लखीमपुर खीरी केस: 'पीड़ितों को सुनवाई के अधिकार से वंचित किया गया है', पढ़ें कोर्ट ने आदेश में क्या कहा

Lakhimpur Case: 16 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार और आशीष मिश्रा को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा था कि आशीष मिश्रा की जमानत रद्द क्यों न की जाए. सुप्रीम कोर्ट ने गवाह पर हमले के मुद्दे पर भी चिंता जताई थी.

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Lakhimpur Case: सुप्रीम कोर्ट ने आशीष मिश्रा की जमानत खारिज की. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

लखीमपुर खीरी केस में सुप्रीम कोर्ट से अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा को बड़ा झटका लगा है. अदालत ने आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीड़ितों को हर कार्यवाही में सुनवाई का अधिकार है. मौजूदा मामले में पीड़ितों को सुनवाई के अधिकार से वंचित किया गया है. साथ ही अदालत ने कहा कि मंत्री पुत्र आशीष मिश्रा एक हफ्ते में सरेंडर करें. मिश्रा की जमानत रद्द करवाने के लिये किसानों की तरफ से याचिका दायर की गयी थी जिस पर शीर्ष अदालत ने 4 अप्रैल को अपना आदेश सुरक्षित रखा था.

  1. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आशीष मिश्रा की जमानत अर्जी पर हाईकोर्ट नए सिरे से विचार करे. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पीड़ितों को उनके सुनवाई के अधिकार से वंचित किया गया है. अदालत ने कहा कि एफआईआर को घटनाओं का इनसाइक्लोपीडिया नहीं माना जा सकता है. न्यायिक मिसालों की अनदेखी की गई है. हम फिर से जोर देते हैं कि जमानत के आवेदन पर फैसला करते समय अदालत को 
    सबूतों का मूल्यांकन करने या विस्तृत मूल्यांकन करने से बचना चाहिए क्योंकि यह प्रारंभिक स्तर पर एक प्रासंगिक विचार नहीं है, जबकि अदालत प्रथम दृष्टया मुद्दों की जांच कर सकता है  जिसमें कोई भी उचित आधार शामिल है.
  2. आरोपी ने अपराध किया है या नहीं  या स्वयं अपराध की गंभीरता, योग्यता का एक व्यापक विचार है जिसमें अभियोजन पक्ष या बचाव के मामले में पूर्वाग्रह की क्षमता है, उससे बचना चाहिए. हम स्पष्ट करते हैं कि न तो हमने मामले की योग्यता पर विचार किया है और न ही हम वर्तमान मामले में SIT  द्वारा एकत्र किए गए सबूतों पर टिप्पणी करने के इच्छुक हैं. हाईकोर्ट ने ऊपर दिए सिद्धांतों को पूरी तरह छोड़ दिया है , जो परंपरागत रूप से जमानत देनी है या नहीं इस पर न्यायालय के विवेकाधिकार को नियंत्रित करते हैं.
  3. अपराध की प्रकृति और गंभीरता जैसे पहलुओं पर गौर करने के बजाय; सजा की स्थिति में सजा की गंभीरता; ऐसी परिस्थितियां जो अभियुक्तों या पीड़ितों के लिए विशिष्ट हैं; आरोपी के भागने की संभावना; सबूतों और गवाहों के साथ छेड़छाड़ की संभावना और उसकी रिहाई का ट्रायल और बड़े पैमाने पर समाज पर पड़ने वाले प्रभाव पर अदालत को विचार करना चाहिए.
  4. हाईकोर्ट  ने रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों के बारे में एक अदूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाया है और मामले को गुण-दोष के आधार पर तय करने के लिए आगे बढ़ा है. हाईकोर्ट ने जमानत देने के लिए न्यायिक मिसालों और स्थापित मानकों की अनदेखी करते हुए कई अप्रासंगिक विचारों को ध्यान में रखा है.
  5. कई बार FIR को  घटनाओं के विश्वकोश के रूप में नहीं माना जा सकता है, जबकि FIR में आरोप, कि आरोपी ने अपनी बन्दूक का इस्तेमाल किया और उसके बाद पोस्टमार्टम और चोट की रिपोर्ट का कुछ सीमित असर हो सकता है, उसे अनुचित महत्व देने की कोई कानूनी आवश्यकता नहीं थी.
  6. इसके अलावा, जब ट्रायल शुरू होना है तो किसी मामले के गुण-दोष पर टिप्पणियों का मुकदमे की कार्यवाही के परिणाम पर प्रभाव पड़ने की संभावना है. अभियुक्त के जमानत बांड रद्द कर दिए जाते हैं और उसे एक सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया जाता है.
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  8. इस प्रकार, हम इस विचार से हैं कि इस न्यायालय ने (i) अप्रासंगिक विचारों के कारण जमानत देने वाले आदेश को रद्द  किया है; (ii)  हाईकोर्ट ने मामले के गुण-दोष को छूकर अपने अधिकार क्षेत्र को पार कर लिया है; (iii) पीड़ितों को कार्यवाही में भाग लेने के अधिकार से वंचित किया गया है और (iv) अभियुक्त को जमानत देने या सुनवाई  करने में हाईकोर्ट ने हड़बड़ी दिखाई है.
  9. यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि जमानत अर्जी का फैसला गुणदोष के आधार पर और पीड़ितों को भी सुनवाई का पर्याप्त अवसर देने के बाद किया जाएगा. यदि पीड़ित एक निजी वकील की सेवाओं को शामिल करने में असमर्थ हैं, तो राज्य के खर्च पर उन्हें आपराधिक कानून में पर्याप्त अनुभव के साथ कानूनी सहायता वकील प्रदान करना अनिवार्य होगा.
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  11. 10.03.2022 की घटना के संबंध में अपीलकर्ताओं के आरोपों को ध्यान में रखते हुए, हम इसे मानते हैं यह देखने के लिए उपयुक्त है कि यदि गवाह पर हमले की कथित घटना हुई है, तो इसे राज्य के अधिकारियों के लिए एक जागृति आह्वान के रूप में काम करना चाहिए ताकि गवाहों के जीवन, स्वतंत्रता और पर्याप्त सुरक्षा को सुदृढ़ किया जा सके 
  12. पीड़ित पक्षकारों के वकील दुष्यंत दवे ने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से आग्रह किया कि सुप्रीम कोर्ट कहे कि इस बार किसी अन्य पीठ के सामने ये मैटर जाए.सीजेआई ने कहा कि ऐसा आदेश पारित करना उचित नहीं होगा. हमें यकीन है कि वही जज दोबारा इस मामले को सुनना भी नहीं चाहेंगे.
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