Advertisement

विश्लेषण : CAA और NRC के पीछे क्या हो सकती है BJP की असली रणनीति

नागरिकता कानून और एनआरसी के मुद्दे पर केंद्र की मोदी सरकार भारी विरोध के बाद भी पीछे हटने को तैयार नहीं है. हालांकि इस कानून को लेकर किए जा रहे सवालों के बीच पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के जवाबों में विरोधाभास भी नजर आ रहा है.

Advertisement
Read Time: 15 mins
CAA को लेकर अब केंद्रीय मंत्रियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए मोर्चा संभाला है (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

नागरिकता कानून और एनआरसी के मुद्दे पर केंद्र की मोदी सरकार भारी विरोध के बाद भी पीछे हटने को तैयार नहीं है. हालांकि इस कानून को लेकर किए जा रहे सवालों के बीच पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के जवाबों में विरोधाभास भी नजर आ रहा है. एक ओर जहां संसद में अमित शाह ने कहा कि एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जाएगा तो वहीं पीएम मोदी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित रैली में कहा कि एनआरसी को लेकर अभी कोई चर्चा नहीं हुई है. दूसरी ओर पीएम मोदी ने यह भी दावा किया कि देश में कहीं भी डिटेंशन सेंटर नहीं बनाया गया है जबकि असम में बने डिटेंशन सेंटर की तस्वीरें काफी पहले आ चुकी हैं. हालांकि इन बातों पर जहां बीजेपी नेता अपने हिसाब से जवाब दे रहे हैं तो विपक्ष पीएम मोदी पर झूठ बोलने का आरोप लगा रहा है. इसी बीच पूरे देश में नागरिकता कानून और एनआरसी का मुद्दे पर समर्थन और विरोध में लगातार रैलियां और प्रदर्शन जारी है.

Advertisement

'ध्रुवीकरण' की राजनीति तेज
नागरिकता कानून के प्रावधान में मुस्लिम समुदाय को बाहर रखा गया है. कांग्रेस से सहित पूरा विपक्ष जहां इसे संविधान के मुताबिक धर्मनिरपेक्ष कदम नहीं मान रहा है. वहीं संसद में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि कानून में हिंदुओं के अलावा ईसाई, पारसी, सिख, जैन और बौद्ध शामिल किए हैं लेकिन सिर्फ मुसलमानों को ही न शामिल करने पर कांग्रेस इसे धर्मनिरपेक्ष नहीं मान रही है. दरअसल बीजेपी के लिए इन कानूनों पर जितना ही विवाद होगा उसके लिए फायदा हो सकता है. क्योंकि इन पर विवाद सीधे-सीधे ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं और 'ध्रुवीकरण' की राजनीति मेें बीजेपी को हमेशा से ही फायदा होता रहा है. यही वजह है बीजेपी की इस रणनीति की काट के लिए कांग्रेस ने गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनाव के दौरान 'सॉफ्ट हिंदुत्व' का सहारा लिया था. 

उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में हैं विधानसभा चुनाव
अगले 2 सालों में उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसा लग रहा है कि बीजेपी कोशिश कर रही है कि उत्तर प्रदेश और बंगाल में विधानसभा चुनाव आने तक इन कानूनों के जरिए बहुसंख्यक समुदाय तक इस बात को अच्छे से पहुंचा दिया जाए कि इन कानूनों से देश का भला होगा और कांग्रेस विपक्ष सिर्फ तुष्टीकरण की राजनीति कर रही है. बीजेपी इसी रणनीति के तहत अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बात भी बड़े जोर-शोर से कर रही है. बीजेपी की इस रणनीति को बंगाल की सीएम ममता बनर्जी पूरी तरह से भांप चुकी हैं और वह इन दोनों कानूनों का विरोध कर रही हैं. लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने हिंदुत्व की राजनीति को खूब बढ़ावा दिया और पार्टी को इसका फायदा भी हुआ. 
 

Advertisement

नागरिकता कानून से जुड़ी अहम बातें

  1. इस कानून में पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को आसानी से भारत की नागरिकता मिलेगी. नागरिकता हासिल करने के लिए उन्हें यहां कम से कम 6 साल बिताने होंगे. पहले नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम 11 साल बिताने का पैमाना तय था.
  2. पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और आस-पास के देशों के हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म के वो लोग जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 की निर्णायक तारीख तक भारत में प्रवेश कर लिया था. वे सभी भारत की नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं.
  3. ओसीआई कार्ड धारक यदि नियमों का उल्लंघन करते हैं तो केंद्र के पास उनका कार्ड रद्द करने का अधिकार होगा. बता दें कि ओसीआई कार्ड स्थायी रूप से विदेश में बसे भारतीयों को दिए जाने वाला कार्ड है.


क्या है NRC

  1. एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस से पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं. जिस व्यक्ति का सिटिजनशिप रजिस्टर में नाम नहीं होता उसे अवैध नागरिक माना जाता है. देश में असम इकलौता राज्य है जहां सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था लागू है.
  2. NRC को लागू करने का मुख्य उद्देश्य राज्य में अवैध रूप से रह रहे अप्रवासियों खासकर बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान करना है. इसकी पूरी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही थी. इस प्रक्रिया के लिए 1986 में सिटीजनशिप एक्ट में संशोधन कर असम के लिए विशेष प्रावधान किया गया.
  3. इसके तहत रजिस्टर में उन लोगों के नाम शामिल किए गए हैं, जो 25 मार्च 1971 के पहले असम के नागरिक हैं या उनके पूर्वज राज्य में रहते आए हैं. आपको बता दें कि वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्‍तान के बंटवारे के बाद कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी जमीन असम में थी और लोगों का दोनों ओर से आना-जाना बंटवारे के बाद भी जारी रहा.
  4. इसके बाद 1951 में पहली बार एनआरसी के डाटा का अपटेड किया गया. इसके बाद भी भारत में घुसपैठ लगातार जारी रही. असम में वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद भारी संख्‍या में शरणार्थियों का पहुंचना जारी रहा और इससे राज्‍य की आबादी का स्‍वरूप बदलने लगा.

नागरिकता कानून के विरोध में हो रहे प्रदर्शन, यूपी में इन जगहों पर इंटरनेट बैन​

Advertisement

Featured Video Of The Day
Bangladesh MP Murder: भारत में इलाज कराने आए बांग्लादेश के सांसद का मर्डर, कोलकाता से हुए थे लापता

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे: