
झारखंड (Jharkhand Assembly Election 2019) में दूसरे चरण के मतदान के लिए प्रचार अब ज़ोर पकड़ता जा रहा है. लेकिन सबकी निगाहें दूसरे जमशेदपुर पूर्व की सीट पर टिकी हुई है. इसलिए नहीं कि मुख्यमंत्री रघुवर दास वहां से छठी बार विधायक बनने की रेस में हैं बल्कि इसलिए लोगों की दिलचस्पी इस बार कुछ ज़्यादा दिख रही है क्योंकि चुनाव मैदान में उनको चुनौती देने वाले के मंत्रिमंडल के सहयोगी और बीजेपी के वरिष्ठ नेता सरयू राय हैं. सरयू राय को पार्टी ने विधिवत रूप से निलम्बित कर दिया है. मंगलवार को रघुबर दास के समर्थन में प्रचार करने ख़ुद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जमशेदपुर पहुंचे. सरयू राय वही शख़्स हैं जिनके बारे में बीजेपी की नई दिल्ली में टिकट के बंटवारे में नामों का जब फ़ैसला हो रहा था. तब पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने उनके नाम पर खुलकर अपनी असहमति जतायी थी और और एक नहीं कई कारण उनको टिकट ना देने के गिनाये थे. लेकिन साथ ही साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने न केवल उनकी उम्मीदवारी का खुलकर समर्थन किया बल्कि माना कि उनके जैसी व्यक्ति को टिकट न मिलने से उन्हें हैरानी हुई.
नीतीश ने तो यहां तक कह डाला कि जब 10 वर्ष पूर्व सरयू राय चुनाव हार गए थे तब उन्होंने उन्हें वापस बिहार आने का न्यौता दिया था. लेकिन बक़ौल नीतीश सरयू राय उस समय BJP छोड़ने के मूड में नहीं थे. भारतीय जनता पार्टी के एक और सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने भी राय के समर्थन में ट्वीट कर उन्हें टिकट न देने पर आश्चर्य व्यक्त किया है. स्वामी ने प्रधान मंत्री को उन्हें अगला मुख्य मंत्री बनाने की भी अपील की है. इसके अलावा वर्तमान में वो झारखंड मुक्ति मोर्चा हो या आरजेडी के लालू यादव सबने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को राय के समर्थन में काम करने का निर्देश दिया है.
लेकिन सवाल यह है कि आख़िर ये सरयू राय कौन हैं जिनसे अमित शाह को इतनी चिढ़ और नीतीश कुमार को इतना प्रेम है. बक़ौल नीतीश कुमार जानते हैं उनको जब छात्र जीवन में ख़ासकर JP आंदोलन में एक साथ काम करते थे. उस समय नीतीश कुमार समाजवादी युवजन सभा में थे और सरयू राय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सक्रिय कार्यकर्त. दोनों पटना साइंस कॉलेज में भी साथ थे और आज तक इन दोनो नेताओं के बारे में एक बात सामान्य है की ये अपने दोस्तों के लिए ख़ासकर कॉलेज और स्कूल के दिनों के दोस्तों को कभी भूलते नहीं और इसके लिए वो किसी से भी लड़ सकते हैं और किसी से भी मदद माँग सकते हैं.
लेकिन सरयू राय अस्सी के दशक में दो कारणो से चर्चा में आये. एक कांग्रेसी राज में जेपी की प्रतिमा लगाने में जिसमें इन लोगों को काफ़ी संघर्ष करना पड़ा. पटना एक मात्र शहर होगा जहां नेहरु और इंदिरा के मूर्ति नहीं लेकिन जेपी के दो प्रमुख चौराहों पर मूर्ति लगी हैं. दूसरी कोआपरेटिव माफ़िया के ख़िलाफ़ जब उन्होंने आवाज़ बुलंद की.
उस दौर में कोई सोच नहीं सकता था कि आख़िर इस सहकारिता माफ़िया से कोई लोहा ले सकता है. लेकिन सरयू राय ने जब घटिया खाद के कारण किसानों के फ़सल बर्बाद का मुद्दा मीडिया, कोर्ट सब जगह आवाज़ उठायी और जब कांग्रेस पार्टी के ही भागवत झा आज़ाद की सरकार बनी तो उनके रिपोर्ट के आधार पर सब सहकारिता समिति को भंग किया गया और अब केंद्रीय मंत्री राजकुमार सिंह बिसकोमान के पहले प्रशासक बने.
लेकिन जब 1990 में लालू यादव की सरकार बनी तो उन्हें कृषि और सिंचाई से सम्बंधित विषय पर जानकारी और रुचि के कारण तत्कालीन सिंचाई मंत्री जगदानंद सिंह ने सिंचाई आयोग का सदस्य बनाया लेकिन दो वर्षों के अंदर राय का मोहभंग लालू यादव से इस आधार पर हो गया था कि वो वित्त मामलों में काफ़ी नियम क़ानून को ताक पर रखकर काम कर रहे थे और राय स्थानीय हिंदी अख़बार में उसके बारे में लिखना शुरू किया.
लेकिन लालू इस समय लोकप्रियता के शिखर पर जा रहे थे इसलिए उन्हें इन सभी लेख की कोई परवाह नहीं की. राय के बहाने उन्होंने नीतीश कुमार को बहुत कुछ सुनाया था. क्योंकि लालू, नीतीश और सरयू राय के सम्बंध से भली भांति परिचित थे. ये वो दौर था जब अमित शाह अपने पाइप के बिज़नेस के सिलसिले में भुगतान के सम्बंध में लालू यादव के मुख्यमंत्री आवास का चक्कर लगाते थे. ये बात हाल के दिन में ख़ुद बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने एक सभा में लोगों को बताया.
जहां तक चारा घोटाले का सम्बंध हैं निश्चित रूप से इस घोटाले के पीछे दस्तावेज़ देने वाले सूत्र सबको मालूम थे लेकिन उनकी बातों पर सरयू राय के अलावा कोई विश्वास नहीं करता था या आप कहिए राय एक मात्र व्यक्ति थे जिन्हें घोटाले के असल स्वरूप के बारे में विश्वास था. बहरहाल जब घोटाला सीएजी रिपोर्ट के आधार पर सामने आया तो सारा पीआईएल ड्राफ़्ट करने का ज़िम्मा राय ने रविशंकर प्रसाद को दिया क्योंकि उन्हें एक आशंका थी कि अगर BJP के वरिष्ठ वकीलों को भी इस काम का ज़िम्मा दिया जाएगा तो लालू यादव उनको मैनेज कर सकते हैं.
ये भी सच है कि चारा घोटाले में उस समय BJP हाथ डालने से इसलिए बच रही थी कि उनके राँची के कई नेता इस घोटाले के माफ़ियाओं से उनके संबंध जगजाहिर थे और पार्टी को लग रहा था कि वो जितना इसे उछालेगी उसके छींटे पार्टी के ऊपर पड़ सकते हैं. उस समय केएन गोविंदाचार्य की तूती बोलती थी जिन्होंने बिहार BJP में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए सुशील मोदी , नंद किशोर यादव , सरयू राय जैसे नेताओं को आगे किया और 1996 के लोकसभा चुनाव से सरयूराय को आज के झारखंड और उस समय 14 लोक सभाक्षेत्रों का प्रभार दे दिया था यहां BJP का स्ट्राइक रेट हमेशा बेहतर रहा.
जब अलग झारखंड राज्य का गठन दो हज़ार में हुआ तब उनकी एक भूमिका एक संकटमोचक की तौर पर रही. हालांकि उस समय वो बिहार विधान परिषद के सदस्य थे इसलिए झारखंड सरकार में सीधे शामिल नहीं हो सकते थे लेकिन जब पहली सरकार बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बनी तो वो भी एक अल्पमत की सरकार थी और वो सरकार जनता दल यूनाइटेड के ऊपर निर्भर रहती थी.
इन लोगों को मनाना फुसलाना इन सभी कामों का ज़िम्मा सरयू राय के जिम्मे था. बाद में 2005 में जमशेदपुर से वो विधायक भी हुए लेकिन उस समय भाजपा की सरकार बहुत कम दिनों के लिए बन पाई और अब तक का सबसे विवादास्पद मधु कोडा की सरकार बनी जो एक निर्दलीय विधायक थे जिनको बाहर से JMM कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बनाया गया था.
इस दौर में लूटखसोट चरम पर था और उनके मंत्रिमंडल के अधिकांश लोगों पर घोटाले का ना केवल आरोप लगा बल्कि मामले भी चली उन्हें जेल भी जाना पड़ा उन्हीं में से 1 आरोपी को को BJP ने इस बार के चुनाव में अपनी पार्टी में शामिल कराकर उसे पार्टी का उम्मीदवार भी बनाया.
साल 2014 के शासनकाल में सरयू राय मंत्री तो बने लेकिन धीरे धीरे रघुवर दास ने उसे एक के बाद एक विभाग ले लिया और एक ऐसा समय आया जब राय ने मंत्रिमंडल की बैठक में भाग लेना ही बंद कर दिया जो उनके टिकट काटने में एक मुख्य आधार भी था.
फ़िलहाल राय भले ही जमशेदपुर पूर्व से चुनाव जीतें या हारें लेकिन पूरे झारखंड की राजनीति में विपक्षी दलों को उन्होंने एक मुद्दा तो दे दिया है कि जो भ्रष्टाचार उन्मूलन का दावा करने वाली BJP ने उनके जैसे घोटाले उजागर करने वाले को टिकट से बेदख़ल कर दिया और 130 करोड़ की दवा घोटाले के आरोपी भानू प्रताप ऐसे लोगों को पार्टी में शामिल कराकर टिकट से सम्मानित किया.
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