Study: एक दिन में इतने घंटे सोना और खर्राटे लेना बढ़ा देता है स्ट्रोक का रिस्क? अध्ययन में सामने आई ये हैरान करने वाली बात...

अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी के मेडिकल जर्नल के ऑनलाइन अंक में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जिन लोगों को नींद की समस्या है, उनमें स्ट्रोक होने की संभावना ज्यादा हो सकती है.

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अध्ययन यह नहीं दर्शाता है कि नींद की समस्या स्ट्रोक का कारण बनती है.

नींद की समस्याओं में बहुत अधिक या बहुत कम नींद लेना, लंबी झपकी लेना, खराब क्वालिटी वाली नींद लेना, खर्राटे लेना, सूंघना और स्लीप एपनिया (Sleep Apnea) शामिल हैं. इसके अलावा, जिन लोगों में इनमें से पांच या अधिक लक्षण थे, उनमें स्ट्रोक का जोखिम और भी अधिक था. अध्ययन यह नहीं दर्शाता है कि नींद की समस्या स्ट्रोक (Stroke) का कारण बनती है. यह केवल एक संबंध दिखाता है.

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नींद की समस्या वाले लोगों में पांच गुना अधिक खतरा:

अध्ययन के लेखक ने कहा, "किसी व्यक्ति में इनमें से पांच से अधिक लक्षण होने से स्ट्रोक का खतरा उन लोगों की तुलना में पांच गुना अधिक हो सकता है, जिन्हें नींद की कोई समस्या नहीं है." क्रिस्टीन मैकार्थी, एमबी, बीसीएच, बीएओ, आयरलैंड में गॉलवे विश्वविद्यालय, "हमारे नतीजे बताते हैं कि स्ट्रोक की रोकथाम के लिए नींद की समस्या पर फोकस किया जाना चाहिए."

अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन में 4,496 लोग शामिल थे, जिनमें से 2,243 वे लोग थे, जिन्हें स्ट्रोक हुआ था. ऐसे लोगों को 2,253 लोगों से मिलान किया गया था, जिन्हें स्ट्रोक नहीं था. प्रतिभागियों की औसत आयु 62 थी.

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प्रतिभागियों से उनके स्लीप बिहेवियर के बारे में पूछा गया था, जिसमें नींद के दौरान कितने घंटे की नींद, स्लीप क्वालिटी, झपकी लेना, खर्राटे लेना, सूंघना और सांस लेने में समस्या शामिल है.

बहुत कम या ज्यादा सोना भी खतरनाक:

जो लोग बहुत अधिक या बहुत कम घंटे सोते थे, उनमें स्ट्रोक होने की संभावना उन लोगों की तुलना में अधिक थी, जो औसत घंटे सोते थे. स्ट्रोक से पीड़ित कुल 162 लोगों ने पांच घंटे से कम की नींद ली, जबकि जिन लोगों में स्ट्रोक नहीं मिला उनकी संख्या 43 थी, और जिन लोगों को स्ट्रोक हुआ उनमें से 151 ने रात में नौ घंटे से अधिक की नींद ली.

शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों ने पांच घंटे से कम नींद ली, उनमें सात घंटे की नींद लेने वालों की तुलना में स्ट्रोक होने की संभावना तीन गुना अधिक थी. जिन लोगों ने नौ घंटे से अधिक नींद ली, उनमें स्ट्रोक होने की संभावना उन लोगों की तुलना में दोगुनी थी, जो रात में सात घंटे सोते थे.

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जिन लोगों ने एक घंटे से अधिक समय तक झपकी ली, उनमें स्ट्रोक होने की संभावना उन लोगों की तुलना में 88 प्रतिशत अधिक थी, जो ऐसा नहीं करते थे.

शोधकर्ताओं ने नींद के दौरान सांस लेने की समस्याओं को भी देखा, जिसमें खर्राटे लेना, सूंघना और स्लीप एपनिया शामिल हैं. जो लोग खर्राटे लेते हैं उनमें स्ट्रोक होने की संभावना उन लोगों की तुलना में 91 प्रतिशत अधिक होती है जो ऐसा नहीं करते हैं और जो लोग खर्राटे लेते हैं उनमें स्ट्रोक होने की संभावना उन लोगों की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक होती है जो नहीं करते हैं. स्लीप एपनिया वाले लोगों में स्ट्रोक होने की संभावना उन लोगों की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक थी, जिन्हें नहीं हुआ था.

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इन वजहों से भी बढ़ता है स्ट्रोक:

स्मोकिंग, फिजिकल एक्टिविटी, डिप्रेशन और शराब की खपत जैसे स्ट्रोक के जोखिम को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों के लिए परिणाम समान बने रहे.

अध्ययन की एक सीमा यह थी कि लोगों ने नींद की समस्याओं के अपने स्वयं के लक्षणों के बारे में बताया, इसलिए हो सकता है कि जानकारी सटीक न हो.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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