जम्मू-कश्मीर में नई सरकार बनाने की गुत्थी उलझती ही जा रही है। राज्यपाल ने बीजेपी और पीडीपी को सरकार बनाने के प्रस्ताव लेकर बुलाया है, लेकिन सरकार बनने का मामला इतना आसान नहीं लग रहा है।
एक नई बात ये सामने आ रही है कि क्या गिने चुने निर्दलीय विधायकों के हाथ में नई सरकार की चाबी होगी। घाटी से चुनकर आए ज्यादातर निर्दलीय विधायक बीजेपी के ख़िलाफ़ किसी भी गठबंधन को समर्थन देने की बात कर रहे हैं।
राज्य में बीजेपी ने 25 सीटों पर जीत दर्ज की है और पार्टी का दावा है कि सज्जाद लोन की पार्टी पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के दो विधायकों के साथ पांच निर्दलीय विधायकों का समर्थन उसे हासिल है। लेकिन घाटी से चुने गए तीन निर्दलीय विधायक बीजेपी के दावे को ख़ारिज कर रहे हैं और उन्होंने पीडीपी-कांग्रेस या नेशनल कॉन्फ्रेंस के गठबंधन को समर्थन देने का एलान कर दिया है।
वहीं वहीं पीडीपी ने जम्मू कश्मीर में नई सरकार के गठन के लिए उसे लुभा रही भाजपा के सामने कड़ी शर्तें रखीं और कहा कि अनुच्छेद 370 को हटाने के खिलाफ उसके रुख पर 'कोई समझौता नहीं' हो सकता। (सिद्धांतों से समझौता नहीं करेंगे : पीडीपी)
पीडीपी ने संकेत दिए कि उसके लिए भाजपा के साथ काम करना मुश्किल हो सकता है। पीडीपी ने यह भी कहा कि वह विवादित सैन्य बल विशेषाधिकार अधिनियम (AFSPA) को हटाने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसे भाजपा संभवत: स्वीकार नहीं करेगी। पीडीपी के प्रवक्ता नईम अख्तर ने कहा, 'कुछ खास मुद्दे हैं, जो हमारे कोर एजेंडे में हैं और इन पर आश्वासन की आवश्यकता है कि ये हमारे संभावित गठबंधन सहयोगी, यह कोई भी पार्टी हो सकती है, द्वारा स्वीकार किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 की सुरक्षा पर पार्टी के रुख के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता।'
वहीं पीडीपी के पास अगला विकल्प 12 विधायकों वाली कांग्रेस पार्टी और 15 विधायकों वाली नेशनल कांफ्रेंस का समर्थन स्वीकार करना है। वह इन दोनों दलों के साथ संपर्क में है, क्योंकि वह भाजपा से हाथ मिलाने को लेकर दुविधा में है।
वहीं खबर यह भी आ रही है कि पीडीपी और कांग्रेस के नेता उधमपुर और करगिल के विधायकों के संपर्क में हैं। राज्य जो हालात बन रहे हैं उनमें राज्यपाल एनएन वोहरा की भूमिका काफी अहम हो रही है। (एजेंसी इनपुट के साथ)
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