नई दिल्ली:
बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता विनोद खन्ना की हाल ही में एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जिसमें वह बेहद कमजोर नजर आ रहे थे. इस फोटो को देखते ही लोगों ने इस खूबसूरत अभिनेता को याद करना शुरू कर दिया. गुरुवार को विनोद खन्ना के निधन की जानकारी मिलते ही उनके फैन्स समेत पूरे फिल्म जगत में मातम सा छा गया. एक समय था जब हर लड़का 70 और 80 के दशक के इस हीरो की तरह लगना चाहता था. चाहे उनके बाल हों या उनके कपड़े पहनने का अंदाज हर कोई विनोद खन्ना की तरह दिखना चाहता था.
बतौर खलनायक अपने करियर का आगाज कर नायक के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में शोहरत की बुलंदियों तक पहुंचने वाले सदाबहार अभिनेता विनोद खन्ना ने अपने अभिनय से दर्शकों के बीच अपनी अमिट पहचान बनायी. 6 अक्तूबर 1946 को पाकिस्तान के पेशावर में जन्में विनोद खन्ना ने स्नातक की शिक्षा मुंबई से ली. इसी दौरान उन्हें एक पार्टी के दौरान निर्माता-निर्देशक सुनील दत्त से मिलने का अवसर मिला. सुनील दत्त उन दिनों अपनी फिल्म 'मन का मीत' के लिये नये चेहरों की तलाश कर रहे थे. उन्होंने फिल्म में विनोद खन्ना से बतौर सहनायक काम करने की पेशकश की. विनोद खन्ना एक बिजनस परिवार से संबंध रखते हैं. इसलिए परिवार चाहता था कि विनोद अपने पुश्तैनी व्यवसाय को आगे बढ़ाएं. कहा जाता है कि जब विनोद खन्ना ने सुनील दत्त की तरफ से मिले ऑफर के बारे में अपने पिता को बताया तो उनके पिता ने केवल उनको डांटा ही नहीं, बल्कि उन पर बंदूक तानकर मारने की धमकी दी.
लेकिन, विनोद खन्ना की मां ने एक शर्त के साथ विनोद खन्ना को बॉलीवुड में प्रवेश की आज्ञा दी. शर्त ये थी कि फिल्म लाइन में दो साल के अंदर सफल नहीं हुए तो व्यवसाय संभालना होगा. साल 1968 में आई फिल्म 'मन का मीत' टिकट खिड़की पर हिट साबित हुयी. फिल्म की सफलता के बाद विनोद खन्ना को 'आन मिलो सजना', 'मेरा गांव मेरा देश', 'सच्चा झूठा' जैसी फिल्मों में खलनायक की भूमिकायें निभाने का अवसर मिला लेकिन इन फिल्म की सफलता के बावजूद विनोद खन्ना को कोई खास फायदा नहीं पहुंचा.
बतौर खलनायक अपने करियर का आगाज कर नायक के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में शोहरत की बुलंदियों तक पहुंचने वाले सदाबहार अभिनेता विनोद खन्ना ने अपने अभिनय से दर्शकों के बीच अपनी अमिट पहचान बनायी. 6 अक्तूबर 1946 को पाकिस्तान के पेशावर में जन्में विनोद खन्ना ने स्नातक की शिक्षा मुंबई से ली. इसी दौरान उन्हें एक पार्टी के दौरान निर्माता-निर्देशक सुनील दत्त से मिलने का अवसर मिला. सुनील दत्त उन दिनों अपनी फिल्म 'मन का मीत' के लिये नये चेहरों की तलाश कर रहे थे. उन्होंने फिल्म में विनोद खन्ना से बतौर सहनायक काम करने की पेशकश की. विनोद खन्ना एक बिजनस परिवार से संबंध रखते हैं. इसलिए परिवार चाहता था कि विनोद अपने पुश्तैनी व्यवसाय को आगे बढ़ाएं. कहा जाता है कि जब विनोद खन्ना ने सुनील दत्त की तरफ से मिले ऑफर के बारे में अपने पिता को बताया तो उनके पिता ने केवल उनको डांटा ही नहीं, बल्कि उन पर बंदूक तानकर मारने की धमकी दी.
लेकिन, विनोद खन्ना की मां ने एक शर्त के साथ विनोद खन्ना को बॉलीवुड में प्रवेश की आज्ञा दी. शर्त ये थी कि फिल्म लाइन में दो साल के अंदर सफल नहीं हुए तो व्यवसाय संभालना होगा. साल 1968 में आई फिल्म 'मन का मीत' टिकट खिड़की पर हिट साबित हुयी. फिल्म की सफलता के बाद विनोद खन्ना को 'आन मिलो सजना', 'मेरा गांव मेरा देश', 'सच्चा झूठा' जैसी फिल्मों में खलनायक की भूमिकायें निभाने का अवसर मिला लेकिन इन फिल्म की सफलता के बावजूद विनोद खन्ना को कोई खास फायदा नहीं पहुंचा.
----- ----- यह भी पढ़ें ----- -----
* बॉलीवुड के 'हैंडसम हंक' ने विलेन बनकर शुरू किया था फिल्मी करियर...
* विलेन से हीरो बने थे विनोद खन्ना, उनकी चर्चित फिल्मों पर नज़र...
