फाईल फोटो
नयी दिल्ली:
दो साल पहले भारी बारिश के कारण तबाह हुए केदारनाथ शहर के पुनर्निर्माण का काम अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है और इसी दौरान उत्तराखंड सरकार एवं अन्य एजेंसियां भविष्य में ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए कई कदम उठा रही हैं।
इन उपायों के तहत, आपातकाल के दौरान बचाव अभियानों में इस्तेमाल किए जाने के लिए छह हैलीपैड बनाए गए हैं, तीर्थयात्रियों और घोड़ों-खच्चरों के लिए पंजीकरण अनिवार्य किया गया है, चौड़ी सड़कें बिछाई गई हैं, मौसम की भविष्यवाणी दिन में तीन बार की जाने लगी है और मंदिर को पानी एवं शिलाखंडों से बचाने के लिए उसके चारों ओर तीन स्तरीय सुरक्षा की गई है।
बनाया जाएगा गेबियन वॉल
उत्तराखंड के प्रमुख सचिव राकेश शर्मा ने कहा, ‘‘हमने इस बात पर विचार किया कि यदि ऐसी आपदा भविष्य में दोबारा आती है तो हम इस तीर्थस्थल को कैसे बचा सकते हैं? सुरक्षा मूलत: दो चीजों से की जानी है- पानी से और शिलाखंडों से। इसलिए तीन स्तरीय सुरक्षा योजना बनाई गई। हम चोराबाड़ी झील के पास इस इलाके के चारों ओर दीवार (गेबियन वॉल) बनाएंगे। तबाही यहीं से शुरू हुई थी। यह दीवार शिलाखंडों को नीचे गिरने से रोकेगी।’’
गेबियन वॉल एक ऐसी दीवार है, पत्थरों से बनी दीवार होती है, जो कि तारों से बंधी होती है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 में सिर्फ 40 हजार तीर्थयात्री केदारनाथ आए जबकि तबाही से पहले एक मौसम में आने वाले यात्रियों की संख्या पांच लाख से ज्यादा होती थी।
तीर्थयात्रियों का बायोमीट्रिक पंजीकरण
राज्य सरकार के अधिकारियों के अनुसार, हर दिन एक तय संख्या में ही तीर्थयात्रियों को मंदिर की यात्रा करने दी जाएगी और इन सभी का पंजीकरण बायोमीट्रिक प्रणाली से होगा।
शर्मा ने कहा कि रामबाड़ा से केदारनाथ तक के लिए नए वैकल्पिक मार्ग भी निकाले गए हैं। नौ किलोमीटर का एक नया रास्ता निकाला गया है, जो कि बाढ़ आने पर लोगों को निकालने में मददगार होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘केदारनाथ एमआई-26 हेलीपैड, बेस कैंप केदारनाथ, लिंचोली, भीमबली और जंगलछत्ती में तीर्थयात्रियों के लिए ठहरने के लिए नए स्थान बनाए गए हैं।’’ केदरानाथ हिंदुओं के पवित्रतम तीर्थस्थलों में से एक है और यह समुद्र तल से 11,755 फुट की उंचाई पर स्थित है।
इन उपायों के तहत, आपातकाल के दौरान बचाव अभियानों में इस्तेमाल किए जाने के लिए छह हैलीपैड बनाए गए हैं, तीर्थयात्रियों और घोड़ों-खच्चरों के लिए पंजीकरण अनिवार्य किया गया है, चौड़ी सड़कें बिछाई गई हैं, मौसम की भविष्यवाणी दिन में तीन बार की जाने लगी है और मंदिर को पानी एवं शिलाखंडों से बचाने के लिए उसके चारों ओर तीन स्तरीय सुरक्षा की गई है।
बनाया जाएगा गेबियन वॉल
उत्तराखंड के प्रमुख सचिव राकेश शर्मा ने कहा, ‘‘हमने इस बात पर विचार किया कि यदि ऐसी आपदा भविष्य में दोबारा आती है तो हम इस तीर्थस्थल को कैसे बचा सकते हैं? सुरक्षा मूलत: दो चीजों से की जानी है- पानी से और शिलाखंडों से। इसलिए तीन स्तरीय सुरक्षा योजना बनाई गई। हम चोराबाड़ी झील के पास इस इलाके के चारों ओर दीवार (गेबियन वॉल) बनाएंगे। तबाही यहीं से शुरू हुई थी। यह दीवार शिलाखंडों को नीचे गिरने से रोकेगी।’’
गेबियन वॉल एक ऐसी दीवार है, पत्थरों से बनी दीवार होती है, जो कि तारों से बंधी होती है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 में सिर्फ 40 हजार तीर्थयात्री केदारनाथ आए जबकि तबाही से पहले एक मौसम में आने वाले यात्रियों की संख्या पांच लाख से ज्यादा होती थी।
तीर्थयात्रियों का बायोमीट्रिक पंजीकरण
राज्य सरकार के अधिकारियों के अनुसार, हर दिन एक तय संख्या में ही तीर्थयात्रियों को मंदिर की यात्रा करने दी जाएगी और इन सभी का पंजीकरण बायोमीट्रिक प्रणाली से होगा।
शर्मा ने कहा कि रामबाड़ा से केदारनाथ तक के लिए नए वैकल्पिक मार्ग भी निकाले गए हैं। नौ किलोमीटर का एक नया रास्ता निकाला गया है, जो कि बाढ़ आने पर लोगों को निकालने में मददगार होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘केदारनाथ एमआई-26 हेलीपैड, बेस कैंप केदारनाथ, लिंचोली, भीमबली और जंगलछत्ती में तीर्थयात्रियों के लिए ठहरने के लिए नए स्थान बनाए गए हैं।’’ केदरानाथ हिंदुओं के पवित्रतम तीर्थस्थलों में से एक है और यह समुद्र तल से 11,755 फुट की उंचाई पर स्थित है।
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