरू हो गई है। उधर राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष नृत्य गोपाल दास पीएम मोदी से मिलकर मांग करने वाले हैं कि कानून बनाकर अयोध्या में राम मंदिर बनाया जाए। लेकिन तमाम लोगों को लग रहा है कि करीब साल भर बाद यूपी में चुनाव हैं इसलिए वीएचपी ने फिर मंदिर राग छेड़ा है।
अयोध्या में वीएचपी की राम मंदिर निर्माण कार्यशाला में रौनक लौटी है। कारीगरों की उंगलियां मंदिर के पत्थरों पर फूलों की तस्वीरें नक्श कर रही हैं। वीएचपी की इस कार्यशाला में 8 साल से पत्थर नहीं आए थे और चार साल तो काम पूरी तरह बंद था।
कार्यशाला के सुपरवाइजर नागेंद्र उपाध्याय ने कहा, पहले जितने कारीगर की जरूरत पड़ती थी, 100-200, लगाए गए थे यहां। लेकिन अभी जितनी जरूरत पड़ेगी कारीगरों की, सबको बोला हुआ है, सबको खबर देने की देर है, सब आ जाएंगे तुरंत।'
अयोध्या की मणिराम दास जी की छावनी में हलचल तेज हो गई है। राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास यहीं रहते हैं। वो पत्थर आने से उत्साहित हैं। जल्द ही वो धर्माचार्यों का प्रतिनिधिमंडल लेकर पीएम मोदी से मांग करेंगे कि वो कानून बनाकर मंदिर बनाएं।
राम जन्मभूमि ट्रस्ट के अध्यक्ष नृत्य गोपाल दास ने कहा, 'मोदी जी से मिलकर धर्माचार्य आग्रह करेंगे कि मंदिर के निर्माण के लिए उचित समय है। आप पहल करिए और मंदिर का निर्माण, जैसे सोमनाथ जी का मंदिर बना, वैसे ही बनवाएं।'
अयोध्या में हलचल है कि राम मंदिर बनाने के लिए कुछ पत्थर और आ गए हैं। वीएचपी का कहना है कि पैसों की कमी से पत्थर नहीं आ पा रहे थे। अब पैसों का इंतजाम हुआ है, लिहाजा पत्थर आए हैं। लेकिन लोग ये सवाल जरूर पूछ रहे हैं कि ऐसा क्यों है कि हर बार चुनावों से पहले कुछ इस तरह की गतिविधियां शुरू होती हैं। मिसाल के लिए, 2002 के विधानसभा चुनाव से पहले वीएचपी का शिला पूजन अभियान, 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या चलो अभियान, 2007 के विधानसभा चुनाव से पहले राम प्रतिमा पूजन अभियान, 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले अयोध्या में राष्ट्रीय संत सम्मेलन, 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले 84 कोसी परिक्रमा, सितंबर 2014 के यूपी उपचुनाव से पहले लव जिहाद और घर वापसी और बिहार चुनाव के वक्त गो हत्या के मुद्दे उठाए गए।
अब फिर मंदिर मुद्दा उठा है, लेकिन मस्जिद के पैरोकार कहते हैं कि उनकी नजर सिर्फ अदालत पर है। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील जफ़रयाब जिलानी कहते हैं, 'मुस्लिम समाज इसका कोई जवाब नहीं देगा। ये फैसला 1994 में कर लिया था कि सड़कों पर नहीं निकलेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला 1994 में कर दिया था कि हाई कोर्ट जो फैसला करेगा, सभी को मानना पड़ेगा और वो 5 जजों का फैसला आज भी कायम है। तो हम लोगों ने फैसला कर लिया था कि सड़कों पर उतरने से कोई फायदा नहीं। हम मुकदमे की पैरवी करेंगे।'
अयोध्या हमेशा की तरह ही नजर आती है, वही मंदिर हैं, वही मठ, वही बाजार, पूजा पाठ का सामान बेच के पेट पालने वाले वही लोग। लेकिन इन हलचलों से कुछ अनहोनी का अंदेशा जरूर पैदा हुआ है।
अयोध्या में वीएचपी की राम मंदिर निर्माण कार्यशाला में रौनक लौटी है। कारीगरों की उंगलियां मंदिर के पत्थरों पर फूलों की तस्वीरें नक्श कर रही हैं। वीएचपी की इस कार्यशाला में 8 साल से पत्थर नहीं आए थे और चार साल तो काम पूरी तरह बंद था।
कार्यशाला के सुपरवाइजर नागेंद्र उपाध्याय ने कहा, पहले जितने कारीगर की जरूरत पड़ती थी, 100-200, लगाए गए थे यहां। लेकिन अभी जितनी जरूरत पड़ेगी कारीगरों की, सबको बोला हुआ है, सबको खबर देने की देर है, सब आ जाएंगे तुरंत।'
अयोध्या की मणिराम दास जी की छावनी में हलचल तेज हो गई है। राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास यहीं रहते हैं। वो पत्थर आने से उत्साहित हैं। जल्द ही वो धर्माचार्यों का प्रतिनिधिमंडल लेकर पीएम मोदी से मांग करेंगे कि वो कानून बनाकर मंदिर बनाएं।
राम जन्मभूमि ट्रस्ट के अध्यक्ष नृत्य गोपाल दास ने कहा, 'मोदी जी से मिलकर धर्माचार्य आग्रह करेंगे कि मंदिर के निर्माण के लिए उचित समय है। आप पहल करिए और मंदिर का निर्माण, जैसे सोमनाथ जी का मंदिर बना, वैसे ही बनवाएं।'
अयोध्या में हलचल है कि राम मंदिर बनाने के लिए कुछ पत्थर और आ गए हैं। वीएचपी का कहना है कि पैसों की कमी से पत्थर नहीं आ पा रहे थे। अब पैसों का इंतजाम हुआ है, लिहाजा पत्थर आए हैं। लेकिन लोग ये सवाल जरूर पूछ रहे हैं कि ऐसा क्यों है कि हर बार चुनावों से पहले कुछ इस तरह की गतिविधियां शुरू होती हैं। मिसाल के लिए, 2002 के विधानसभा चुनाव से पहले वीएचपी का शिला पूजन अभियान, 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या चलो अभियान, 2007 के विधानसभा चुनाव से पहले राम प्रतिमा पूजन अभियान, 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले अयोध्या में राष्ट्रीय संत सम्मेलन, 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले 84 कोसी परिक्रमा, सितंबर 2014 के यूपी उपचुनाव से पहले लव जिहाद और घर वापसी और बिहार चुनाव के वक्त गो हत्या के मुद्दे उठाए गए।
अब फिर मंदिर मुद्दा उठा है, लेकिन मस्जिद के पैरोकार कहते हैं कि उनकी नजर सिर्फ अदालत पर है। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील जफ़रयाब जिलानी कहते हैं, 'मुस्लिम समाज इसका कोई जवाब नहीं देगा। ये फैसला 1994 में कर लिया था कि सड़कों पर नहीं निकलेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला 1994 में कर दिया था कि हाई कोर्ट जो फैसला करेगा, सभी को मानना पड़ेगा और वो 5 जजों का फैसला आज भी कायम है। तो हम लोगों ने फैसला कर लिया था कि सड़कों पर उतरने से कोई फायदा नहीं। हम मुकदमे की पैरवी करेंगे।'
अयोध्या हमेशा की तरह ही नजर आती है, वही मंदिर हैं, वही मठ, वही बाजार, पूजा पाठ का सामान बेच के पेट पालने वाले वही लोग। लेकिन इन हलचलों से कुछ अनहोनी का अंदेशा जरूर पैदा हुआ है।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं