
पीएमन मोदी को टक्कर देने के लिए क्या राहुल साध पाएंगे सहयोगी दलों को
- यूपीए को करना होगा मजबूत
- विपक्ष को एकजुट करना होगी बड़ी चुनौती
- हर राज्य में साधने होंगे समीकरण
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नई दिल्ली:
कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के साथ ही राहुल गांधी की सीधी टक्कर अब पीएम मोदी से होगी क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पास उनके सिवाए अभी कोई चेहरा नहीं है. लेकिन क्या अकेले राहुल गांधी मौजूदा कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए के दम पर पीएम मोदी की अगुवाई में सत्ता पर काबिज एनडीए को टक्कर दे पाएंगे. यह सवाल उठना इसलिए भी लाजिमी है क्योंकि विपक्ष के कई बड़े नेता इस बात को मान चुके हैं कि अकेले कोई भी दल बीजेपी को टक्कर नहीं दे सकता है. जिस तरह बीजेपी एक के बाद एक चुनाव जीत रही है इससे साफ है कि अभी जनता का विश्वास 'मोदी ब्रांड' पर पूरी तरह से बना हुआ है. यूपी निकाय चुनाव परिणाम इस बात के गवाह हैं.
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तो बड़ा सवाल है कि क्या राहुल गांधी सभी प्रमुख विपक्षी दलों के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ा पाएंगे. उनके सामने बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश में है जहां समाजवादी पार्टी के साथ बीएसपी सुप्रीमो मायावती आने के लिए तैयार नही हैं. लोकसभा चुनाव में अगर मायावती की पार्टी बीएसपी अलग चुनाव लड़ती है तो इसका फायदा सीधे बीजेपी को ही होगा. यहां अभी समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ ही रहने का दावा कर रही है लेकिन वह कितने दिनों तक साथ निभाएगी यह चुनाव के समय समीकरण तय करेंगे. इसी तरह बिहार में नीतीश कुमार महागठबंधन तोड़कर बीजेपी के साथ जा चुके हैं. बिहार में खुद नीतीश भी एक ब्रांड हैं और लालू परिवार भ्रष्टाचार के आरोप हैं. हालांकि वहां जातिगत समीकरण भी हैं. लेकिन कांग्रेस के अंदर भी बगावत के सुर बीच-बीच में सुनाई देते हैं.
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पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी वैसे तो संयुक्त विपक्ष की बात करती हैं. उनके पार्टी के नेता भी डेरेक ओ ब्रायन भी संयुक्त नेतृत्व की बात करते हैं. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या वामदल धुर विरोधी ममता बनर्जी के साथ जाने के लिए तैयार हो जाएंगे क्योंकि टीएमसी ने ही उनको पश्चिम बंगाल से उखाड़ फेंका था. वहीं महाराष्ट्र में भी एनसीपी को साथ बनाए रखने की भी चुनौती है.
वीडियो : सियासत में परिवारवाद
दक्षिण भारत में राहुल गांधी को डीएमके को भी साधकर रखना होगा क्योंकि हाल ही में पीएम मोदी चेन्नई में डीएमके प्रमुख से मुलाकात की है इसे एक तरह के संकेत तौर पर भी देखा गया था. उधर आंध्र प्रदेश में कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बना चुके जगन मोहन रेड्डी भी एक उभरती ताकत बनते जा रहे हैं. बीजेपी ने वहां पर टीडीपी से गठबंधन किया है और राज्य में उसी की सरकार है. राहुल को 2019 से पहले दक्षिण में बड़ा मोर्चा तैयार करना होगा. सवाल यही है कि क्या राहुल 2019 के आम चुनाव से पहले ये सब कर ले जाएंगे.
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तो बड़ा सवाल है कि क्या राहुल गांधी सभी प्रमुख विपक्षी दलों के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ा पाएंगे. उनके सामने बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश में है जहां समाजवादी पार्टी के साथ बीएसपी सुप्रीमो मायावती आने के लिए तैयार नही हैं. लोकसभा चुनाव में अगर मायावती की पार्टी बीएसपी अलग चुनाव लड़ती है तो इसका फायदा सीधे बीजेपी को ही होगा. यहां अभी समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ ही रहने का दावा कर रही है लेकिन वह कितने दिनों तक साथ निभाएगी यह चुनाव के समय समीकरण तय करेंगे. इसी तरह बिहार में नीतीश कुमार महागठबंधन तोड़कर बीजेपी के साथ जा चुके हैं. बिहार में खुद नीतीश भी एक ब्रांड हैं और लालू परिवार भ्रष्टाचार के आरोप हैं. हालांकि वहां जातिगत समीकरण भी हैं. लेकिन कांग्रेस के अंदर भी बगावत के सुर बीच-बीच में सुनाई देते हैं.
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पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी वैसे तो संयुक्त विपक्ष की बात करती हैं. उनके पार्टी के नेता भी डेरेक ओ ब्रायन भी संयुक्त नेतृत्व की बात करते हैं. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या वामदल धुर विरोधी ममता बनर्जी के साथ जाने के लिए तैयार हो जाएंगे क्योंकि टीएमसी ने ही उनको पश्चिम बंगाल से उखाड़ फेंका था. वहीं महाराष्ट्र में भी एनसीपी को साथ बनाए रखने की भी चुनौती है.
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दक्षिण भारत में राहुल गांधी को डीएमके को भी साधकर रखना होगा क्योंकि हाल ही में पीएम मोदी चेन्नई में डीएमके प्रमुख से मुलाकात की है इसे एक तरह के संकेत तौर पर भी देखा गया था. उधर आंध्र प्रदेश में कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बना चुके जगन मोहन रेड्डी भी एक उभरती ताकत बनते जा रहे हैं. बीजेपी ने वहां पर टीडीपी से गठबंधन किया है और राज्य में उसी की सरकार है. राहुल को 2019 से पहले दक्षिण में बड़ा मोर्चा तैयार करना होगा. सवाल यही है कि क्या राहुल 2019 के आम चुनाव से पहले ये सब कर ले जाएंगे.
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