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* दुख में डूबे नेता-अभिनेता, ऋषि कपूर ने कहा : अमर, आपको मिस करूंगा...
* विनोद खन्ना के बारे में ऐसी 10 बातें, जो शायद आपको पता न हों...
* अभिनेता और बीजेपी सांसद विनोद खन्ना का 70 साल की उम्र में निधन
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विनोद खन्ना को प्रारंभिक सफलता गुलजार की फिल्म 'मेरे अपने' से मिली. फिल्म में विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिंहा के बीच टकराव देखने लायक था. 1973 में विनोद खन्ना को एक बार फिर से निर्देशक गुलजार की फिल्म 'अचानक' में काम करने का अवसर मिला जो उनके करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुयी. 1974 में आई फिल्म 'इम्तिहान' विनोद खन्ना के सिने करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुयी और 1977 में आई 'अमर अकबर ऐंथोनी'. विनोद खन्ना के सिने करियर की सबसे कामयाब फिल्म साबित हुयी. मनमोहन देसाई के निर्देशन में बनी यह फिल्म खोया पाया फार्मूले पर आधारित थी.
1980 में प्रदर्शित फिल्म 'कुर्बानी' विनोद खन्ना के करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुयी. विनोद खन्ना और अमिताभ बच्चन, दोनों ही अपने बॉलीवुड करियर के उफान पर लगभग एक ही समय में थे. विनोद खन्ना अमिताभ बच्चन के कड़े प्रतिद्वंदी माना जाते थे. दोनों सुपरस्टार्स ने 'मुकद्दर का सिकंदर', 'परवरिश', 'अमर अखबर एंथॉनी' जैसी फिल्मों में साथ में काम किया था.
1987 से 1994 में विनोद खन्ना बॉलीवुड के सबसे मंहगे सितारों में से एक थे. उस समय वह दूसरे हाइयेस्ट पेड ऐक्टर थे. अपने करियर की पीक पर होने के बावजूद विनोद खन्ना ने फिल्म इंडस्ट्री से सन्यास ले लिया और ओशो के अनुयायी बन गए. वह अक्सर पुणे में ओशो के आश्रम जाते थे और इस हद ओशो से प्रभावित थे कि अपने कई शूटिंग शेड्यूल भी पुणे में ही रखवाए. कई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक विनोद संन्यास लेकर अमेरिका चले गए और ओशो के साथ करीब 5 साल गुजारे.
1987 में विनोद खन्ना ने एक बार फिर से 'इंसाफ' के जरिये फिल्म इंडस्ट्री का रूख किया. 1988 में आई फिल्म 'दयावान' विनोद खन्ना के करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में शामिल है. हालांकि यह फिल्म टिकट खिड़की पर कामयाब नहीं रही लेकिन समीक्षकों का मानना है कि यह फिल्म विनोद खन्ना के करियर की बेहतरीन फिल्मों में से एक है.
फिल्मों में कई भूमिकाएं निभाने के बाद विनोद खन्ना ने 1997 में राजनीति में प्रवेश किया और भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से 1998 में गुरदासपुर से चुनाव लड़कर लोकसभा सदस्य बने. बाद में केन्द्रीय मंत्री के रूप में भी उन्होंने काम किया. विनोद खन्ना ने अपने चार दशक लंबे सिने करियर में लगभग 150 फिल्मों में अभिनय किया. उनके निभाए हर किरदार सिनेमा प्रेमियों के दिलों में ज़िंदा हैं.
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1987 से 1994 में विनोद खन्ना बॉलीवुड के सबसे मंहगे सितारों में से एक थे. उस समय वह दूसरे हाइयेस्ट पेड ऐक्टर थे. अपने करियर की पीक पर होने के बावजूद विनोद खन्ना ने फिल्म इंडस्ट्री से सन्यास ले लिया और ओशो के अनुयायी बन गए. वह अक्सर पुणे में ओशो के आश्रम जाते थे और इस हद ओशो से प्रभावित थे कि अपने कई शूटिंग शेड्यूल भी पुणे में ही रखवाए. कई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक विनोद संन्यास लेकर अमेरिका चले गए और ओशो के साथ करीब 5 साल गुजारे.
1987 में विनोद खन्ना ने एक बार फिर से 'इंसाफ' के जरिये फिल्म इंडस्ट्री का रूख किया. 1988 में आई फिल्म 'दयावान' विनोद खन्ना के करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में शामिल है. हालांकि यह फिल्म टिकट खिड़की पर कामयाब नहीं रही लेकिन समीक्षकों का मानना है कि यह फिल्म विनोद खन्ना के करियर की बेहतरीन फिल्मों में से एक है.
फिल्मों में कई भूमिकाएं निभाने के बाद विनोद खन्ना ने 1997 में राजनीति में प्रवेश किया और भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से 1998 में गुरदासपुर से चुनाव लड़कर लोकसभा सदस्य बने. बाद में केन्द्रीय मंत्री के रूप में भी उन्होंने काम किया. विनोद खन्ना ने अपने चार दशक लंबे सिने करियर में लगभग 150 फिल्मों में अभिनय किया. उनके निभाए हर किरदार सिनेमा प्रेमियों के दिलों में ज़िंदा हैं.
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